गरीबी मिटाने के लिए गरीबों को न्याय प्रणाली में प्रवेश देना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
15 Sept 2017 8:20 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गरीबी को मिटाने के लिए ये अनिवार्य है कि अलग थलग पडे लोगों को न्याय व्यवस्था मे प्रवेश मिले।
जस्टिस ए के सिकरी और अशोक भूषण ने सोमवार अपने फैसले में कहा कि मानवाधिकारों के लिहाज से कमजोर तबके से संबंध रखने वाला व्यक्ति अपनी गरीबी सामाजिक और दूसरी रुकावटों के कारण अधिकारों का इस्तेमाल करने में नाकाम रहता है। यहां तक कि उनके अधिकारों का हनन होने, पीडित होने और वैधानिक हक ना मिलने पर भी वो अदालत तक नहीं पहुंच पाते। इसलिए सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए न्याय व्यवस्था में प्रवेश काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। जब एेसे लोगों को उत्तरजीविता और न्याय जैसे अधिकार से वंचित किया जाता है तो ये उनकी गरीबी को और भी बढा देता है। इसलिए गरीबी को मिटाने के लिए गरीब तबके के न्याय प्रणाली में प्रवेश अनिवार्य है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। हाईकोर्ट ने राज्य द्वारा जमीन लेने पर गांव के किसानों को 115 रुपये प्रति गज के हिसाब से मुआवजा देने के आदेश दिए थे। इस आदेश को चुनौती दी गई और कहा गया कि किसानों को ज्यादा मुआवजा नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्होंने 115 रुपये प्रति गज के हिसाब से कोर्ट फीस जमा की थी ना कि 297 रुपये प्रति गज।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर अपनी असहमति जताते हुए कहा कि जिन किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया उन्हें अगर ज्यादा मुआवजा देने से इंकार किया जाता है तो ये न्याय का मखौल उडाना होगा। कोर्ट ने कहा कि ये कहना कि कुछ गांववासियों ने जितना मुआवजा होना चाहिए था उससे भी कम मुआवजा क्लेम किया है, ये कोई आधार नहीं बनता कि उन्हें ज्यादा और बेहतर मुआवजा ना दिया जाए। कोर्ट मे ये भी कहा कि इन लोगों को ज्यादा मुआवजा देने से सिर्फ इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने कोर्ट फीस 115 रुपये प्रतिगज के हिसाब से जमा कराई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा है कि इन लोगों को 297 रुपये प्रति गज के हिसाब से मुआवजा दिया जाएगा। कोर्ट ने मुआवजे में बकाया राशि और वैधानिक देय को तीन महीने के भीतर अदा करने का आदेश दिया है।