Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

निचली अदालतों के लिए जजों की केंद्रीयकृत चयन प्रक्रिया का कई राज्यों व हाईकोर्ट ने किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली

LiveLaw News Network
22 Aug 2017 4:22 PM GMT
निचली अदालतों के लिए जजों की केंद्रीयकृत चयन प्रक्रिया का कई राज्यों व हाईकोर्ट ने किया विरोध, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली
x

निचली अदालतों में जजों की  नियुक्ति के लिए केंद्रीयकृत चयन प्रक्रिया ( CSM) के मुद्दे पर कई राज्यों व हाईकोर्ट की आपत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को दो हफ्ते के लिए टाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई शुरु की है।

इसका मतलब ये है कि अब ये मामला दोबारा से सुना जाएगा क्योंकि बेंच में शामिल चीफ जस्टिस जे एस खेहर 27 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं और नए चीफ जस्टिस अब इस मामले की सुनवाई के लिए नई बेंच का गठन करेंगे। कोर्ट ने केस में एमाइक्स क्यूरी वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को मुद्दे पर दूसरा कांसेप्ट नोट तैयार करने को कहा है।

दरअसल निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्रीयकृत चयन प्रक्रिया का कलकत्ता, छत्तीसगढ, सिक्किम, असम, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान, अांध्र प्रदेश और  तेलंगाना हाईकोर्ट के अलावा संबंधित राज्यों ने विरोध किया है। विरोध करने में आरक्षण, भाषा का सरंक्षण, संघीय ढांचे के तहत राज्यों को चयन के अधिकार को आधार बनाया गया है।

मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान गुवाहाटी हाईकोर्ट और असम राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया जोकि अपनी सहयोगी स्नेहा कालिता के साथ थे, ने कहा कि CSM न्यायपालिका के भीतर संघीय ढांचे की संवैधानिक योजना का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 233 (2) के तहत जिला जज के  सीधे नियुक्ति के जरिए चयन और सिफारिश के लिए हाईकोर्ट ही सक्षम है। इसके अलावा केंद्रीय चयन समिति में चार ही जगह पांच जोन होने चाहिए और पांचवा जोन उत्तर पूर्व हो। फाइनल के लिए साक्षात्कार संबंधित हाईकोर्ट ही कराए।

छत्तीसगढ की ओर से पेश एडवोकेट जनरल जुगल किशोर गिल्डा ने कहा कि ज्यादातर न्यायिक अफसरों की मुख्य भाषा हिंदी है और इनमें अनुसूचित जनजाति के अफसरों की संख्या ज्यादा है। एेसे में उन्हें बाकी जगह आरक्षण मिलने में मुश्किल होगी। उन्होंने कहा कि पूरा राज्य नक्सलवाद से प्रभावित है। दूसरे राज्यों के न्यायिक अफसर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनाती के लिए तैयार नहीं होंगे।

दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन की ओर से कहा गया कि 21 अगस्त को हाईकोर्ट की फुल कोर्ट मीटिंग हुई है और केंद्रीय चयन समिति समेत कई मुद्दों पर सुझाव की सूची तैयार की गई है। इस समिति के सदस्यों में सभी हाईकोर्ट के प्रतिनिधि होने चाहिए। हाईकोर्ट ने हलफनामे में कहा कि कांसेप्ट नोट में दी गई समयसीमा अवास्तविक और अव्यवहारिक है।

दरअसल एमिक्स दातार ने बडे पैमाने पर जजों की नियुक्ति के लिए डिस्ट्रिक जज रिक्रूटमेंट एग्जामिनेशन (DJURE) कराने का कांसेप्ट नोट दाखिल किया है।

गुवहाटी हाईकोर्ट की दलील

जिला जजों की डायरेक्ट कोटा के तहत नियुक्ति को जारी रखा जाना चाहिए और एमाइक्स द्वारा सुझाई गई केंद्रीय चयन प्रक्रिया राज्यों में हाईकोर्ट के अधिकारक्षेत्र के तहत शायद लागू नहीं किया जा सकेगा।

संविधान के 42 वें संशोधन में अनुच्छेद 312 के तहत संसद को ये अधिकार दिया गया है कि वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन कर सकती है लेकिन इसके लिए राज्यों की काउंसिल के 2/3 बहुमत चाहिए। संसद ने सिविस सर्विस के लिए ऑल इंडिया सर्विस एक्ट 1951 की तरह कोई कानून पास नहीं किया है।

साथ ही कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के 28 अप्रैल 2017 के एक पत्र को लेकर संज्ञान लिया है जिसमें एरियर कमेटी की मीटिंग का हवाला दिया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के गोयल, जस्टिस ए एम खानवेलकर के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट से दो जज, केंद्र सरकार के अफसर और दो वरिष्ठ वकील शामिल थे। इस मीटिंग में अन्य हाईकोर्ट या राज्य सरकार के प्रतिनिधि नहीं थे। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेकेट्री को ये पत्र लिखने से पहले अन्य हाईकोर्ट से भी विचार मांगने चाहिए थे।

Next Story