बाॅम्बे हाईकोर्ट ने सवाल का व्यवहारिक जवाब देने के लिए गुणवान छात्रा को दिया एसएससी की परीक्षा में एक और अतिरिक्त अंक [निणर्य पढें]

LiveLaw News Network

23 Jun 2017 12:27 PM IST

  • बाॅम्बे हाईकोर्ट ने सवाल का व्यवहारिक जवाब देने के लिए गुणवान छात्रा को दिया एसएससी की परीक्षा में एक और अतिरिक्त अंक [निणर्य पढें]
    बाॅम्बे हाईकोर्ट ने एक अति गुणवान छात्रा को एसएससी की परीक्षा में एक अतिरिक्त अंक दिया है। इस छात्रा ने अपनी साइंस की परीक्षा के एक सवाल के संबंध में कोर्ट से राहत मांगी थी। मुम्बई डिविजनल बोर्ड,वासी,महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड आॅफ सैकेंड्री एंड हाई सैकेंड्री एजुकेशन ने एसएससी की यह परीक्षा मार्च 2016 में आयोजित की थी।


    न्यायमूर्ति बीआर गवाई व न्यायमूर्ति रियाज चागला की दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले में निलेश गोगरी की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी,निलेश इस छात्रा के पिता है।


    इस परीक्षा में याशवी गोगरी को 95 प्रतिशत अंक मिले थे,हालांकि उसने अपनी उत्तरतालिका की काॅपी मांगी थी क्योंकि उसको लगता था कि उसको अपनी साइंस की परीक्षा में अपेक्षा से कम नंबर मिले है। उत्तरतालिका मिलने के बाद,उसने देखा कि उसने सभी सवालों के ठीक जवाब दिए है,इसलिए उसने पुन-मूल्यांकन के लिए अप्लाई किया। पुन-मूल्याकन अॅथारिटी ने पाया कि एक सवाल के संबंध में उनसे गलती हुई है,इसलिए उन्होंने उसको एक अतिरिक्त अंक दे दिया,परंतु जिस सवाल के बारे में याचिका में कहा गया है,उसके लिए अंक नहीं दिया। यह सवाल था-(6) सुझाव दे कि निम्नलिखित परिस्थिति में क्या उपाय किए जाने चाहिए- (1) क्लासरूम में होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए।


    याशवी ने इस सवाल का जवाब इस प्रकार दिया-


    (ए) एक परफेक्ट माॅनिटर नियुक्त करना


    (बी) अगर कोई छात्र शोर करता है तो उसको दंड देना


    (सी) छात्रों को कुछ काम देना ताकि वह उनका समय उसमें लग जाए और वह व्यस्त रहे।


    स्टेट व स्टेट बोर्ड की तरफ से पेश अमेय जयसवाल ने दलील दी कि इस सवाल का जवाब गलत था क्योंकि इस सवाल का माॅडल जवाब था-अवोयड मेकिंग ए लाॅट आॅफ नोयज,नोट टू साउट लाउडली।


    कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि इस मामले में प्रतिवादी ने बहुत की तकनीकी विचार अपनाया है। सवाल का माॅडल जवाब यह कहता है कि ध्वनि प्रदूषण को रोकने का उपाय ’नाॅट टू साउट लाउडली’ होना चाहिए,सिर्फ इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता की बेटी द्वारा दिया गया जवाब गलत है।


    इसके विपरीत,यह देखा जा सकता है कि छात्रा ने ज्यादा व्यवहारिक तरीके से अपना दिमाग लगाया है कि और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए एक से ज्यादा तरीके बताए है। हमें लगता है कि प्रतिवादी को इस छात्रा को उसके इस जवाब के लिए दंड देने की बजाय,उसके इन प्रयासों की प्रशंसा करनी चाहिए,विशेषतौर पर तब जब उसके द्वारा दिए गए सुझाव का ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपायों से  सीधा संबंध था। इसलिए इस सवाल के लिए पूरे नंबर देने के लिए की गई इस मांग को स्वीकार किया जाता है।

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