क्रुअल्टी ग्राउंड पर पति को मिला तलाक लेकिन पत्नी को देना होगा 50 लाख गुजारा भत्ता और एक करोड़ का फ्लैट

LiveLaw News Network

31 May 2017 2:33 PM GMT

  • क्रुअल्टी ग्राउंड पर पति को मिला तलाक लेकिन पत्नी को देना होगा 50 लाख गुजारा भत्ता और एक करोड़ का फ्लैट

    पति को क्रुअल्टी ग्राउंड पर तलाक मिला है लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि वह अपनी पत्नी को 50 लाख रूपए व एक करोड़ रूपए मूल्य का एक घर दे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ झूठी शिकायतें दायर करना पति के प्रति क्रूरता है।

    पति ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक की अर्जी दायर की थी। जिसमें बताया गया था कि उसकी पत्नी ने उस पर मानहानि करने वाले आरोप लगाए है और उसके खिलाफ झूठी शिकायतें भी दायर की है,जो उसके प्रति क्रूरता है। परंतु उसकी मांग को खारिज कर दिया गया और उसके बाद हाईकोर्ट ने भी उसकी अपील खारिज कर दी। इन्हीं आदेशों को उसने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

    इस मामले में पत्नी ने अपनी पति के खिलाफ अलग-अलग फोरम में कई याचिकाएं दायर की थी। सात दिसम्बर 2000 को उसने एक अन्य शिकायत मुख्यमंत्री के समक्ष दायर कर दी थी। 16 मार्च 2001 को इन सभी शिकायतों को झूठा पाया गया।

    12 अप्रैल 2001 को पत्नी की शिकायत पर याचिकाकर्ता पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 452,323 व 341 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। पुलिस ने मामले की जांच करने के बाद 30 अप्रैल 2001 को अपनी रिपोर्ट दायर की और कहा कि इस केस में कोई मैरिट नहीं है। पुलिस ने पाया कि पत्नी ने खुद को ही चोट मारी थी और उसने झूठी प्राथमिकी दायर की थी। इस मामले में महिला के खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत आपराधिक केस चलाने की अनुशंसा भी की गई थी।

    कोर्ट ने इस मामले में कहा कि इस बात से ही आरोप झूठे साबित होते है कि पुलिस ने इस केस को चलाना भी उचित नहीं समझा था या केस चलाने के लायक नहीं पाया था। पुलिस ने जब इस केस को बंद करने की रिपोर्ट दायर की तो पत्नी ने चुप्पी साधे रखी। उसने इसके 11 साल बाद इस रिपोर्ट के खिलाफ प्रोटेस्ट याचिका दायर की। इससे साफ जाहिर है कि पत्नी झूठी शिकायतें दायर करने में शामिल रही है।

    न्यायमूर्ति एके गोयल व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने हाईकोर्ट व फैमिली कोर्ट की टिप्पणियों को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में पत्नी द्वारा दायर शिकायतों के तथ्य निश्चित तौर पर झूठे थे। साथ ही कहा कि एक जीवनसाथी द्वारा दूसरे जीवनसाथी पर इस तरह के झूठे आरोप लगाना क्रूरता ही है।

    कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों में यह भी पाया कि पत्नी अब तक उसी घर में रह रही थी,जो उसके पति की मां का है। जबकि उसका पति अपने माता-पिता के साथ एक अन्य घर में रहता था। वहीं इस दंपत्ति का बेटा व बहू महिला के साथ रहते थे।

    कोर्ट ने इस मामले में स्थाई निर्वाह-धन देते हुए कहा कि हम इस बात से अनजान नहीं है कि इस मामले में पत्नी को एक ऐसे डिसेंट घर की जरूरत है,जहां वो रह सके। उसका बेटा व बहू हमेशा उसके साथ रहने वाले नहीं है। इसलिए उसके स्थाई निर्वाह-धन व आवास का स्थाई प्रबंध किया जाना जरूरी है। खंडपीठ ने कहा कि पत्नी अपने पति की मां के घर में तब तक रह सकती है,जब तक उसका पति उसके लिए इतने ही साइज का दूसरा घर ऐसी ही लोकलेटी में नहीं उपलब्ध करा देता है।

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