आपसी सहमति से हुए तलाक में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

12 Sep 2017 3:41 PM GMT

  • आपसी सहमति से हुए तलाक में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बडे फैसले में कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) के तहत आपसी सहमति से तलाक की सूरत में 6 महीने का प्रतीक्षा अवधि  यानी वेटिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है। जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस यू यू ललित ने फैसले में कहा है कि कुछ खास परिस्थितियों में इस प्रावधान को छोडा जा सकता है।

    दरअसल इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के विचार विरोधाभासी रहे थे। अंजना किशोर बनाम पुनीत किशोर (2002) 10 SCC 194 में कहा गया था कि ये छूट सिर्फ सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 से मिले अधिकार के तहत ही दे सकता है। लेकिन मनीष गोयल बनाम रोहिणी गोयल (2010) 4 SC 393 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 142 का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता क्योंकि ये वैधानिक मामला है। इसके बाद मामले को बडी बेंच के सामने भेजा गया लेकिन याचिका निष्प्रभावी हो गया क्योंकि इस बीच दोनों के बीच तलाक हो गया। हाल ही में 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एेसे ही मामले में 142 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर छूट दी थी।

    लेकिन किसी भी कोर्ट में ये मुद्दा नहीं आया कि क्या फैमिली कोर्ट भी इस तरह छूट दे सकती हैं या नहीं। इस मामले में पति- पत्नी दोनों आठ साल से अलग रह रहे थे और प्रतीक्षा अवधि से कोई हल नहीं निकला। इस दौरान दोनों के बीच शादी पूरी तरह टूट चुकी थी। कोर्ट ने वरिष्ठ वकील के वी विश्वनाथन को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया।

    कोर्ट ने कहा कि अंतिम आदेश के लिए 6 महीने का वक़्त लेना सिविल जज के विवेक पर निर्भर होगा। अगर जज चाहे तो खास परिस्थितियों में तुरंत तलाक का आदेश दे सकते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 महीने के इंतज़ार को खत्म किया। साथ ही, देश की तमाम फैमिली अदालतों को ये निर्देश दिया कि अब से वो हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य न मानें। अगर ज़रूरी लगे तो फौरन तलाक का आदेश दें।

    सुप्रीम कोर्ट ने उन ख़ास परिस्थितियों को भी अपने फैसले में भी स्पष्ट किया है -




    1. अगर 13B(2) में कहा गया 6 महीने का वक़्त और 13B(1) में कहा गया 1 साल का वक़्त पहले ही बीत चुका हो। यानी तलाक की अर्ज़ी लगाने से डेढ़ साल से ज़्यादा समय से पति-पत्नी अलग रह रहे हों।

    2. दोनों में सुलह-सफाई के सारे विकल्प असफल हो चुके हों। आगे भी सुलह की कोई गुंजाईश न हो।

    3. अगर दोनों पक्ष पत्नी के गुज़ारे के लिए स्थाई बंदोबस्त, बच्चों की कस्टडी आदि मुद्दों को पुख्ता तौर पर हल कर चुके हों।

    4. अगर 6 महीने का इंतज़ार दोनों की परेशानी को और बढ़ाने वाला नज़र आए


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