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संविधान का अनुच्छेद 324 को चुनाव आयोग के लिए अधिकारों का हौज नहीं : चुनाव आयोग

LiveLaw News Network
8 Sep 2017 8:15 AM GMT
संविधान का अनुच्छेद 324 को चुनाव आयोग के लिए अधिकारों का हौज नहीं : चुनाव आयोग
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संविधान के अनुच्छेद 324 को चुनाव आयोग के लिए अधिकारों का हौज कहा जाता है लेकिन चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मौजूदा कानूनों से घिरा होने की वजह से वो अपने अधिकारों का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता।

दरअसल संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को चुनाव के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण के अधिकार मिलते हैं जो सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों में विषय रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी ये मानता रहा है कि ये अनुच्छेद फ्री एंड फेयर चुनाव की गारंटी देने के लिए चुनाव आयोग के लिए हौज के समान है।

चुनाव आयोग की ओर से पेश मीनाक्षी अरोडा ने उस वक्त सबको अचंभे में डाल दिया जब उन्होंने जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच के सामने कहा कि चुनाव आयोग के पास सीमित शक्तियां हैं। चुनाव आयोग ने सुधारों को लेकर करीब 43 सिफारिशें केंद्र की विभिन्न सरकारों को भेजी हैं जो इस अधिकार के तहत एक बडा अंतर पैदा कर सकती हैं।

दरअसल 324 के तहत चुनाव आयोग उन सभी मामलों में दखल दे सकता है और फैसले ले सकता है जिनमें वैधानिक रूप से स्पष्टता नहीं है। इसका मकसद फ्री एंड फेयर चुनाव को सुनिश्चित किया जा सके।

हालांकि कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या उसने एेसी स्थिति में प्रभावी तौर पर इस अधिकार का इस्तेमाल किया। वहीं मामले में हस्तक्षेप याचिकाकर्ता एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से पेश कामिनी जयसवाल ने कहा कि 324 का सीधा संबंध मतदाता के अपने अधिकार के सही इस्तेमाल करने से भी है जिससे वो प्रत्याशी के बारे में सही जानकारी जुटा सके।

चुनाव आयोग ने बताया कि उसे प्रत्याशी द्वारा नामांकन के दौरान गलत सूचना देने पर अयोग्य करार देने में परेशानी हो रही है। क्योंकि जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्शन 125 A के तहत नामांकन के वक्त गलत जानकारी देने पर अधिकतम 6 महीने की जेल हो सकती है।

चुनाव आयोग केंद्र सरकार से सिफारिश कर चुका है कि इसे IPC के प्रावधान 193 के साथ रखना चाहिए जिसमें गैर न्यायिक प्रक्रिया में जानबूझकर गलत सूचना देने या गलत तथ्यों व सबूतों को देने पर अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है। चुनाव आयोग ने केंद्र से 125 A के तहत सजा को दो साल करने को कहा है।

जनप्रतिनिधि अधिनियम के सेक्शन 8 के तहत किसी किसी को कुछ अपराधों में छह महीने से ज्यादा सजा होने पर उसे अयोग्य करार दिया जाए। अरोडा ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने इन सिफारिशों पर कदम नहीं उठाया इसके तहत वो एेसे प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित नहीं करता जो नामांकन के दौरान झूठा हलफनामा दाखिल करते हैं।

गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 12 सितंबर को सुनवाई करेगा। इस दौरान केंद्र सरकार को बताना है कि उसने एेसे विधायकों व सांसदों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है जिनकी संपत्ति बेतहाशा बढी है।

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