शहाबुद्दीन को पटना हाईकोर्ट से झटका, तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा बरकरार
LiveLaw News Network
30 Aug 2017 4:53 PM IST
बिहार के बहुचर्चित तेजाब कांड में आरजेडी के बाहुबली नेता और सीवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को एक और बडा झटका लगा है। शहाबुद्दीन की उम्रकैद की सजा बरकरार रहेगी। पटना हाईकोर्ट ने बुधवार को ये फैसला सुनाया है। तेजाब कांड में सीवान की स्पेशल कोर्ट शहाबुद्दीन को सजा सुना चुकी है। इसी सजा के खिलाफ शहाबुद्दीन ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर बुधवार को फैसला आया है। पटना हाईकोर्ट ने 30 जून 2017 को ही शहाबुद्दीन की सजा पर फैसला सुरक्षित कर लिया था।
दरअसल सिवान की विशेष कोर्ट ने 11 दिसंबर 2015 को तेजाब हत्याकांड में फैसला सुनाते हुए मोहम्मद शहाबुद्दीन, राजकुमार साह, मुन्ना मियां और शेख असलम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस मामले में तेजाब कांड में जान गंवाने वाले युवकों की मां कलावती देवी ने 16 अगस्त 2004 को सीवान के थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।
गौरतलब है कि 16 अगस्त 2004 को बिहार के सीवान के कारोबारी चंदा बाबू जमीन विवाद के निपटारे के लिए पंचायत में थे। पंचायत में ही कुछ लोगों ने उन्हें मारने की धमकी दी। पंचायत में उनके साथ मारपीट भी हुई। विवाद बढ़ता देख चंदा बाबू अपने घर आ गए। वे पत्नी और बेटों के साथ कहीं भागने लगे तभी वहां कुछ बदमाश आ गए। चंदा बाबू ने घर में रखे तेजाब को बदमाशों पर फेंककर अपनी और अपने परिवार की जान बचाई। आरोप है कि उसी शाम चंदा बाबू के दोनों बेटों गिरीश राज उर्फ निक्कू और सतीश राज उर्फ सोनू को कुछ लोगों ने अगवा कर लिया था। इसके बाद सीवान शहर के चौराहे पर दोनों पर तेजाब डालकर उनकी हत्या कर दी गई थी। इसके बाद 16 जून 2014 को सीवान के डीएवी कॉलेज मोड़ पर चंदा बाबू के तीसरे बेटे राजीव रोशन की भी गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी। इस मामले में शहाबुद्दीन आरोपी हैं।
दरअसल बिहार के RJD नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन को 15 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने उसे बिहार से दिल्ली की तिहाड जेल में ट्रांसफर कर दिया था। जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने आदेश दिया था कि सिवान की स्पेशल ट्रायल कोर्ट में चल रहे 45 मामले वहीं चलते रहेंगे और वीडियोकांफ्रेसिंग से सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि संविधान का राइट टू फेयर ट्रायल सिर्फ आरोपी के लिए नहीं बल्कि पीडित के लिए भी है। यहां सिर्फ सवाल आरोपी के अधिकारों का नहीं है बल्कि पीडितों के स्वतंत्रता से जीवन जीने के अधिकार का भी है। शहाबुद्दीन की इस दलील से कोर्ट सहमत नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट को किसी को दूसरे राज्य में जेल ट्रांसफर नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट की ये जिम्मेदारी है कि वो हर केस में फ्री एंड फेयर ट्रायल को सुनिश्चित करे। कोर्ट हर मामले के तथ्यों को देखकर और जनता के हित को ध्यान में रखकर ये फैसला कर सकता है कि फेयर ट्रायल हो।
पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन और तीन बेटों को गंवा चुके चंद्रेश्वर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर शहाबुद्दीन को बिहार से तिहाड जेल ट्रांसफर करने की मांग की थी। इससे पहले पिछले साल 30 सितंबर कोसुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए जमानत रद्द करते हुए शहाबुद्दीन को वापस जेल भेज दिया था।
हालांकि शहाबबुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उनपर लगाये गए आरोप राजनीति से प्रेरित हैं। मीडिया ने उनके मामले को बड़ा तूल दिया है। अगर उनको तिहाड़ जेल ट्रान्सफर करेंगे तो उनके अधिकारों का हनन होगा।
अगर सारे 45 केस सीबीआई को ट्रांसफर किये गए तो मामले की सुनवाई में और देरी होगी क्योंकि मामलों से सम्बंधित दस्तावेज़ जुटाने में 2 साल लग जायेंगे।
गौरतलब है कि शहाबुद्दीन को आठ मामलों में सजा हो चुकी है जबकि 43 अभी लंबित हैं