पथरीबल एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार, केंद्र और सीबीआई को नोटिस
LiveLaw News Network
21 Aug 2017 1:22 PM IST
साल 2000 में जम्मू एवं कश्मीर के पथरीबल में हुए एनकाउंटर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने का निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी किया है। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस एम एम शांतनागोदर बेंच ने नोटिस जारी करने के बाद मामले की 6 हफ्ते बाद अंतिम सुनवाई करने का निर्देश जारी किया है।
पीडित परिवार वालों वे सुप्रीम कोर्ट में दायर इस संबंध में दायर याचिका में दावा किया गया है कि इस फर्जी एनकाउंटर में पांच निर्दोष गांव वालों को मार दिया गया था लेकिन सेना ने इस एनकाउंटर केजिम्मेदार सेना के पांच अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा खत्म कर दिया। हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद नाजिर अहमद दलाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
याचिका में कहा गया है कि ये सुनियोजित साजिश होने के बावजूद सेना ने इस केस को सबूत ना होने का कारण बताते हुए बंद कर दिया जो मनमाना, अवैध और प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। सेना ने उन लोगों का गवाह बनाया जिनका केस से कोई लेना देना नहीं था और फिर उनकी गवाही के आधार पर केस को बंद कर दिया। ये कदम न्याय का मखौल उडाना है। याचिका में ये भी कहा गया है कि सेना को इस मामले में विशेषाधिकार दिए गए हैं ताकि सेना के लोग भी कानून का उल्लंघन करने पर बच ना पाएं। लेकिन इस मामले में सेना ने बिना कोर्ट मार्शल के ही एनकाउंटर करने वालों को छोड दिया।
याचिका में ये भी कहा गया है कि सामान्य कोर्ट की तरह सेना के कोर्ट मार्शल में कोई मैकेनिज्म नहीं होता तो निष्पक्ष तौर पर सबूतों पर गौर कर सके और प्रभावी फैसला दे सके। ये आर्मी एक्ट की वजह से है क्योंकि ये सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए बनाया गया है। एेसे में कोर्ट मार्शल में फर्जी एनकाउंटर जैसे गंभीर मामलों की सुनवाई नहीं की जा सकती। ये सिर्फ आपराधिक अदालत में ही हो सकती है।
मामले के मुताबिक, मार्च, 2000 में जम्मू एवं कश्मीर के छत्तीसिंहपुरा में 37 सिखों की अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी थी। इस घटना केबाद सेना ने 25 मार्च, 2000 को एनकाउंटर कर पांच लोगों को मार गिराया था। सेना का दावा था कि यह सभी पाकिस्तानी नागरिक थे और उनका संबंध आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से था। लेकिन पथरीबल गांव के लोगों ने दावा किया कि ये गांव के गरीब लोग थे और बेकसूर थे। पीडित पक्ष का कहना था कि इस फर्जी एनकाउंटर केजिम्मेदार सेना के 7 PR के पांच अधिकारी थे। पीडित परिवार ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई। बाद में मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच सीबीआई को सौंप दी गई। सीबीआई की चार्जशीट में इसे फर्जी एनकाउंटर बताते हुए पांच सैन्य अधिकारियों को आरोपित किया था।
चार्जशीट पर गौर करने के बाद निचली अदालत ने सेना को यह विकल्प दिया था कि वह इस मामले में कोर्ट मार्शल चाहती है या न्यायालय में मुकदमे के पक्ष में है? सेना ने कोर्ट मार्शल के विकल्प को चुना। सेना में पांच अधिकारियों पर लगे आरोप को निरस्त कर दिया। इसकेबाद पीडित पक्ष ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहां से राहत ना मिलने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका(एसएलपी) दायर की गई है।