कब्जा से नहीं मिलता कब्जा बनाए रखने का अधिकार, हाईकोर्ट ने खारिज किया दरगाह की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों का दावा [निणर्य पढें]

LiveLaw News Network

25 Jun 2017 6:48 AM GMT

  • कब्जा से नहीं मिलता कब्जा बनाए रखने का अधिकार, हाईकोर्ट ने खारिज किया दरगाह की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों का दावा [निणर्य पढें]
    दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि कब्जा होने भर से कब्जा रखने का अधिकार नहीं मिल जाता। दिल्ली हाईकोर्ट ने चार याचिकाकर्ताओं की तरफ से दायर रिव्यू याचिकाओं को खारिज करते हुए टिप्पणी की।चारों याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि वह अमिर खुसरो पार्क की दरगाह के पूर्व मुतावल्ली या केयरटेकर के बेटे है,इसलिए उनको भी तिकानो ग्रेवयार्ड पार्क के अंदर कुछ निर्माण करने का अधिकार है। इस तिकानो ग्रेवयार्ड पार्क को अमिर खुसरो पार्क के नाम से भी जाना जाता है।


    मोहम्मद शकील,मोहम्मद अलाउद्दीन व मोहम्मद महमूद(इनका दावा है कि यह तीनों स्वर्गीय मोहम्मद युसूफ व मोहम्मद युनूस के बेटे है) व मोहम्मद नासिर (मोहम्मद हकमुद्दीन का बेटा) ने इस मामले में हाईकोर्ट के 16 मई के आदेश पर फिर से विचार करने की मांग की थी। उस आदेश में कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं के पास उनके दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त कागजात नहीं है। जिसके बाद संबंधित अॅथारिटी से स्टे्टस रिपोर्ट मांगी गई थी।


    क्या कहा हाई कोर्ट ने


    रिकार्ड पर पेश सभी सबूतों व दलीलों को देखने के बाद एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल व जस्टिस सी हरि शंकर की दो सदस्यीय बेंच ने कहा कि एक खुली जमीन पर किसी के कब्जे के बारे में यही अनुमान लगाया जाता है कि वह उसका मालिक है और कोई अनधिकार प्रवेश करने वाला नहीं है। इसलिए खुली या ओपन जमीन को तब तक उसके मालिक के कब्जे में माना जाता है,जब तक कि कोई अनधिकार प्रवेश करने वाला यह साबित न कर दे कि उसका जमीन पर मजबूत अधिकार है और ऐसे करके वह मालिक का ध्यान इस ओर आकर्षित न करे दे कि उसको इस जमीन से बेदखल किया जा सकता है।


    क्या है मामला


    दिल्ली वक्फ बोर्ड की तरफ से दावा किया गया है कि यह जमीन मुस्लिम ग्रेवयार्ड है। इसमें दो ग्रेवयार्ड के निर्माण है,जिनको दरगाह शाह फिरदोस व दरगाह मुसाफिर शाह के नाम से जाना जाता है,यह दोनों एक चारदीवारी के अंदर है।


    रिव्यू याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं का दावा है कि कई निर्माण ऐेसे है,जिनमें वह रहते थे। इनका कहना है कि इनके पिताओं का इन निर्माण पर पूर्व में अधिकार था क्योंकि उनको इस पार्क में स्थित इन दोनों दरगाहों का मुतावल्ली यानी केयरटेकर नियुक्त किया गया था।


    कोर्ट की टिप्पणियां


    कोर्ट ने कहा कि इन ढ़ाचों या निर्माण के संबंध में किए गए दावों को साबित नहीं किया गया क्योंकि इसके लिए कोई सरकारी रिकार्ड या सरकारी अधिसूचना से संबंधित कोई कागजात पेश नहीं किया गया। कोई ऐसा सबूत पेश नहीं किया गया,जिससे यह साबित हो सके कि इस तरह का कोई ढ़ाचा या निर्माण मौजूद था।


    अपने 75 पेज के आदेश में बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने उन दावों को साबित नहीं कर पाए,जिनके आधार पर वह विवादित जमीन पर अपना कब्जा बता रहे थे। सिवाय इसके कि एक वाटर टैंक बना है व ओपन जमीन पर शेड ड़ाली गई है और एक दुकान के सामने छत का निर्माण किया गया है। इसके अलावा याचिकाकर्ता जमीन पर अपने कब्जे के दावे को साबित करने के लिए कोई मजबूत काम नहीं कर पाए,जिससे प्रतिवादी का ध्यान इस तरफ जाए कि उसको इस जमीन से बेदखल किया जा सकता है। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि छोटी सी जमीन पर निर्माण किया गया है,जो 995 स्केयर यार्ड है।


    स्टेट आॅफ गुजरात बनाम पटेल छोटाबाई बाईजीबाई मामले में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस पार्क की छोटी सी जमीन पर निर्माण किया गया,जिसका प्रतिवादी कोई प्रयोग नहीं कर रहा था। जो याचिकाकर्ताओं के लिए सुविधाजनक था। प्रतिवादी ने इस तरफ ध्यान भी नहीं दिया और याचिकाकर्ता उसे कई तरीके से प्रयोग कर रहे थे।


    इस तरह एक छोटी सी जमीन पर हुए निर्माण का प्रयोग करने से यह नहीं माना जाता है कि प्रतिवादी को बेदखल कर दिया गया है। इस तरह की परिस्थितियों में ऐसे छोटे-मोटे जमीन के प्रयोग हमारे देश में सामान्य है और कोई इस तरफ ध्यान नहीं देता है। रिव्यू याचिका दायर करने वालों ने खुलमखुला इस कोर्ट के कई आदेशों का उल्लंघन किया है बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून का भी उल्लंघन किया है।


    याचिकाकर्ता ऐसा कुछ साबित नहीं कर पाए कि यहां उनका कोई पुराना घर था या उनके पूर्वजों का इस जमीन पर कोई कब्जा था।इसके विपरीत यह साबित हो गया कि उन्होंने अनधिकार तरीके से इस जमीन का प्रयोग किया है।


    कोर्ट ने अंत में पार्क में इस तरह के निवास के कारण फैले गंद व कूड़ा आदि के बारे में कहा कि कोई कोर्ट इस इलाके के आसपास किसी को रहने की अनुमति दे सकती है क्योंकि इस स्मारक पर इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त लोग आते है और ऐसा करने से उनको खतरा हो सकता है। यह हमारी संवैधानिक ड्यूटी बनती है कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि दिल्ली के सभी नागरिकों के जीने के अधिकार पर कोई खतरा न बने। इसलिए यहां पर कोई भी गंद फैलाने वाली व गंभीर बीमारियों को फैलाने के लिए जिम्मेदार मच्छरों को पैदा करने वाली किसी गतिविधि को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।


    इसलिए इस याचिका को खारिज किया जाता है और पुलिस को निर्देश दिया जाता है कि वह आठ सप्ताह के अंदर अपनी स्टे्टस रिपोर्ट दायर करे।

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