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सासंद अपनी सासंद निधि का खुलासा करने को बाध्य, CIC ने संसदीय पार्टियों को RTI के दायरे में लाने के लिए सुझाव मांगे।

LiveLaw News Network
21 Aug 2017 10:43 AM GMT
सासंद अपनी सासंद निधि का खुलासा करने को बाध्य, CIC ने संसदीय पार्टियों को RTI के दायरे में लाने के लिए सुझाव मांगे।
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केंद्रीय सूचना आयोग ने बीजेपी और अन्य राजनीतिक पार्टियों से इस मुद्दे पर विचार मांगे हैं कि क्यों ने सभी विधायी और संसदीय पार्टियों के RTI एक्ट के दायरे में लाया जाए और पार्टियां स्वैच्छिक तौर पर MPLAD योजना  के तहत कार्यों के लिए जारी फंड का खुलासा क्यों नहीं करतीं ? आयोग ने कहा है कि सिद्धांत के मुताबिक सभी विधायी या संसदीय पार्टियों को पब्लिक अथॉरिटी समझा जाना चाहिए।

सूचना आयुक्त एम श्रीधर अर्चायुलु ने केंद्र और राज्यों की राजनीतिक पार्टियों से उनके विचार मांगे हैं तो साथ ही सिविल सोसाइटी जिनमें NGO और सामान्य नागरिक शामिल हैं, से 8 सितंबर 2017 तक विचार मांगे हैं।

आयोग के ये आदेश विष्णु देव भंडारी की याचिका पर आए हैं जो बिहार के मधुबनी जिले के कटूना इलाके में चल रहे विकास कार्य की जानकारी RTI के तहत लेना चाहते थे। ये कार्य  मेंबर ऑफ पार्लियामेंट लोकल एरिया डवलपमेंट फंड ( MPLAD) के तहत कराया जा रहा था। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने इसका जवाब तक नहीं दिया जबकि भंडारी ने ये भी पूछा था कि क्या इसके लिए संबंधित सांसद से पूछा जाए ?

आयोग ने कहा कि मतदाता और याचिकाकर्ता पब्लिक अथॉरिटी से जवाब ना मिलने से क्रोधित था। हालांकि उसका सवाल सही और लोकतांत्रिक लगता है। एेसे में मतदाता किससे ये सवाल पूछेगा, प्रतिनिधि से या उस एजेंसी से जो जनप्रतिनधि द्वारा जारी फंड से काम कर रही है। अगर कोई मतदाता संसद में अपने प्रतिनिधि द्वारा सांसद निधि से कराए जा रहे कार्य के बारे में जानकारी मांगता है तो इसलिए कि कार्य सही तरीके से हो रहा है या नहीं।

आयोग ने कहा कि एक मतदाता को ये पूरा अधिकार है कि वो कार्य के चयन, प्रगति, अधूरे कार्य, देरी और कार्य के समापन के बारे में RTI के जरिए जानकारी हासिल करे।

मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुए कि क्यों ना जवाब दाखिल करने के लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की जाए, आयोग ने सासंद हुकुमदेव  नारायण यादव के सहायक/ PIO और PS को उक्त कार्य के चयन या खारिज करने के तरीके, कार्य संबंधी जानकारी 7 सितंबर 2017 तक देने के लिए कहा है। आयोग ने ये भी कहा है कि सांसद गोपनीयता की शपथ लेते हैं तो वो टैक्स देने वाले लोगों के पांच करोड रुपये के MPLAD फंड के इस्तेमाल की जानकारी देने के लिए बाध्य भी हैं।

आयोग ने कहा कि सासंद बीजेपी के सदस्य हैं और बीजेपी की संसदीय पार्टी के  संभावित पालिसी या दिशानिर्देश को देखते हुए सरकार के चीफ व्हिप, लोकसभा में बीजेपी के नेता और उपनेता या कोई अन्य प्राधिकृत प्रतिनिधि आयोग के सामने विचार रखे कि क्यों ना RTI एक्ट, 2005 के 2(h) के तहत बीजेपी संसदीय पार्टी को पब्लिक अथॉरिटी घोषित किया जाए ? ये सुनवाई सात सितंबर 2017 को दो बजे होगी।

आयोग ने ये भी कहा कि चूंकि बीजेपी केंद्र सरकार में है और कहती है कि वो पारदर्शी और साफ सुथरी सरकार के लिए प्रतिबद्ध है तो एेसे में आयोग सिफारिश करता है कि वो चुनाव क्षेत्र के हिसाब से उन सब विकास कार्यों के पैमाने और प्रगति की सूची दो MPLAD के तहत किए जा रहे हैं। ये सूची और जानकारी उनकी ऑफिसियल वेबसाइट/ पार्टी वेबसाइट या विधायी  पार्टी या MP की वेबसाइट पर जारी की जा सकती है ताकि उचित वक्त में वो देश के मतदाताओं को जानकारी देतर अपने लोकतांत्रिक दायित्व का निर्वहन कर सके।

इसके साथ ही आयोग ने केंद्र और राज्यों के सदन में रहने वाली सभी संसदीय व विधायी पार्टियों से पूछा है कि क्यों ना उन्हें भी पब्लिक अथॉरिटी घोषित किया जाए और वो क्यों ना जानकारियों को स्वैच्छिक तौर पर सार्वजनिक करें ?

आयोग ने सभी NGO और सामान्य नागरिकों को madabhushisridhar@gov.in पर ईमेल के जरिए 8 सितंबर 2017 से पहले विचार/ सुझाव देने को कहा है।

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