क्रुअल्टी ग्राउंड पर तलाक के लिए पति की अर्जी बॉम्बे हाई कोर्ट ने की खारिज
LiveLaw News Network
10 July 2017 8:00 PM IST
बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस शख्स की याचिका खारिज कर दी जिसने पत्नी से क्रुएल्टी ग्राउंड पर तलाक मांगा था। याचिकाकर्ता का दावा था कि महिला मानसिक तौर पर विक्षिप्त है। याचिकाकर्ता ने बांद्रा के फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज कर दी थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस एएस ओका और जस्टिस अनुजा प्रबुददेसाई की बेंच ने इस मामले में याचिकाकर्ता पति की अर्जी खारिज कर दी। पति की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि पत्नी मानसिक तौर पर विक्षिप्त है और ऐसे में उसके साथ रह नहीं सकता साथ ही क्रुअल्टी ग्राउंड पर तलाक की मांग की थी।
केस बैकग्राउंड
दोनों की शादी 6 जुलाई 1994 को हुई थी। शादी के वक्त याचिकाकर्ता पति तलाकशुदा था और उसे पहली शादी से दो बच्चे थे। पति का दावा था कि शादी से पहले ही उसकी दूसरी पत्नी ने ये वादा किया था कि उसके बच्चों का वह पूरा खयाल करेगी और उन्हें प्राथमिकता देगी। प्रतिवादी महिला एयर होस्टेस रही थी और 20 साल से एयर इंडिया में थी और दिल्ली बेस्ड थी। वहीं याचिकाकर्ता पति मुंबई बेस्ड था। महिला अक्सर मुंबई जाती रहती थी। पति ने आरोप लगाया कि महिला ने उसके साथ शादी के अगले दिन से ही लड़ाई झगड़े शुरू कर दिए। बच्चों पर तानेबाजी शुरू कर दी। कई बार लड़ाई के कारण महीनों बातचीत बंद कर देती थी। वह देर-देर रात में कॉल करती थी और गाली गलौच की भाषा का इस्तेमाल करती थी। एक बार उसने हाथों में चाकू लेकर खुद को मारने की धमकी दी थी। उस वक्त वाचमैन की मदद से उसे रोका गया और मामला शांत हुआ था। याचिकाकर्ता पति का दावा था कि महिला का हिंसक और असमान्य व्यवहार हैै। साथ ही प्रताड़ना करती है। इस कारण वह 14 अप्रैल 2000 को महिला को वह मनोवैज्ञानिक के पास ले गया।
मनोवैज्ञानिक ने कई मेडिसिन दिया और बाद में फिर आने को कहा। लेकिन दोबारा महिला जाने को तैयार नहीं हुई। वहीं महिला ने अपने पति द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज किया और कहा कि वह थायरॉड की मीरी से ग्रसित है और वह बच्चा पैदा करेन की स्थिति में थी लेकिन पति ने एबॉर्शन कराने को कहा। इस कारण तनाव व मानसिक स्ट्रेस में वह रही। डॉक्टर ने सलाह दी थी कि उन्हें खुशी के माहौल में रखा जाए।
कोर्ट ने क्या कहा
अदालत ने कहा कि पति ने इस मामले में वाटमैन या फिर मनोवैज्ञानिक को एग्जामिन नहीं कराया ताकि अपने दावों को पुख्ता कर सके। पति के दावे की सच्चाई पर कोर्ट ने सवाल उठाया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पति ने इस मामले में महत्वपूर्ण गवाहों को पेश नहीं किया। पति ने महिला के प्रति क्रुअल्टी का जो भी आरोप लगाया उसे साबित करने के लिए सबूत नहीं दिए। अदालत ने कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि दोनों के बीच की शादी सुधार न होने योग्य ब्रेक डाउन की स्थिति में है। लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के सेक्शन 34 की उप धारा 1 के क्लॉज ए के तहत तलाक के लिए तय ग्राउंड में एक ग्राउंड साबित हुए बिना कोर्ट के पास अधिकार नहीं है कि वह तलाक की डिग्री पारित कर दे। याचिकाकर्ता ने जो भी जजमेंट का हवाला दिया है कि वह सुधार न होने योग्य ब्रेक डाउन का है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का इस्तेमाल किया है और आदेश पारित किया है। ऐसे में इस आधार पर तलाक की डिक्री पारित नहीं हो सकती।