फांसी की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने का विकल्प हो [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network

20 Sep 2017 12:11 PM GMT

  • फांसी की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका,  इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने का विकल्प हो [याचिका पढ़े]

    " जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है" ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपने तरह की पहली याचिका दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सज़ा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट में।

    हालांकि ये मामला संसद द्वारा संशोधन का है लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के दौराम क्या विचार रखता है क्योंकि इस मुद्दे पर बंद पडी बहस इस जनहित याचिका से फिर से बहस शुरु हो गई है।
    वकील ऋषि मल्होत्रा द्वारा दाखिल याचिका में ग्यान कौर बनाम पंजाब ( 1996) में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है कि जीवन जीने के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है। यानी जब भी कोई व्यक्ति मरे तो मरने की प्रक्रिया भी सम्मानजनक होनी चाहिए।

    वहीं दूसरे मामले दीना बनाम भारत संघ (1983) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि मौत की सजा का तरीका एेसा होना चाहिए जो जल्दी से मौत हो जाए और ये तरीका आसान भी होना चाहिए ताकि ये कैदी की मार्मिकता को और ना बढाए। कोर्ट ने कहा था कि ये तरीका एेसा होना चाहिए जिसमें जल्द मौत हो जाए और इसमें अंग-भंग ना हो।

    प्रार्थना 




    • फांसी पर लटकाए रखने का प्रावधान करने वाली CRPC की धारा 354 (5) को को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत असंवैधानिक करार दिया जाए और ज्ञान कौर जजमेंट के विपरीत माना जाए।

    • सम्मानजनक तरीके से मौत के जरिए मरने के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक  अधिकार का दर्जा दिया जाए।

    • वर्तमान तथ्यों व हालात को देखते हुए जो आदेश जारी करना कोर्ट उचित समझे।


    मल्होत्रा मे कहा है कि लॉ कमिशन ने भी यही कहा हा कि विकासशील और विकसित देशों ने फांसी की बजाए इंजेक्शन या गोली मारने के तरीकों को अपनाया है तो कि कैदी को कम से कम दर्द और सहने का आसान मानवीय और स्वीकार्य तरीका है। लॉ कमिशन ने 1967 में 35 वीं रिपोर्ट में कहा था कि ज्यादातर देशों ने बिजली करंट, गोली मारने या गैस चैंबर को फांसी का विकल्प चुन लिया है।

    सुप्रीम कोर्ट से याचिका में मांग की गई है कि CrPC की धारा 354(5) के अंतर्गत ये कहा गया है कि मौत होने तक लटकाया जाए, इसलिए इसे संविधान के जीने के अधिकार का उल्लंघन करार दिया जाना चाहिए। साथ ही सम्मानजनक तरीके से मरने को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि गोली मारने या जहर इंजेक्शन देना फांसी के मुकाबले कम पीडा देने वाला है क्योंकि इसमें कैदी का वजन, ऊंचाई मापकर गिराने की प्रक्रिया है जो टार्चर करती है।

    मल्होत्रा ने कहा कि ये 354(5) जिसके मुताबिक हैंग टिल डेथ सबसे बर्बरतापूर्ण, अमानवीय और क्रूर तरीक है बल्ति ये यूनाइटेड नेशन्स इकॉनामिक्स एंड सोशल काउंसिल के प्रस्ताव के खिलाफ भी है जो साफ कहता है कि जहां भी मौत की सजा का प्रावधान है वो इस तरह होना चाहिए कि कम से कम कष्ट सहना पडे।


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