हाईकोर्ट ने योगी सरकार से कहा, हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत कानून को माॅडल सोशल वेल्फेयर स्टेट के तौर पर करे लागू

LiveLaw News Network

31 May 2017 2:47 PM GMT

  • हाईकोर्ट ने योगी सरकार से कहा, हमारे धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत कानून को माॅडल सोशल वेल्फेयर स्टेट के तौर पर करे लागू

    हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा है कि राज्य सरकार और उनके तमाम अथ़ॉरिटी से उम्मीद की जाती है कि वह धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत कानून को बतौर मॉडल सोशल वेलफेयर स्टेट के तौर पर लागू करने से पहले उसके समाजिक, आर्थिक व व्यवहारिक प्रभाव को परखने के लिए स्टडी का प्रयास करे।

    साथ ही व्यापार व बिजनेस,साफ-सफाई व अपने नागरिकों के लिए हेल्थी फूड उपलब्ध कराने के उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करना सरकार की ड्यूटी है।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि बूचड़खानों व मीट की दुकानों को नए लाइसेंस दिए जाए और पुरानों को रिन्यू किया जाए।

    खंडपीठ ने कहा कि सभी याचिकाकर्ता व अन्य इस तरह के व्यक्तियों को पूरी छूट है कि वह लाइसेंस के लिए संबंधित अॅथारिटीज के समक्ष एक्ट 2006 व 2011 रेगुलेशन के तहत अप्लाई कर दे। जिसके बाद संबंधित अॅथारिटी उनके मामलों पर विचार करने के बाद आदेश देगी और आवेदनकर्ताओं को उस संबंध में सूचित करेगी। 2011 रेगुलेशन के तहत लोकल बाॅडी जहां जरूरत होगी,वहां मामलों पर विचार करने के बाद एनओसी जारी करेगी।
    न्यायमूर्ति ए प्रताप साही व न्यायमूर्ति एस हरकौली की खंडपीठ इस मामले में काफी सारी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी,जिनमें उस निर्णय को चुनौती दी गई थी,जिसके तहत राज्य सरकार द्वारा पूरे राज्य में बूचड़खानों व मीट की दुकानों को बंद कर दिया गया था। राज्य सरकार के अनुसार यह सभी गैर कानूनी तरीके से चलाए जा रहे थे और प्रीवेंशन आॅफ क्रूअल्टी टू एनीमल एक्ट 1960 व प्रीवेंशन आॅफ क्रूअल्टी टू एनीमल(बूचड़खाने)रूल 2001 के प्रावधानों का पालन भी नहीं किया जा रहा था। न ही इसके लिए फूड सेफटी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के रूल व रेगुलेशन का पालन हो रहा था।
    कोर्ट ने कहा कि यह मामला एक सुव्यवस्थित कानून को संबंधित अॅथारिटीज के जरिए लागू करने का है। इसको व्यवहारिक तौर पर लागू करने के चलते याचिकाकर्ताओं ने यह याचिका दायर की है क्योंकि उनको डर है कि इससे वह बेरोजगार हो जाएंगे और उनकी आजीविका खत्म हो जाएगी।
    इतना ही नहीं इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मर्जी का भोजन करने का अधिकार प्रभावित होने का भी डर बनेगा। इसलिए इसको लागू करने पर ध्यान दिया जाना जरूरी है,जिसके लिए राज्य सरकार व लोकल बाॅडी को अपनी जिम्मेदारी,ड्यूटी व कत्र्तव्यों को निभाना होगा,अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस तरह की याचिकाएं कोर्ट में आती रहेगी। अधिकारों व कत्र्तव्यों के लिए किए गए दावों को कानून के तहत आकलन करना होगा। इसलिए इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू करना मुख्य मुद्दा है।

    सरकार को धमकाया

    खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में स्थिति ज्यादा सहज हो सकती थी,अगर राज्य सरकार जल्दबाजी में कोई आदेश पास करने से पहले खुद से इन मुद्दों पर ठीक से विचार करती,जो कोर्ट के समक्ष उठाए गए है।

    इस मामले में पूर्व में सरकार की तरफ से सूचित किया गया था कि इन मुद्दों पर विचार किया जा रहा है और एक हाई-पाॅवर कमेटी इनकी स्टडी कर रही है ताकि इस दिशा में उचित कदम उठाए जा सके। परंतु कोर्ट को इस तरह की सूचना दिए जाने के बावजूद भी राज्य सरकार की तरफ से सिर्फ दो याचिकाओं में हलफनामा दायर किया गया। जिसमें बताया गया कि कमेटी इस दिशा में उचित प्रयास कर रही है। कोर्ट को इस बारे में कुछ नहीं बताया गया कि राज्य सरकार इस मामले में क्या कर रही है और पूरे मामले की स्टडी करने के लिए क्या कदम उठाए गए है। एक्ट 2006, उसके रूल व रेगुलेशन को लागू करने के लिए कानूनी व व्यवहारिक पहलू के लिए क्या किया जा रहा है। अगर राज्य सरकार कोई कार्रवाई करने से पहले अगर सही प्रयास कर लेती तो इस कोर्ट को ज्यादा खुशी होती,वहीं इस मुद्दे को ज्यादा प्रभावी तरीके से सुलझाने में सहायता मिलती।

    आजीविका का अधिकार व अपनी पंसद के खाने का अधिकार

    खंडपीठ ने कहा कि सभी नागरिकों को यह अधिकार है कि उनकी आजीविका चलाने के लिए उनको उचित संसाधन मिले,जो उनको तरक्की दिलाने में भी सहायक हो। इस मामले में तो नागरिकों को उनकी पसंद का भोजन करने का मामला भी शामिल है। उसके अलावा वह सभी कत्र्तव्य भी जो संवैधानिक प्रावधानों से एकत्रित किए जा सकते है। इन कत्र्तव्यों का पालन संबंधित बाॅडी सभी के बीच में काम व विभिन्न योजनाओं के तहत उपलब्ध शक्तियों को बांट के कर सकती है। परंतु कोई सरकार पहली सरकार के द्वारा चलाई गई किसी योजना से इस तरह हाथ नहीं खींच सकती है कि वह योजना ही फाॅस्र्टालिंग या पूर्वानुमान पेशबंदी हो जाए।

    इस मामले में दूसरा पहलू यह है कि जिस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि एक्ट 2006 व रेगुलेशन और इसके तहत फ्रेम किए गए रूल किसी निजी व्यक्ति के अपनी मर्जी से खाने के अधिकार को प्रभावित न करे,जिसमें एनीमल फूड भी शामिल है। वकील ने दलील दी है कि वर्ष 2006 एक्ट की परिभाषा से साफ है कि रेगुलेशन सिर्फ फूड बिजनेस व टेªड के लिए बनाए गए है। जो साफ तौर पर फूड उत्पादन,फूड बिजनेस,फूड बिजनेस आॅपरेटर व इसी तरह के मामलों को रेगुलेट करने के लिए बने है। इसलिए इन रेगुलेशन के जरिए इस संबंध में किसी नागरिक की हाउसहोल्ड एक्टिविटी को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

    प्रतिबंध मत लगाए बल्कि अनुमति दीजिए

    खंडपीठ ने कहा कि यह दिमाग में रखा जाना चाहिए कि राज्य के आर्थिक विकास को केंद्र सरकार द्वारा प्रमोट किया जा रहा है,जो पेश कागजातों से जाहिर हो रहा है। जिसके साथ संबंधित लाॅ भी पेश किए गए है। इनके अनुसार प्रतिबंध लगाने की बजाय उन गतिविधियों को अनुमति देने की बात कही गई है,जिनमें मुर्गीपालन,मछली पालन,हैचरी,सूअर पालने का काम आदि शामिल है।चूंकि इन सबका आम पब्लिक के खान-पान से सीधा संबंध हैै और बड़े स्तर पर लोग इनको खाते है।

    अन्य निर्देश

    खंडपीठ ने यह भी साफ किया है कि किसी भी मामले में अगर पाॅवर के प्रयोग को लेकर कोई संदेह पैदा होता है तो इस मामले को तुरंत राज्य सरकार के संज्ञान में लाया जाए और सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इन पाॅवर के प्रयोग को लेकर अपने निर्देश तुरंत संबंधित अॅथारिटीज को दे दे।इन निर्देशों को लागू करने में किसी तरह की ढ़िलाई न की जाए।

    खंडपीठ ने कहा है कि इस आदेश की काॅपी पूरे राज्य के डिविजनल कमीश्नर व डिस्ट्रिक मैजिस्ट्रेट के साथ-साथ सभी लोकल बाॅडीज के पास भेज दी जाए। ताकि इनके चेयरपर्सन राज्य सरकार को वह सभी सामग्री व सूचनाएं उपलब्ध करा सके जो इस तरह की पाॅलिसी को कानून के अनुसार लागू करने के लिए जरूरी है। जिसके बाद राज्य सरकार इस संबंध में निर्णय लेगी,जिसमें बजट आबंटित करने व वित आदि के बारे में विचार किया जाए,जो इस मामले में दिए गए सभी निर्देशों को लागू करने के लिए जरूरी होगा।

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