घर वापसी का मुद्दा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दलित क्रिश्चिएनों ने मांगा अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण

LiveLaw News Network

23 Aug 2017 12:41 PM GMT

  • घर वापसी का मुद्दा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दलित क्रिश्चिएनों ने मांगा अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण

    घर वापसी का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। आल इंडिया कैथोलिक यूनियन और राजनितिक एक्टिविस्ट जॉन दयाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दलित क्रिश्चियन को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण देने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

    सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में संविधान के 1950 (SC) आदेश के पैरा 3 को चुनौती है जिसमें कहा गया है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के अलावा अन्य किसी को अनुसूचित जनजाति के तहत आरक्षण या लाभ नहीं मिलेगा।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील पीआई जोश ने चीफ जस्टिस जे एस खेहर और डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने कहा कि इसी प्रावधान का गलत फायदा RSS और VHP जैसे राइट विंग संगठन दलित क्रिश्चियन और मुस्लिमों को घर वापसी के नाम पर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि RSS व उससे जुडे अन्य संगठन सुप्रीम कोर्ट में 2004 से लंबित  मामले की सुनवाई में देरी के चलते घर वापसी जैसे फायदे उठा रहे हैं। यहां तक कि केंद्र सरकार भी मामले में जवाब दाखिल करने में देरी कर रही है। एेसे में सुप्रीम कोर्ट को मामले की जल्द सुनवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करने के बाद इस मामले को भी रिट पेटिशन 180/2004 के साथ जोड दिया है। याचिका में घर वापसी के मुद्दे पर चिंता जताते हुए इस प्रावधान को रद्द करने की मांग भी की गई है।

    दरअसल 2004 में इसी तरह की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी लेकिन इस पर सुनवाई नहीं हो सकी है क्योंकि केंद्र ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है।

    याचिका में कहा गया है कि RSS और VHP जैसे संगठन इसी देरी का फायदा उठाकर दलित क्रिश्चिएन को धर्म परिवर्तन के जरिए अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण व लाभ दिलाने का लालच दे रहे हैं।

    याचिका में इस नियम को हटाने के लिए कहा गया है जिसमें अनुसूचित जाति के क्रिश्चिएन जो किसी अन्य धर्म या जीवन के तरीके को नहीं मानते, को अलग किया गया है। कहा गया है कि एक तरफ तो दलित क्रिश्चिएन को संविधान में दिए आस्था और पूजा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है तो दूसरी ओर राजनीतिक और संस्थागत सरंक्षण वाले संकीर्ण कट्टरपंथी धार्मिक संगठन घर वापसी जैसे हिंसक आयोजनों को लेकर उनके शांतिपूर्व जीवन जीने के अधिकार से वंचित कर रहे हैं।

    गौरतलब है कि फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदू धर्म में परिवर्तित होने वाले दलित क्रिश्चिएन या मुस्लिम को आरक्षण का लाभ तभी मिलेगा जब वो ये साबित कर दे कि उसके पुरखे अनुसूचित जाति से ही संबंधित थे। उस वक्त क्रिश्चिएन समाज ने आपत्ति उठाते हुए कहा था कि ये फैसला घर वापसी को कानूनी जामा पहनाने के लिए है जबकि धर्म परिवर्तन करने वाले इस्लाम या क्रिश्चिएन दलित को आस्था के अधिकार के लिए सजा देता है। जबकि सिख धर्म या बौद्ध धर्म अपनाने वालों को ये सजा नहीं देता। संविधान के आदेश ( SC) 1950 का पैरा 3 राज्यों को हिंदू या हिंदू धर्म अपनाने वालों की पहचान करने और हिंदू धर्म का प्रचार करने की इजाजत देता है। इस तरह ये नियम क्रिश्चिएन दलितों के साथ भेदभाव करता है और सरकारों को हिंदू धर्म को पसंद करने का विशेषाधिकार भी देता है। साथ ही ये संविधान के मूल ढांचे जिसमें समानता और धर्मनिरपेक्षता शामिल है का भी उल्लंघन करता है।


     
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