स्लम बस्ती वालों के लिए आगे आया दिल्ली हाईकोर्ट, कहा जीने के अधिकार में वैकल्पिक आवास का हक भी शामिल

LiveLaw News Network

13 Aug 2017 5:16 AM GMT

  • स्लम बस्ती वालों के लिए आगे आया दिल्ली हाईकोर्ट, कहा जीने के अधिकार में वैकल्पिक आवास का हक भी शामिल

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जीने के अधिकार में आवास का अधिकार भी एक अनिवार्य हिस्सा है और ये कोई जानवरों जैसा नहीं बल्कि वाजिब आवास व्यवस्था हो। ये कहते हुए दिल्ली हाईकोर्ट उन 14 झुग्गी वालों के साथ खडा हो गया है जिन्हें दिल्ली सरकार ने वैकल्पिक आवास के काबिल नहीं मानते हुए हटाने का आदेश दिया था। ये स्लम राष्ट्रीय राजमार्ग 24 के विस्तार योजना के बीच में हैं।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर ने माना कि मंडावली के राजीव कैंप में रहने वाले 14 झुग्गी झोंपडी वाले लोग दिल्ली सरकार की रीलोकेशन एंड रिहेबिलिटेशन पोलिसी के तहत फ्लैट का आवंटन पाने के हकदार हैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि सरकार इन लोगों को तुरंत अलॉटमेंट लेटर जारी करे और जरूरी कागजात व तय किए 1.42 लाख रुपये लेकर तीन महीने में फ्लैट मुहैया कराए।

    बेंच ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 21  के तहत जीने के मौलिक अधिकार में आवास का अधिकार भी एक अनिवार्य हिस्सा है और ये कोई जानवरों जैसा नहीं बल्कि वाजिब आवास व्यवस्था हो।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 1997 के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि अगर कुछ वक्त से झुग्गी में लोग रह रहे हैं तो ये सरकार का फर्ज बनता है कि वो इन लोगों के लिए आवास की योजना बनाए।

    दरअसल 14 लोग कुछ अन्य लोगों के साथ दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे थे। याचिकाकर्ता के वकील रोबिन आर डेविड और धीरज फिलिप ने हाईकोर्ट को बताया कि उनकी झुग्गियां तोडने से बाद वो बेघर हो गए और सरकार ने इस महीने ही उन्हें जगह खाली करने का नोटिस थमा दिया। यहां तक कि उन्हें पुनर्वास के लिए भी अयोग्य करार दे दिया गया क्योंकि DUSIB ने कहा कि वो ये साबित करने में नाकाम रहे कि वो लंबे वक्त से राजीव कैंप में रह रहे हैं। 2012,2013,2014,2015 में बनी वोटर लिस्ट में उनका नाम भी नहीं है।

    लेकिन याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में अपने बच्चों के स्कूल रिकार्ड को दिखाया और हाईकोर्ट ने लोकल कमिश्नर से इनकी जांच कराई। कोर्ट ने पाया कि वकील डेविड द्वारा प्रस्तुत दलीलों में दम है कि काफी लोगों के पास 1995 तक पुराने दस्तावेज थे लेकिन वो अपनी गरीबी, निरक्षरता और कागजात संभालने में नाकामी के चलते दस्तावेज खो बैठे।

    तोडफोड के बाद से ही टीन शेड में रह रहे इन 14 लोगों को हाईकोर्ट ने राहत दे दी लेकिन इनके साथ याचिका दाखिल करने वाले 28 लोगों को कोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया क्योंकि वो राजीव कैंप में रहने के पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाए।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जिन लोगों को पुनर्वास के काबिल माना गया उनके पास मतदाता पहचान पत्र थे। लेकिन मतदाता पहचान पत्र ना होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इसके पीछे ये कारण भी हो सकता है कि जब बूथ लेवल अफसर झुग्गी में आया हो तो वो व्यक्ति घर में ना हो। इसके पीछे व्यक्ति का व्यवसाय या झुग्गी के वयस्क व्यक्तियों का काम पर जाना हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि इसलिए ये लोग पोलिसी के तहत यहां रहने का मतदाता पहचान पत्र ना दे पाए हों लेकिन इनके उन कागजातों पर भी समग्र विचार किया जाना चाहिए जो ये साबित कर रहे हैं कि वो 1998 से 2016 के बीच राजीव कैंप में रह रहे थे।

    हालांकि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की उस दलील को नहीं माना जिसमें मांग की गई थी कि पोलिसी के तहत ये सुनिश्चित किया जाए कि जब DUSIB और जमीन की मालिक एजेंसी संयुक्त सर्वे करें तो झुग्गी मालिक का नाम उसमें आना चाहिए।

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