दिल्ली हाईकोर्ट : पुनर्विचार उपचार मौजूद तो भी हो सकता है Cr.PC 482 का इस्तेमाल
LiveLaw News Network
8 Sept 2017 5:51 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी मामले में 399/401 के तहत पुनर्विचार का उपचार मौजूद है तो इसका मतलब ये नहीं है है कि CRPC के सेक्शन 482 के तहत अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट ने ये आदेश सुप्रीम कोर्ट के प्रभु चावला मामले में फैसले के आधार पर दिया है।
प्रभु चावला मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने ये सुनवाई की थी। कोर्ट को ये तय करना था कि पुनर्विचार का उपचार हो तो क्या 482 के तहत आरोप रद्द करने की याचिका दाखिल की जा सकती है या नहीं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो अलग अलग बेंच ने दो अलग अलग फैसले दिए थे। एक में कहा गया कि 482 के तहत याचिका दाखिल नहीं हो सकती जबकि दूसरे फैसले में कहा गया कि पुनर्विचार का उपचार हो भी तो ये याचिका दाखिल की जा सकती है।
प्रभु चावला ने दूसरे फैसले के आधार पर याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि एेसे मामले में याचिका दाखिल करने पर रोक या उसे सीमित नहीं किया जा सकता। प्रभु चावला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लाइव लॉ पर यहां देखा जा सकता है।
दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी तलाशी और जब्ती के आदेश को चुनौती दी गई थी और CRPC के सेक्शन 482 के तहत इसे रद्द करने की मांग की गई थी। उसी वक्त हाईकोर्ट में इस याचिका को ही सुनवाई योग्य ना होने की बात कही गई। कहा गया कि मजिस्ट्रेट के CRPC 94 के तहत आदेश को 399 के तहत पलटा जा सकता है इसलिए 482 में इस याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती। ये भी कहा गया कि प्रभु चावला केस में सुप्रीम कोर्ट ने कई तथ्यों को नजरअंदाज किया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुरुआत में ये छानबीन की कि मजिस्ट्रेट का आदेश अन्तर्ववर्ती है या फिर अंतिम आदेश। इसमें सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश भी देखे गए कि कोई फैसला शिकायतकर्ता के विवाद के तौर पर अंतिम साबित नहीं किया जा सकता। इससे साफ हो गया कि विवाद बाकी रहता भी है तो ये इससे संबंधित नहीं रहा। इस आदेश के आधार पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि तलाशी और जब्ती के आदेश कोई अन्तर्ववर्ती आदेश नहीं थे। Cr.P.C 399/401 के तहत इन्हें पलटा भी जा सकता है। लेकिन ये भी तथ्य बरकरार है कि CRPC के सेक्शन 482 का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। कोर्ट ने ये भी माना कि प्रभु चावला फैसला हाल की आया है और ये अथॉरिटिव भी है। इसलिए कोर्ट को ये ही रास्ता अपनाना चाहिए।