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रेयान छात्र की हत्या के आरोपी का इंटरव्यू, क्या टीवी चैनलों ने लक्षमण रेखा पार की ?

LiveLaw News Network
15 Sep 2017 10:46 AM GMT
रेयान छात्र की हत्या के आरोपी का इंटरव्यू, क्या टीवी चैनलों ने लक्षमण रेखा पार की ?
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रेयान इंटरनेशनल स्कूल के शौचालय में सात साल के प्रद्युमन ठाकुर की हत्या के बाद कई टेलीविजन चैनलों ने मुख्य आरोपी बस कंडक्टर अशोक कुमार का इंटरव्यू दिखाया और कहा कि उसने अपना अपराध कबूल कर लिया है। हालांकि आरोपी पुलिस हिरासत में था और टीवी चैनलों के सामने उसका कथित इकबालिया बयान कानूनी तौर पर वैध नहीं है। जाहिर है कि ये बयान पुलिस ने भी कराया होगा लेकिन ये सीधे सीधे संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत चुप रहने के अधिकार के साथ समझौता है।

संविधान के अनुच्छेद 20(3) में कहा गया है कि अपराध के किसी आरोपी को अपने ही खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

दरअसल चैनलों ने ये इंटरव्यू चलाकर 11 मार्च 2016 में नेशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्डस अथॉरिटी के अध्यक्ष जस्टिस आरवी रविंद्रन के आदेश का उल्लंघन किया है। ये आदेश 24 अगस्त 2015 को टाइम्स नाउ द्वारा छेडछाड के एक आरोपी का इटरव्यू दिखाए जाने के बाद शिकायत पर आया था।

NBSA ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के मनु शर्मा बनाम राज्य 2010 के फैसले को आधार बनाया जिसमें कहा गया है कि किसी आरोपी के निर्दोष होने की धारणा एक कानूनी धारणा है। इस धारणा को मीडिया ट्रायल के दौरान नष्ट नहीं किया जा सकता वो भी तब जब मामले की जांच लंबित हो। ये कानून के बेसिक तत्व के विपरीत होगा और संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ टकराव होगा। बोलने की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत संरक्षित है और इसका सावधानी पूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि ये न्याय प्रशासन के रास्ते में बाधा ना बने और अदालतों मे लंबित मामलों के फैसले में अवांछित परिणाम ना दिलाए। आदेश में स्वत: नियंत्रण के सिद्धांत के सेक्शन 2 का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि चैनलों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि सिर्फ आरोप लगाना ही तथ्य नहीं होते और ना ही आरोपों के आधार पर ही दोषी माना जा सकता है।

NBSA ने ये भी कहा कि आखिर कई मामलों में मीडिया क्यों अपराध और अपराधी को लेकर इतना आक्रामक क्यों हो जाता है, ये भी पता है। टीआरपी। झोलझाल वाली जांच, असावधान अभियोजन और ट्रायल में देरी की वजह से दोष सिद्ध करना मुश्किल हो जाता है।

NBSA ने पाया कि चैनल के रिपोर्टर ने कोड ऑफ एथिक्स एंड ब्रॉडकास्टिंग के सेक्शन  (1) (2) और (3) और गाइडलाइन्स के सेक्शन  (1) (2) ( 3)  और कोर्ट रिपोर्टिंग गाइडलाइन्स (6) का उल्लंघन है।

ब्रॉडकास्टर को कहा गया कि वो बार बार दोहराये कि चैनल किसी भी लंबित जांच या कोर्ट में लंबित अपराध के मामले में हर किसी के फेयर ट्रायल के अधिकार और सम्मान को बनाए रखेगा। इसके साथ ही उसे सात दिन के भीतर NBA को 50 हजार रुपये जुर्माना जमा करने के आदेश भी दिए।

ये भी आदेश दिया गया कि उक्त कार्यक्रम के वीडियो टाइम्स नाउ से या अन्य सभी लिंक से तत्काल प्रभान से हटाए जाएं।

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