बोंबे हाईकोर्ट ने मां- बेटी की रेप के बाद हत्या करने वाले दो लोगों की मौत की सजा पलटी, संदेह का लाभ देकर बरी किया
LiveLaw News Network
16 Aug 2017 3:03 PM IST
बोंबे हाईकोर्ट ने 2015 में महाराष्ट्र के बीड जिले में मां- बेटी की रेप के बाद हत्या के मामले में निचली अदालत से मौत की सजा पाने वाले दो दोषियों को बरी कर दिया है।
हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच में जस्टिस एस एस शिंदे और के के सोनावाने ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए दोनों को संदेह का लाभ देते हुए कहा है कि पुलिस का सारा केस परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित था और ये दोनों को सजा देने के लिए काबिल नहीं हैं।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जांच अफसर मामले की सही जांच करने और सबूत इकट्ठा करने की बजाए दोनों आरोपियों को सजा दिलाने की कोशिश में जुटा रहा। उसने इस मामले में असली मुजरिमों तक पहुंचने की कोशिश तक नहीं की।
दरअसल 28 मई 2015 की शाम बीड जिले के चोरांबा गांव में रहने वाले गुलाब शेख अपने साथी गंगाभीषण गदे के साथ अपने भाई चांद शेख के घर गया था। वहां उसने देखा कि चांद शेख की पत्नी नूरजहां और उसका 14 साल की बेटी के शव पडे हैं। दोनों के कपडे भी फाडे गए थे। मामले की सूचना पुलिस को दी गई और गुलाब व चांद के भाई पापा शेख ने जानकारी दी कि उसने आधी रात को कृष्णा रिद्दे को उनके घर से हडबडी में बाहर निकलते देखा था। पुलिस ने इस मामले में कृष्णा और उसके साथी अच्यूत बाबू को गिरफ्तार कर लिया।
17 अगस्त 2016 को माजलगांव के स्पेशल जज ने दोनों को IPC के 449, 354 B, 376 (2) (i) , 302 और 34 व पोक्सो एक्ट के तहत दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनवाई। कोर्ट ने इस मामले को सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट भेजा।
हाईकोर्ट में आरोपी की ओर से पेश SG लड्डा ने कहा कि पुलिस इस मामले में सिर्फ परिस्थितजन्य सबूत पेश कर पाई है और ना ही वो वारदात की पूरी कडियां जोड पाई है। एेसे में उन्हें सजा नहीं सुनाई जा सकती। इसके अलावा नूरजहां अवैध शराब बेचने का धंधा करती थी और उस घर में वो, उसका पति व नाबालिग बेटी ही रहते थे। एेसे में आरोपियों को इस मामले से जोडा नहीं जा सकता।
भले ही पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर ने ये रिपोर्ट दी हो कि दोनों का जबरन रेप किया गया लेकिन हत्या के बाद हुए पोस्टमार्टम में कहा गया कि मौत दम घुटने से हुई और उनके साथ रेप नहीं हुआ।
लड्डा ने कहा कि पुलिस ने ठीक से सबूत इकट्ठा नहीं किए और मामले में पुलिस पर राजनीतिक दबाव भी था। NCP प्रमुख शरद पंवार समेत कई नेताओं ने इसके बारे में अफसरों से पूछा और बीड के SP ने जांच अफसर गणेश गावडे को जल्द जांच पूरी करने के निर्देश दिए। जांच अफसर ने जिरह के दौरान इसकी पुष्टि भी की है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वो इस दलील से सहमत हैं कि जांच अफसर किसी भी तरह दोनों को सजा दिलाना चाहता था और उसने असली अपराधी को तलाशने की कोशिश नहीं की। यहां तक कि गंगाभीषण और गुलाब शेख जैसे गवाहों के बयान तक दर्ज नहीं किए गए। ये पूरा केस परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है और पुलिस मामले में सजा देने के लिए ठोस, पर्याप्त और भरोसेमंद सबूत पेश नहीं कर पाई इसलिए निचली अदालत के फैसले को मंजूर नहीं किया जा सकता।