Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

मेंटल हेल्थ एक्ट केसों में हाईकोर्ट के दखल के बाद निचली अदालतों में अब जल्द सुनवाई होगी पूरी

LiveLaw News Network
25 Aug 2017 5:10 AM GMT
मेंटल हेल्थ एक्ट केसों में हाईकोर्ट के दखल के बाद निचली अदालतों में अब जल्द सुनवाई होगी पूरी
x

पांच महीने पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार भाई के इलाज के लिए उसकी संपत्ति बेचने की याचिका पर सुनवाई में देरी पर नाराजगी जाहिर की थी। अब  दिल्ली के जिला एवं सत्र जज ( मुख्यालय) ने सभी न्यायिक अफसरों को निर्देश दिया है कि एेसे मामलों का निपटारा 90 दिनों के भीतर किया जाए।

जिला एवं सत्र जज ( मुख्यालय) तलवंत सिंह ने ये निर्देश जारी करते हुए कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के तहत मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 के सेक्शन 77 के मामलों को 90 दिनों के भीतर निपटाया जाए। अगर अपरिहार्य कारण हों तो छह महीने के भीतर निपटारा हो। ये निर्देश जस्टिस जे आर मिड्ढा के 13 फरवरी 2017 के आदेश के तहत दिए गए हैं।

जस्टिस जे आर मिड्ढा ने भगवान की उस याचिका पर सुनवाई में ट्रायल कोर्ट द्वारा दो साल देरी करने पर नाराजगी जाहिर की थी। भगवान अपने मानसिक रूप से बीमार भाई मुकेश के इलाज के लिए पाई पाई को मोहताज था। उसने मुकेश के इलाज के लिए उसके नाम खेती की जमीन के हिस्से को बेचने की इजाजत के लिए याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने एेसे केसों के रिकार्ड भी तलब किए थे और आदेश दिया था कि ये मामले 90 दिनों में निपटाए जाएं।

दरअसल 22 मई 1987 को  मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 बनाया गया था और मानसिक रूप से बीमार लोगों के उपचार और देखभाल के लिए संपत्ति व अन्य प्रावधान दिए गए। सेक्शन 59 के तहत मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति की संपत्ति की देखभाल करने वाले को बेचने, गिरवी रखने या लीज ट्रांसफर करने के लिए जिला जज के सामने याचिका दाखिल करनी होगी।

याचिका में भगवान ने बताया था कि मुकेश 75   फीसदी मानसिक बाधा से पीडित है और वो ही मुकेश की देखभाल कर रहा है। भगवान ने 13 अगस्त 1999 में सफदरजंग अस्पताल द्वारा जारी डिसेबलिटी सर्टिफिकेट भी लगाया। भगवान ने ट्रायल कोर्ट को बताया कि 2006 में उत्तर पश्चिम जिले के उपायुक्त ने उसे मुकेश की संपत्ति के रखरखाव और प्रबंधन का सरंक्षक भी घोषित किया था। उसने बताया कि वो खेती से आने वाले सातवें हिस्से से मुकेश की देखभाल कर रहा है लेकिन देखभाल का खर्च बढ रहा है और खेती से इलाज का खर्च नहीं चल पा रहा है इसलिए मुकेश के कुछ हिस्से को बेचने की इजाजत दी जाए।

ट्रायल कोर्ट ने 16 मई 2003 को मामले की सुनवाई की और मुकेश से कुछ सवाल पूछे लेकिन वो जवाब नहीं दे पाया। कोर्ट ने IBHAS के मेडिकल बोर्ड से जांच कराई और नवंबर 2003 में रिपोर्ट दी गई कि मुकेश को मानसिक रूप से बीमारी है और वो बोलने के साथ साथ अपनी और संपत्ति की देखभाल करने में असमर्थ है। इसके बाद कई बार सुनवाई टली और अगस्त 2014 में ट्रायल कोर्ट ने भगवान को कोर्ट को संतुष्ट करने को कहा कि कोर्ट को मामले की सुनवाई का अधिकार है। इसके बाद 28 अप्रैल 2015 को कोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ये मामला कोर्ट के अधिकारक्षेत्र से बाहर है क्योंकि संपत्ति को दिल्ली से बाहर बेचा जाना है।

भगवान ने इसकी अपील दिल्ली हाईकोर्ट में की और हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई कि जनवरी 2013 से 28 अप्रैल 2015 तक ये मामला लंबित रहा। जस्टिस मिड्ढा ने कहा कि भगवान के मुकेश की देखभाल के लिए जल्द फैसले की जरूरत थी। एेसे में प्रमुख जिला जज ये आदेश जारी करें कि कोर्ट एेसे मामले 90 दिनों के भीतर निपटाएं और अपरिहार्य कारणों की वजह से छह महीने में निपटारा हो। हाईकोर्ट ने प्रमुख जिला जज से आठ हफ्ते में एेसे लंबित केसों का रिकार्ड भी मांगा है।

Next Story