करार में लिखा था कि 'मध्यस्थता नहीं होगी', बोंबे हाईकोर्ट ने मध्यस्थ नियुक्त करने के आदेश को वापस लिया
LiveLaw News Network
20 Sept 2017 1:42 PM IST
बोंबे हाईकोर्ट ने प्रतिभा इंडस्ट्रीज बनाम ग्रेटर मुंबई नगर निगम ( MCGM) मामले में 27 जून 2017 के अपने फैसले को वापस ले लिया है। हाईकोर्ट ने मध्यस्थता याचिका का निपटारा करते हुए रिटायर्ड जस्टिस वी एम कनाडे को एकमात्र मधयस्थ नियुक्त किया था।
MCGM की अर्जी पर जस्टिस के आर श्रीराम ने आदेश वापस लेने का फैसला सुनाया।
दरअसल याचिकाकर्ता और निगम के बीच 19 सितंबर 2008 के बीच समझौता हुआ था। इसके तहत याचिकाकर्ता तो पूरे शहर में AMR वाटर मीटर सप्लाई करने, लगाने और रखरखाव करने को कहा गया। इसी दौराम याचिकाकर्ता ने मध्यस्थता याचिका दाखिल कर MCGM समेत सभी प्रतिवादियों को तीन बैंक गारंटी कैश कराने पर रोक लगाने की मांग की। याचिकाकर्ता की ओर से पेश यू जे मखीजा ने कहा कि कंपनी मध्यस्थता के लिए तैयार है और एकमात्र मध्यस्थ के तौर पर जस्टिस कनाडे का नाम सुझाया। इसी दौरान कोर्ट में मौजूद बीएमसी के एक इंजीनियर के निर्देश पर MCGM की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ईपी भरूचा ने कहा कि उन्हें जस्टिस कनाडे के नाम पर कोई आपत्ति नहीं है। इसी आधार पर 27 जून को हाईकोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस वी एम कनाडे को एकमात्र मधयस्थ नियुक्त करने का आदेश जारी कर दिया।
इसके बाद प्रतिवादी ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस आदेश को वापस लेने की गुहार लगाई क्योंकि करार में साफ कहा गया था कि मध्यस्थता को अनुमति नहीं है। भरूचा ने कोर्ट में कहा कि इसके तहत याचिकाकर्ता को ये अधिकार नहीं है कि वो कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मध्यस्था कानून के तहत राहत मांगे।
हाईकोर्ट के ही तत्वा ग्लोबल इंवायरमेंट ( देवनार) लिमिटेड बनाम ग्रेटर मुंबई नगर निगम केस के फैसले के आधार पर यूजे मखीजा ने कहा कि टेंडर नोटिस का क्लॉज 22 मध्यस्थता करार बनाता है इसलिए इस करार में भी मध्यस्थता क्लॉज है।
हाईकोर्ट ने कहा कि तत्वा ग्लोबल केस वर्तमान केस के समान नहीं है और 19 सितंबर 2008 के बीच समझौते में मध्यस्थता पर रोक का क्लॉज मौजूद है। इसलिए मध्यस्थ नियुक्त करने का पहला आदेश वापस लिया जाता है।