कैसे एक उत्तराधिकारी ने अभियुक्त की मृत्यु के बाद दोषसिद्धि का कलंक मिटाने की लड़ाई लड़ि

LiveLaw News Network

17 July 2017 3:17 PM GMT

  • कैसे एक उत्तराधिकारी ने अभियुक्त की मृत्यु के बाद दोषसिद्धि का कलंक मिटाने की लड़ाई लड़ि

    सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यकित को उसकी मौत के बाद बरी कर दिया। आरोपी को निचली अदालत और हाई कोर्ट से दोषी करार दिए जााने के बाद उसके उत्तराधिकारी ने दोषी करार दिए जाने का कलंक को खत्म करने लिए अपील दाखिल की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया।




    अजनाला में एसएचओ के तौर पर मुख्तार सिंह तैनात थे। उन्हें रिश्वतखोरी में पकड़ा गया था। उसकी ओर से अपील दाखिल कर कहा गया कि उसे फंसाया गया है। उसे रिश्वतखोरी मामले में 2007 में दोषी करार दिया गया था। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट में दोषी करार दिया गया। इस मामले में हाई कोर्ट में अपील की गई इसी दौरान केस पेंडेंसी के दौरान आरोपी की मौत हो गई। फिर केस उनके लीगल हेयर ने लड़ा। हाई कोर्ट ने भी सिंह को पीसी एक्ट में दोषी करार दिया। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट आया। आरोपी के लीगल हेयर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। उनकी दलील थी कि आरोपी को इस मामले में फंसाया गया है। रिश्वतखोरी और रिकवरी के कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं  हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि जो तथ्य पेश किए गए हैं उसके तहत आरोपी के खिलाफ लगाए गए साक्ष्य पुख्ता नहीं हैं और न ही साक्ष्य स्पष्ट हैं। जो डिमांड और पेमेंट की बात है उसमें कोई तारतम्यता नहीं है। जो भी गवाहों के बयान है और जो सैडो विटनेस है उनके बयानों में विरोधाभास दिख रहा है। जिस जगह पर रिश्वत देने कीबात हुई है वह तय नहीं है। तमाम बयान संदेहास्पद है।

    सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस ए. राय की बेंच ने कहा कि गवाहों और शिकायती के बयान में जो आरोप लगाए गए हैं वह पुख्ता साक्ष्य वाले नहीं हैं। ऐसा साक्ष्य नहीं है कि रिश्वत की मांग की गई थी। बेंच ने कहा कि निचली अदालत और हाई कोर्ट मामले में केस को एनालिलिस करने में विफल रही है और ऐसे निचली अदालत और हाई कोर्ट के दोषी करार देने और सजा देने के फैसले को खारिज किया जाता है।

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