जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले आर्टिकल 35 A को फिर से चुनौती, लैंगिक भेदभाव वाला बताते हुए रद्द करने की मांग
LiveLaw News Network
13 Aug 2017 3:16 PM GMT

जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले आर्टिकल 35 A को फिर से चुनौती दी गई है और इसे रद्द करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इसकी सुनवाई करेगा।
पेशे से वकील और मूलत : कश्मीरी चारू वली खुराना ने अपनी याचिका में कहा है कि ये लैगिक भेदभाव करता है जो आर्टिकल भारत के संविधान द्वारा दिए जाने वाले समानता मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि संविधान ने महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार दिए हैं लेकिन 35 A पूरी तरह पुरुषों को अधिकार देता है। इसके तहत अगर कोई नागरिक किसी दूसरे राज्य की महिला से शादी करता है तो वो महिला भी जम्मू कश्मीर की नागरिक बन जाती है और उसे भी परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट मिल जाता है।
लेकिन जो बेटी कश्मीर में पैदा हुई है अगर वो राज्य से बाहर के व्यक्ति से शादी करती है तो वो स्थायी नागरिकता का हक खो बैठती है। यानी वो ना तो जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकती है ना सरकारी नौकरी कर सकती है और ना ही उसे वोट का अधिकार मिलता है। यहां तक कि उसके बच्चों को भी ये हक नहीं मिलता।
कश्मीर से बाहर दूसरी जाति में शादी करने वाली चारू वली खुराना का कहना है कि ये दुखद है कि वो भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी संपत्ति खरीद सकती है लेकिन अपने ही राज्य में वो इस अधिकार से वंचित हो गई है। इसी आधार पर 35 A को रद्द किया जाए। याचिका में ये भी कहा गया है कि 1954 मेंराष्ट्रपति काआदेश पर ये एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर की गई और संसद को बाईपास किया गया। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उसका पक्ष पूछा था।
इससे पहले CJI ने अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा था कि संविधान केअनुच्छेद-35 ए के तहत जम्मू एवं कश्मीर के नागरिकों को मिले विशेष अधिकार पर अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच सुनवाई करेगी। वहीं केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के सामने कुछ भी कहने से बचती रही। केंद्र सरकार ने कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इस पर बहस की जरूरत है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट एक गैर सरकारी संगठन 'वी द सिटिजन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका में अनुच्छेद-35 A की संवैधानिक वैघता को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद-35 ए और अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है लेकिन ये प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है जो दूसरे राज्यों से आकर वहां बसे हैं। ऐसे लोग न तो वहां संपत्ति खरीद सकते हैं और न ही सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही स्थानीय चुनावों में उन्हें वोट देने पर पाबंदी है।
याचिका में यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति को आदेश के जरिए संविधान में फेरबदल करने का अधिकार नही है। 1954 मे। राष्ट्रपति काआदेश एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर की गई थी। गौरतलब है कि 1954 में राष्ट्रपति केआदेश के तहत संविधान में अनुच्छेद-35 Aको जोड़ा गया गया था। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस जेएस खेहर की बेंच से कि यह मामला संवेदनशील है। साथ ही यह संवैधानिक मसला है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर बड़ी बहस की दरकार है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर सरकार हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने बेंच से गुहार की कि इस मसले को बड़ी पीठ केपास भेज दिया जाना चाहिए।
इस संबंध में जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि संविधान केअनुच्छेद-35 ए के तहत राज्य के नागरिकों को विशेष अधिकार मिला हुआ है। राज्य सरकार ने कहा कि इस प्रावधान को अब तक चुनौती नहीं दी गई है, यह संविधान का स्थायी लक्षण है।इसकेतहत राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान की गई थी। इसके तहत राज्य सरकार को अपने राज्य केनिवासियों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार मिला हुआ है। राज्य सरकार का कहना है कि कि इस जनहित याचिका में उस मूर्त कानून को छेडऩे की कोशिश की गई है जिसे सभी ने स्वीकार किया हुआ है। साथ ही राष्ट्रपति के इस आदेश को 60 सालों के बाद चुनौती दी गई है। वर्षों से यह कानून चलता आ रहा है, ऐसे में इसे चुनौती देने का कोई मतलब नहीं है।