अब दस साल की रेप पीडिता को 10 लाख के मुआवजे की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चंडीगढ प्रशासन को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

18 Aug 2017 10:27 AM GMT

  • अब दस साल की रेप पीडिता को 10 लाख के मुआवजे की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चंडीगढ प्रशासन को नोटिस जारी किया

    बिहार के बाद अब बारी चंडीगढ की है। चंडीगढ़ में दस  साल की रेप पीड़ित बच्ची के मामले में  सुप्रीम कोर्ट ने बच्ची को मुआवजा ना दिए जाने पर नाराजगी जताते हुए इसचंडीगढ प्रशासन , नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ प्रशासन के मामले में चार्जशीट दाखिल करने तक इंतजार करने के नियम को बेतुका करार दिया है। कोर्ट इस मामले की सुनवाई 22 अगस्त को करेगा।

    जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच में सुनवाई के दौरान एमिक्स क्यूरी इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि चंडीगढ में केस में चार्जशीट दाखिल होने तक रेप पीडित को मुआवजा नहीं दिया जाता। अभी तक उसे सिर्फ दस हजार रुपये ही दिए गए हैं पीडित बच्ची को दस लाख रुपये मुआवजा दिलाया जाए।

    गौरतलब है कि  चंडीगढ़ के सरकारी अस्पताल में दस साल की रेप पीड़ित बच्ची ने गुरुवार को बेटी को जन्म दिया है। इस बच्ची से उसके मामा ने कई बार रेप किया था। बच्ची सेक्टर 32 के गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में बीते दो दिनों से भर्ती थी।  चिकित्सकों का एक दल उसके स्वास्थ्य की निगरानी में लगा था।  बच्ची का प्रसव सिजेरियन के जरिए कराया गया। 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने 32 हफ्ते की गर्भवती 10 साल की बलात्कार पीड़ित के गर्भपात की अनुमति के लिए दायर याचिका खारिज कर दी थी। इससे पहले, कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमे कहा गया था कि गर्भपात करना इस लड़की और उसके गर्भ के लिए अच्छा नहीं होगा।

    चीफ  जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने पीजीआई, चंडीगढ़ द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का संज्ञान लिया. यह मेडिकल बोर्ड बलात्कार पीड़ित लड़की का परीक्षण करने और गर्भपात की अनुमति देने की स्थिति के नतीजों का अध्ययन कर रिपोर्ट देने के लिए गठित किया गया था. कोर्ट ने कोर्ट में मौजूद सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि चूंकि बड़ी संख्या में इस तरह के मामले शीर्ष अदालत में आ रहे हैं, इसलिए जल्दी गर्भपात की संभावना के बारे में तत्परता से निर्णय लेने के लिए हर राज्य में एक स्थाई मेडिकल बोर्ड गठित करने के उसके सुझाव पर विचार किया जाए। इससे पहले चंडीगढ़ की जिला अदालत ने 18 जुलाई को इस बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार करने के बाद वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट चिकित्सीय गर्भ समापन कानून के तहत 20 हफ्ते तक के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देता है और वह भ्रूण के अनुवांशिकी रूप से असमान्य होने की स्थिति में अपवाद स्वरूप भी आदेश दे सकता है.

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