सुप्रीम कोर्ट ने तीन दशक पुराने रिलायंस इंडस्ट्रीज के केस को फिर से हरी झंडी दिखाई
LiveLaw News Network
13 Sept 2017 1:19 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर क्रेडिट लेने में किसी नियम प्रक्रिया की चूक होती है तो इसका असर किसी भी तौर पर डयूटी यानी शुल्क की चोरी केस के अपराध पर नहीं पडेगा। ये फैसला देकर तीन दशकों से लंबित पडे रिलायंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ ट्रायल को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दिखा दी है।
जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस यू यू ललित ने ये फैसला सुनाया है। दरअसल कोर्ट के सामने सवाल ये था कि अगर आबकारी डयूटी के मामले में सेंट्रल एक्साइज रूल के 56 A के तहत प्रक्रिया का पालन न करने पर शुल्क चोरी के तहत कानूनी कार्रवाई हो सकती है या नहीं जबकि इस नियम को नोटिफिकेशन में भी चूक से हटा दिया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्रतिवादी के खिलाफ शुल्क चोरी के आरोप हैं। इस अपराध का घटक शुल्क से बचना है। एेसे में क्रेडिट हासिल करने के लिए किसी प्रक्रिया में चूक होने से इन आरोपों पर कोई असर नहीं पड सकता। अभियोजन पक्ष को शुल्क चोरी के आरोप सिद्ध करने का मौका देने से वंचित नहीं किया जा सकता जो खुद भी एक अपराध है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें पूरी कार्रवाई को इसलिए रद्द कर दिया गया था क्योंकि नियम 56 A के तहत प्रक्रिया में चूक हुई थी।
इस मामले में अहमदाबाद के सेट्रल एक्साइज अधीक्षक ने चार अगस्त 1987 को शिकायत दर्ज कराई थी कि चंद्रापकलाल रमनलाल ने नियम 56 A के तहत प्रक्रिया का पालन किए बिना क्रेडिट लिया था। ट्रायल मजिस्ट्रेट ने इस मामले में समन जारी किए लेकिन 20 मई 1994 को एक नोटिफिकेशन में 56 A छूट गया था।
आरोपियों ने आरोपमुक्त करने के लिए अर्जी लगाई जो खारिज हो गई और 2013 में आरोप तय किए गए। इसमें सेंट्रल एक्साइज एंड साल्ट एक्ट 1944 के सेक्शन 9 के साथ सेंट्रल एक्साइज रूल के 52(A), 56(A), 173(G), 9(2) और सेंट्रल एक्साइज एंड साल्ट एक्ट 1944 के 173(Q) व 11(A) के तहत आरोप तय किए गए। हाईकोर्ट ने आरोपियों की संशोधन याचिका को मंजूर करते हुए कहा था कि क्योंकि 56 A को बिना किसी बचाव वाले क्लॉज के नोटिफिकेशन से हटाया गया इसलिए कार्रवाई नहीं चल सकती।