फर्जी नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट के जरिए ओबीसी का फायदा लेने वाली मेडिकल की स्टूडेंट को देने होगे राज्य को दस लाख रूपए-बाॅम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

31 May 2017 2:49 PM GMT

  • फर्जी नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट के जरिए ओबीसी का फायदा लेने वाली मेडिकल की स्टूडेंट को देने होगे राज्य को दस लाख रूपए-बाॅम्बे हाईकोर्ट
    फर्जी नॉन क्रिमि लेयर सर्टिफिकेट के जरिये ओबीसी का फादया लेने के मामले में मेडिकल स्टूडेंट को हाई कोर्ट से झटका लगा है। हाई कोर्ट ने उसे निर्देश दिया है कि वह इस एवज में राज्य सरकार को 10 लाख रुपये का भुगतान करे।

    एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए बाॅम्बे हाईकोर्ट ने एक मेडिकल की स्टूडेंट को निर्देश दिया है कि वह राज्य सरकार को दस लाख रूपए दे क्योंकि उसने ओबीसी कोटा के तहत दाखिला लेने के लिए फर्जी नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट दिया था। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने इस छात्रा की शिक्षा पर खर्च किया है क्योंकि उसने कोटे के तहत दाखिला लिया था। इसलिए सरकार को उस खर्च बदले कुछ हद तक मुआवजा पाने का हक है।
    केस का बैकग्राउंड

    न्यायमूर्ति वी एम कनाडे व न्यायमूर्ति पी आर बोरा की खंडपीठ ने यह आदेश इस मामले में एक ऐश्वर्या पाटिल की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। इस याचिका में पूने के डिस्ट्रिक कलेक्टर के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें याचिकाकर्ता के नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया गया था। याचिकाकर्ता के नाम आठ जून 2012 को यह सर्टिफिकेट जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने यह सर्टिफिकेट पूने के बीजे मेडिकल कालेज में दाखिला लेते समय जमा करवाया था।
    जिसके बाद एक गौरी घरात ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। गौरी भी ओबीसी कोटे के तहत मेडिकल में दाखिला लेना चाहती थी। उसने आरोप लगाया था कि संबंधित अधिकारियों ने काफी सारे फर्जी नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट जारी किए थे। उसने कुल 17 ऐसे मामलों में जांच की मांग की थी। ऐश्वर्या पाटिल का भी इन्हीं में से एक केस था। पूने के डिप्टी कमीश्नर,सोशल वेल्फेयर ने इस मामले में जांच की थी। जिसमें पाटिल का नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट भी फर्जी पाया गया था। उसके बाद उस सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया गया था।

    दलीलें व टिप्पिणयां

    याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील एवी अंतुरकार ने दलील दी कि 25 मार्च 2013 को सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि किसी उम्मीदवार की प्रोफेशनल आय (सर्टिफिकेट के लिए) का आंकलन करते समय उसमें अन्य स्रोत जैसे खेती या संपत्ति से हुई आय को शामिल नहीं किया जाएगा। वकील ने दलील दी कि डिस्ट्रिक कलेक्टर ने इस मामले में सर्टिफिकेट को रद्द करते समय अपना दिमाग नहीं लगाया और याचिकाकर्ता के पिता की अन्य स्रोत से हुई आय को भी उसकी प्रोफेशनल आय में शामिल कर दिया।
    सर्कुलर के अनुसार किसी भी उम्मीदवार या छात्र के माता या पिता की पिछले तीन साल की आय साढ़े चार लाख रूपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
    कोर्ट ने कहा कि तमाम पेश कागजातों से यह साबित हो रहा है कि याचिकाकर्ता के पिता की ग्रोस प्रोफेशनल आय साढ़े चार लाख रूपए से ज्यादा थी। उसके पिता एक सर्जन है। उसके पिता पूने के चिंचवाड़ में एक 16 बेड वाला अस्पताल चलाते है।

    कोर्ट की टिप्पणी

    हम यहां सभी तथ्यों का उल्लेख कर रहे है। जिनसे पता चल रहा है कि एक व्यक्ति ने नाॅन-क्रिमी लेयर सर्टिफिकेट लेने का विकल्प चुना और शुरूआती तौर पर वह उसे पाने में सफल भी हो गया। हम बड़े दुख के साथ यह कह रहे है कि एक अच्छे पद वाले इंसान ने इस तरह का प्रयास किया,जिस कारण एक सही व योग्य छात्र सरकारी मेडिकल कालेज में एम.बी.बी.एस कोर्स में दाखिला पाने से वंचित रह गया।

    जिसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने अपने मुविक्कल के प्रोटेक्शन की मांग करते हुए कहा कि उसकी एम.बी.बी.एस की डिग्री पूरी होने वाली है।
    सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट आॅफ महाराष्ट्र बनाम मिलिंद व अन्य के मामले में दिए गए फैसलों पर विश्वास करते हुए कोर्ट ने निर्णय किया कि याचिकाकर्ता के दाखिले को प्रोटेक्शन दिया जाएगा।
    कोर्ट ने कहा कि किस तरह इस मामले में गौरी घरात दाखिले से वंचित रह गई,जबकि वह एक योग्य उम्मीदवार थी। वहीं याचिकाकर्ता पाटिल के पिता को इस तरह के जालसाजी में शामिल नहीं होना चाहिए था।

    इसलिए कोर्ट याचिकाकर्ता पाटिल के एम.बी.बी.एस दाखिले को तो अब सही मान रही है,परंतु इसके लिए उसे राज्य सरकार को दस लाख रूपए मुआवजा देना होगा।
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