Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

बिहार की HIV और रेप पीडित के गर्भपात में देरी से हाईकोर्ट और अस्पताल पर नाराज सुप्रीम कोर्ट, दिलाया 10 लाख मुआवजा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
17 Aug 2017 4:33 PM GMT
बिहार की HIV और रेप पीडित के गर्भपात में देरी से हाईकोर्ट और अस्पताल पर नाराज सुप्रीम कोर्ट, दिलाया 10 लाख मुआवजा [निर्णय पढ़ें]
x

बिहार के पटना की HIV और रेप पीडित महिला के गर्भपात कराने की याचिका पर फैसले में देरी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट और सरकारी अस्पताल को  कडी फटकार लगाई है। कोर्ट ने बिहार सरकार को इस महिला को दस लाख रुपये बतौर मुआवजा देने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस ए एम खानवेलकर की बेंच ने कहा कि ये दुखद है कि महिला को लगातार गंभीर मानसिक यंत्रणा से गुजरना पडा और ये जख्म जारी ही रहा। कोई भी व्यक्ति किसी हालात का सामना करने का साहस रखता है या जुटा लेता है,लेकिन रेप का सदमा लगातार जारी रहता है और इससे उसके जीवन में उथल पुथल मचा देता है। इस महिला के हालत अब वापस नहीं किए जा सकते। लेकिन अब उसे एेसा मुआवजा दिया जाना चाहिए जिससे वो अपनी जिंदगी गरिमा से जी सके और    राज्य की अथारिटी को ये समझ में आना चाहिए कि एेसे मामलों में कामचोरी के लिए कोई जगह नहीं है बल्कि मुस्तैदी दिखाने की जरूरत है।

बेंच ने मुआवजे की रकम को महिला के नाम पर फिक्स डिपॉजिट में रखने को कहा है ताकि रुपये बच्चे के भविष्य के लिए भी सही तरीके से इस्तेमाल किए जा सकें। कोर्ट मे राज्य सरकार को बच्चे के लिए भी भोजन और मेडिकल की सुविधा उपलब्ध कराने को कहा है।

हाईकोर्ट पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की टाइमलाइन पर गौर करने के बाद कहा कि इस अति संवेदनशील मामले में त्रुटिपूर्ण रवैया अपनाया। हाईकोर्ट इस वैधानिक प्रावधान को ध्यान में रखने में नाकाम रहा कि रेप के मामले में गर्भपात कराया जा सकता है। इस नियम को नजरअंदाज कर हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड का गठन किया जिसकी वजह से और देरी हुई। उस वक्त महिला मानसिक रूप से ज्यादा परेशान नहीं थी और अपनी सहमति दे सकती थी लेकिन मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद हाईकोर्ट के जज ने उसके पति और पिता की सहमति मांगी। एेसे में जज को कानून के प्रावधान को ध्यान में रखकर पीडिता की सहमति ही मांगनी चाहिए थी। कोर्ट को इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि वो बेसहारा थी, रेप पीडित थी और शेल्टर होम में रह रही थी। बेंच ने कहा कि एेसे मामलों में अदालतों को ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए।

बेंच ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 का हवाला देते हुए गर्भवती महिला के गर्भपात कराने में निजी स्वायत्ता की अहमियत पर वैधानिक चिंता को बताते हुए कहा कि ये दिमाग में रखना चाहिए कि गर्भ के मामलों में समय काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि एक एक दिन अहम होता है। एेसे में अस्पताल और डाक्टरों को पूरी तरह चौकन्ना रहना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि शारीरिक अखंडता, निजी स्वायत्ता और संप्रभुता की धारणा के तहत महिला तो ही सम्मान दिया जाना चाहिए और बालिग के मामले में अभिभावक की सहमति पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाना चाहिए।

सरकारी अस्पताल पर भी उठाए सवाल 

सुप्रीम कोर्ट ने पटना के सरकारी अस्पताल पर भी निशाना साधा कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अस्पताल प्रशासन ने भी लापरवाही बरती। हालांकि शेल्टर होम ने तुरंत कदम उठाए लेकिन अस्पतान ने इसमें देरी की। ये देरी एक निराश महिला को डिप्रेशन में ले जाने का बीज बो सकती थी। इस निराशा में इतनी क्षमता है कि ये  किसी को भी संकट में डाल सकती है। एेसे हालात में पीडिता मौत को गले लगाने की सोच सकती है। क्योंकि प्रशासन ने एक्ट के तहत सही दायित्व नहीं निभाया जिसकी वजह से पीडिता के लंबे वक्त तक पीडा उठानी पडी। इसलिए हाईकोर्ट के आदेश को पलटकर पीडिता की अपील को मंजूर किया जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने FIR पर जांच संबंधी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती को मंजूरी नहीं दी।

दरअसल इसी साल 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि पटना की एक असहाय और HIV पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाया था।  कोर्ट ने बिहार सरकार को रेप विक्टिम फंड से चार हफ्ते के भीतर पीड़िता को तीन लाख रुपये देने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि महिला के इलाज का सारा खर्च बिहार सरकार उठाएगी और इलाज पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में होगा।

दरअसल एम्स के मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा था कि महिला का गर्भपात करने में खतरा है और अब बच्चे को जन्म दिया जाना चाहिए, हालांकि ये ट्रीटमेंट किया जा सकता है कि बच्चे को एड्स ट्रांसमिट ना हो। वहीं महिला की ओर से कहा गया कि अब महिला का गर्भ 27 हफ्ते का हो गया है। यह सब बिहार सरकार की लापरवाही से हुआ है।


सुप्रीम कोर्ट को यह देखना था कि पटना की HIV पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का क्या गर्भपात हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को इसके लिए केंद्र की मदद से महिला को हवाई जहाज के जरिए एम्स में लाकर मेडिकल बोर्ड से जांच करा कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि यहां एक मामला है जहां एक महिला
गंभीर बीमारी से पीड़ित है और असहाय है। ऐसे में उसकी जान को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की जानी चाहिए।

दरअसल पटना की सड़कों पर रहने वाली 35 साल की महिला के साथ रेप हुआ था। रेप की वजह से वह गर्भवती हो गई थी और बाद में उसे पटना के एक NGO के यहां रखा गया। मेडिकल जांच में पता चला कि वह गर्भवती है तो पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने सरकारी डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड बनाया, जिसने रिपोर्ट में कहा कि इसके लिए मेजर सर्जरी करनी पड़ सकती है। हाईकोर्ट ने गर्भपात की इजाजत देने से इंकार कर दिया और महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। महिला को उसके पति ने 12 साल पहले छोड़ दिया था।

Next Story