नीतीश कटारा केस में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की विकास यादव की पुनर्विचार याचिका, 25 साल की सजा बरकरार

LiveLaw News Network

29 Aug 2017 12:15 PM GMT

  • नीतीश कटारा केस में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की विकास यादव की पुनर्विचार याचिका, 25 साल की सजा बरकरार

    2002 के चर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड के दोषी विकास यादव की पुनर्विचार याचिका  सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। विकास यादव को मिली 25 साल की सजा बरकरार रहेगी।

    दरअसल विकास यादव ने सुप्रीम कोर्ट से अपने 2016 के आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा है कि उन्हें इस पुनर्विचार याचिका में कोई मेरिट नजर नहीं आती इसलिए याचिका खारिज की जाती है।

    गौरतलब है कि नीतीश कटारा हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2016 को अहम फैसला सुनाते हुए  दोषी विकास यादव को 30 के स्थान पर 25 साल की जेल काटने के आदेश दिए थे  वहीं अन्य दोषी सुखदेव पहलवान की सजा भी इसी तरह 20 साल कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि IPC की धारा 201 के तहत हाईकोर्ट ने जो पांच साल की सजा अलग से दी थी, वह साथ-साथ चलेगी, इस तरह दोनों की सजा अब पांच साल घट गई। तीसरे दोषी विशाल यादव ने अपील नहीं की थी।

    इससे पहले विकास और सुखदेव पहलवान ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 अप्रैल 2014 को हत्याकांड को ऑनर किलिंग करार देते हुए तीनों हत्यारों को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा था कि विकास यादव व विशाल यादव को 30 साल से पहले सजा में छूट पर विचार न हो जबकि सुखदेव पहलवान की सजा में 25 साल से पहले छूट पर विचार न हो।

    इस मामले में विकास और सुखदेव पहलवान ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। साथ ही मामले में नीतीश की मां नीलम कटारा और अभियोजन पक्ष की ओर से अर्जी दाखिल कर उनकी सजा बढ़ाने और फांसी की मांग की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नीलम कटारा की फांसी की गुहार ठुकरा दी थी साथ ही विकास और अन्य को हत्या में दोषी करार दे दिया था।

    सजा पर बहस के दौरान विकास यादव की ओर से दलील दी गई थी कि हत्या मामले में या तो फांसी की सजा का प्रावधान है या फिर उम्रकैद की सजा का प्रावधान। मामले में उम्रकैद की सजा का मतलब उम्रकैद होता है और उसके लिए कोई फिक्स टर्म तय नहीं किया जा सकता।

    सजा में छूट देने का अधिकार एग्जेक्यूटिव का है और ऐसे में उसमें दखल नहीं दिया जा सकता। वहीं अभियोजन पक्ष की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट दयान कृष्णन ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट श्रद्धानंद के केस में इस बात की व्याख्या कर चुका है कि अदालत सजा में छूट देने के बारे में टर्म तय कर सकती है.

    पुलिस के मुताबिक नीतीश कटारा 17 फरवरी, 2002 को गाजियाबाद के डायमंड हॉल में अपनी दोस्त की शादी में शामिल होने गए थे। वहीं से नीतीश का विकास और विशाल ने अपहरण किया और सुखदेव पहलवान के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी। नीतीश कटारा की विकास की बहन से दोस्ती थी और यह दोस्ती विकास और विशाल को पसंद नहीं थी इसी कारण नीतीश की हत्या की गई।

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