पांच मूलभूत अधिकार,जो कानून देता है हर भारतीय उपभोक्ता को

LiveLaw News Network

31 May 2017 11:56 AM GMT

  • पांच मूलभूत अधिकार,जो कानून देता है हर भारतीय उपभोक्ता को

    उपभोक्ता एक राजा हो सकता है,अगर वह अपने अपने अधिकारों की रक्षा अपने राज्य की तरह कर पाए तो।

    तेजी से बढ़ती प्रतियोगिता वाला बाजार अपने साथ कई तरह के लाभ लेकर आता है,जिनमें वस्तुओं को चुनने व अच्छी वस्तु पाने का पूरा मौका मिलता है। परंतु इस तरह के बाजार के अपने कुछ नकारात्मक पहलू भी होते है,जिसमें कुछ पैसे बनाने के लिए सामने वाले को नुकसान पहुंचा दिया जाता है।
    इन सबसे से निपटने के लिए भारतीय कानून ने कुछ प्रावधान व दिशा-निर्देश बनाए है ताकि उपभोक्ताओं की रक्षा की जा सके और उनको न्याय की गारंटी दी जा सके।

    इस संबंध में पांच महत्वपूर्ण कानून इस प्रकार है-

    सूचना पाने का अधिकार-

    हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसे वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता, शुद्धता, स्टैंडर्ड व मूल्य आदि के बारे में सूचित किया जाए। यह अधिकार अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस से उपभोक्ता की रक्षा करने के लिए दिया गया है। उदाहरण के तौर पर दवाईयों के संबंध में हर फर्मास्युटिकल के लिए यह जरूरी है कि वह उस दवाई के साइड इफेक्ट के बारे में बताए। वहीं उत्पादनकर्ता को चाहिए कि वह अपने उत्पाद की किसी स्वतंत्र लैब से कराई गई जांच की रिपोर्ट को पब्लिश करे ताकि उसके प्रतियोगी उत्पाद से तुलनात्मक की जा सके।

    चुनने का अधिकार-

    हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं में से अपने लिए एक को चुन सके। हर उपभोक्ता को यह आश्वासन होना चाहिए कि उसे सही वस्तु व उचित मूल्य पर मिल सके। इस अधिकार के होने के कारण एकाधिकार पाने के लिए मूल्य संघ या उत्पादक संघ बनाना कानूनी तौर पर मान्य नहीं है। इससे साफ जाहिर है कि एक जैसी वस्तु बनाने या बेचने वाले विक्रेता एक साथ मिलकर एक संगठन नहीं बना सकते है क्योंकि ऐसा करने से उपभोक्ता की बार्गेनिंग पाॅवर खत्म हो जाएगी।

    परंतु असलियत यह है कि इस तरह के उत्पादक या मूल्य संघ मौजूद है। प्राकृतिक स्रोत,शराब,टेलिकम्युनिकेशन आदि जैसे कई ऐसे उद्योग
    है,जिन पर कुछ लोगों को नियंत्रण है। ऐसा माना जाता है कि भारत को अपने नागरिकों को इस संबंध में शक्तिशाली बनाने में अभी बीस साल और लगेंगे।

    सुरक्षा का अधिकार-

    हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि ऐसी वस्तुओं या सेवाओं की मार्केटिंग से उसकी रक्षा की जाए जो जीवन व संपत्ति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यह अधिकार मुख्यतौर पर स्वास्थ्य सेवाएं,औषधि व फूड प्रोसेसिंग सेक्टर पर लागू होता है क्योंकि इनका सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। इस अधिकार का उद्देश्य डाक्टरों,अस्पतालों,फार्मेसी व आॅटो मोबाइल इंडस्ट्री में की जाने वाली इममोरल प्रैक्टिस से उपभोक्ताओं की रक्षा करना है। परंतु देश में विश्वस्तरीय प्रोडक्ट टेस्टिंग ढ़ांचागत सुविधाएं न होने के कारण यह अधिकार उपभोक्ताओं की रक्षा नहीं कर पा रहा है।

    सुने जाने का अधिकार या सुनने का अधिकार-

    हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि उसका पक्ष सुना जाए और उसे यह आश्वासन दिया जाए कि उसके हित पर विचार एक उपयुक्त फोरम में की जाएगी। यह अधिकार उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत दायर करने व बिना किसी दबाव के अपनी आवाज उठाने के लिए शक्ति देता है। ताकि वह किसी भी उत्पाद या कंपनी के खिलाफ शिकायत कर सके। साथ ही उनकी शिकायत पर अच्छे से विचार किया जाए और जल्दी से उसका निपटारा किया जाए।

    हर्जाना पाने या सुधार करने का अधिकार-

    हर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह अनफेयर या प्रतिबंधित टेªड प्रैक्टिस या अनैतिक शोषण के बदले हर्जाना मांग सके या उसके ठीक करने की मांग कर सके।

    जिला,राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता फोरम बनाई गई है ताकि उपभोक्ता अपनी शिकायतों का निवारण कर सके। यह अधिकार उपभोक्ताओं को शक्तिशाली बनाता है ताकि वह फोरम में शिकायत करके सकें और प्रताड़नाओं के खिलाफ समाधान पा सके।

    क्या करना चाहिए,अगर आप किसी उल्लंघन के शिकार बने है?

    कानून व रेगुलेशन तभी प्रभावी साबित हो सकते है,जब उपभोक्ता उनको अच्छी तरह से समझे। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इनको प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। अगर किसी उपभोक्ता को यह लगे कि वह किसी तरह के उल्लंघन का शिकार हुआ है तो भारत में स्थित उपभोक्ता कोर्ट में उसे शिकायत दायर करने का अधिकार है।

    उपभोक्ता कोर्ट का गठन विशेष तौर से उपभोक्ताओं से जुड़ी शिकायतों के निवारण के लिए किया गया है। इन कोर्ट का गठन सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया है। इन कोर्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि विक्रेता अपने ग्राहकों के प्रति फेयर प्रैक्टिस ही अपनाए।
    देश में तीन तरह की उपभोक्ता कोर्ट है-
    -जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम(डीसीडीआरएफ) को गठन राज्य सरकार हर जिले में करती है। यह फोरम बीस लाख रूपए तक के मूल्यों के मामलों की सुनवाई करती है।

    -राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग(एससीडीआरसी),इनका गठन भी राज्य सरकार ही करती है। यह राज्य स्तर की कोर्ट है,जिनमें एक करोड़ रूपए तक के मूल्य के मामलों की सुनवाई की जाती है।

    -राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी),यह राष्ट्रीय स्तर की कोर्ट है,जो पूरे देश के लिए काम करती है। इनमें एक करोड़ से ज्यादा मूल्य के मामलों की सुनवाई की जाती है।

    इन फोरम में केस दायर करने या केस लड़ने के लिए शिकायतकर्ता उपभोक्ता को किसी वकील की जरूरत नहीं होती है। वह खुद से अपने मामले में शिकायत दायर कर सकता है। उपभोक्ता को किसी तरह की कोई कोर्ट फीस देने की जरूरत भी नहीं होती है,उसे बस एक नाम मात्र फीस देनी होती है,जो कोर्ट किस प्रकार की है और कितना क्लेम मांगा गया है,उस पर आधारित होती है।

    उपभोक्ता शिकायत दायर करने की प्रक्रिया-

    - सबसे पहले यह पता किया जाए कि आपकी शिकायत किस फोरम के अधिकार क्षेत्र में दायर हो सकती है। उपभोक्ता को अपनी शिकायत दायर करते समय फोरम के क्षेत्रीय व आर्थिक अधिकार क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए,उसी हिसाब से उचित फोरम में शिकायत दायर करनी चाहिए।

    -अपनी शिकायत का ड्राफट तैयार करें,जिसमें सभी जरूरी तथ्यों का उल्लेख करें ताकि वह आपका केस बन सकें। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 में शिकायत का फाॅरमेट दिया गया है। (Click here to download the format).

    आपको अपनी शिकायत के साथ निर्धारित फीस भी संबंधित फोमर के समक्ष जमा करानी होगी।

    - आरोपों को साबित करने वाले सभी कागजात इस शिकायत के साथ लगाए। इसके लिए सामान का बिल,वारंटी व गारंटी कार्ड और लिखित शिकायत व ट्रेडर को भेजे गए उस नोटिस की काॅपी भी लगाई जाए,जिसमें उसका खराब वस्तु को ठीक करने का आग्रह किया गया हो।

    -शिकायत में विशेष तौर पर मुआवजे की राशि का जिक्र किया जाए,जो आप विक्रेता या दुकानदार से मांगना चाहते है। मुआवजे के अलावा उपभोक्ता अपने सामान का मूल्य,हर्जाना,मुकद्मे का खर्च व ब्याज की राशि भी मांग सकता है।

    -शिकायत के साथ एक हलफनामा भी दायर किया जाना चाहिए,जिसमें यह बताया जाए कि शिकायत में दिए गए सत्य सही व सत्य है।

    -शिकायतकर्ता खुद या किसी अन्य अधिकृत प्रतिनिधि के जरिए व्यक्तिगत तौर पर बिना वकील को नियुक्त किए अपनी शिकायत पेश कर सकता है। फोरम में शिकायत रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए भी भेजी जा सकती है। इसके अलावा सभी पक्षकारों के लिए अलग से एक-एक काॅपी और दायर करनी होती है।

    यह शिकायत आॅन लाइन भी दायर की जा सकती है। जिसके लिए निम्नलिखित वेबसाइट का प्रयोग किया जा सकता है।

    -एचटीटीपीः//कोर डाॅट एनआईसी डाॅट इन

    -एचटीटीपीः// डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाॅट कंज्यूमरग्रीवनंस डाॅट काम

    -एचटीटीपीः//इंडिया डाॅट जीओवी डाॅट इन/लोज-कंप्लेन-आॅनलाइन-नेशनल-कं ज्यूमर-हेल्पलाइन-पोर्टल

    -एचटीटीपीः//सीसीआरसी डाॅट इन/सबमिट कंप्लेन डाॅट पीएचपी

    कानून व पूरे न्यायिक सिस्टम की सफलता नागरिकों की शक्ति पर निर्भर करती है। इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी पूरी करें और अपने अधिकारों का प्रयोग करे। मर्जी आपकी हैै।

    नमिता शाह,एजक्राफ्ट टैक्नोलाॅजी एलएलपी में सांझेदार है।

    (इस लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने है। इस लेख में दिए गए तथ्य लाइव लाॅ के अपने विचार नहीं है। न ही लेख में दिए गए तथ्यों या विचारों के लिए लाइव लाॅ कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।)

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