निजता पर फैसले के बाद अब पांच जजों की संविधान पीठ शुक्रवार को करेगी IPC की धारा 377 पर सुनवाई
LiveLaw News Network
5 Sept 2017 9:45 PM IST
निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ के एेहतिहासिक फैसले के बाद अब समलैंगिक संबंधों पर IPC की धारा 377 को चुनौती देने वाली क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट की कॉज लिस्ट के मुताबिक शुक्रवार 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ये सुनवाई करेगी। हालांकि पीठ में शामिल जजों की जानकारी अभी नहीं दी गई है।
ये पहला मौक़ा होगा जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा दिये निजता के अधिकार के फ़ैसले को नजर में रखते हुए इस मामले की सुनवाई होगी।
गौरतलब है कि नाज फाउंडेशन की क्यूरेटिव याचिका में कहा गया है कि ये कानून लोगों के मूल अधिकारों का हनन करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। ये गे, लेस्बियन के कानून संविधान द्वारा दिए के जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है जिसके तहत सभी को अपना पार्टनर चुनने और अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है।
बता दें कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 में बदलाव करने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में बदलाव करना संसद का काम है। इसके खिलाफ दायर संशोधन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर खुली अदालत में सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था। समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ नाज़ फाउंडेशन ने क्यूरेटिव पेटिशन दाखिल की थी।
2 फरवरी 2016 को हई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने वयस्कों के बीच बंद कमरे में सहमति से बने संबंधों को संवैधानिक अधिकार बताते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं था। हालांकि अदालत में मौजूद चर्च के वकील और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ने याचिका का विरोध किया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस तीर्थ सिंह ठाकुर ने मामले को पांच जजों के संविधान पीठ में भेज दिया था।
पिछले साल डांसर एन एस जौहर, शेफ रितू डालमिया, होटल मालिक अमन नाथ समेत कई लोगों ने भी इसी तरह की याचिका दायर की थी।
दरअसल 24 अगस्त को आए निजता के अधिकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नाज फाउंडेशन के जजमेंट का जिक्र करते हुए कहा था कि एलजीबीटी के अधिकार को तथाकथित नहीं कहा जा सकता।
चीफ जस्टिस सहित चार जजों ने अपने जजमेंट में नाज फाउंडेशन से संबंधित जजमेंट का जिक्र किया है और कहा है कि सेक्सुअल ओऱिएंटेशन (अनुकूलन) निजता का महत्वपूर्ण अंग है। नाज फाउंडेशन मामले में दिए फैसले में हाई कोर्ट ने धारा-377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा-377 यानी होमो सेक्सुअलिटी को अपराध करार दिया था।
लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो कारण बताया वह सही नहीं था कि वह निजता को अनुच्छेद-21 का पार्ट क्यों नहीं मान रहे ? निजता का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है इसे इस आधार पर मना नहीं किया जा सकता कि समाज के छोटे हिस्से एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) की ये बात है। सेक्सुअल ओरिएंटेशन निजता का महत्वपूर्ण अंग है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि किसी के साथ भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव करना उसके गरिमा के प्रति अपराध है। किसी का भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन समाज में संरक्षित होना चाहिए। अनुच्छेद-14, 15 और 21 के मूल में निजता का अधिकार है और सेक्सुअल ओरिएंटेशन उसमें बसा हुआ है। एलजीबीटी के अधिकार को तथाकथित अधिकार कहा गया था जो नहीं कहा जाना चाहिए था। उनका अधिकार भी असली अधिकार है। जीवन के अधिकार से उनको निजता का अधिकार मिला हुआ है। समाज के हर वर्ग को संरक्षण मिला हुआ है। उसमें भेदभाव नहीं हो सकता। चूंकि धारा-377 का मामला लार्जर बेंच में लंबित है ऐसे में इस मसले पर वही फैसला लेंगे