ड्रग अब्यूज एंड टैªफिकिंग को सीमित करने के लिए ज्यूडिशियल हस्तक्षेप है जरूरी
LiveLaw News Network
7 April 2017 5:26 PM IST
दो टीनएजर ने इंटरनेशन टैªफिकिंग रैकट के बारे में खुलासा हुआ किया है। तेजसवीटा प्रधान(17 साल) व शिवानी गोंडा (16 साल) स्टूडेंट अगेंस्ट टैªफिकिंग क्लब (एस.ए.टी.सी) के सदस्य है। नेपाल से गायब हुई एक नाबालिग लड़की को दार्जलिंग की एक एनजीओ मैनकाइंड इन एक्शन फाॅर रूरल ग्रोथ (एम.ए.आर.जी) की मदद से दिल्ली में खोजा गया है।
जिसके बाद तेजसवीटा व शिवानी ने नाबालिगों को खोजना शुरू कर दिया और एम.ए.आर.जी व पुलिस प्रशासन के निर्देशन में काम करने लग गए। एक इंटरनेशन सैक्स रैकेट ने इस नाबालिग को फंसाया और उसे दिल्ली ले आया,जहां से तेजसवीटा व शिवानी ने इस नाबालिग को बचाने में मदद की।
तेजसवीटा व शिवानी को बाद में इंडियन काउंसिल फाॅर चाईल्ड वेल्फेयर ने उनके काम के लिए उन दोनों को नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया।
कोलकता हाईकोर्ट जज जस्टिस अनिरूद्ध बोस व न्यायमूर्ति जोयमाल्या बागची ने भी इन दोनों लड़कियों का 18 मार्च को दार्जलिंग में आयोजित एक सेमीनार में अभिनंदन किया। यह सेमीनार वेस्ट बंगाल स्टेट लीगल सर्विस अॅथारिटी(डब्ल्यू.बी.एस.एल.एस.ए) की तरफ से टैªफिकिंग एंड ड्रग पर आयोजित किया गया था। परंतु यह एक सफल कहानी है।
डब्ल्यू.बी.एस.एल.एस.ए द्वारा टैªफिकिंग एंड ड्रग पर आयोजित इस सेमीनार ने स्थानीय युवाओं व जिला प्रशासन के बीच एक विश्वास बनाना शुरू कर दिया। इस सेमीनार में मानव तस्करी व ड्रग अब्यूज की समस्या पर बातचीत करने पर जोर दिया गया। जिला दंडाधिकारी व पुलिस अधीक्षक ने इस बात का आश्वासन दिया कि वह युवाओं की सहायात करेंगे और इस समस्या से निपटने के समुदायिक स्तर पर काम करेंगे।
तस्करी व मादक पदार्थ के दुरूपयोग के मामलों के साथ समस्या यह है कि इनको शुरूआती स्तर पर पकड़ पाना मुश्किल होता है। दोनों पर सामाजिक तौर पर रोक है और दोनों ही मामलों के पीड़ितों को सामाजिक स्तर पर शर्म महसूस करनी पड़ती है। ऐसे में पीड़ित सहायता मांगने में हिचकिचाते हैं और कोई सहायता करना भी चाहे तो वह नहीं लेते हैं।
जस्टिस अनिरूद्ध बोस, डब्ल्यू.बी.एस.एल.एस.ए के एक्ज्यूक्टिव चेयरमैन है और जस्टिस जोयमाल्या बागची,दार्जलिंग जिले की जज इंचार्ज है। दोनों ने ऐसे मामलों के पीड़ितों को कलंकित न करने पर जोर दिया। उन्होंने छात्रों को उत्साहित किया ताकि वह मादक पदार्थ की समस्या पर बातचीत कर सकें क्योंकि या तो वह इस समस्या से खुद ग्रसित है या वह ऐसे किसी ग्रसित युवा को जानते है। शिक्षकों व माता-पिता को भी सलाह दी गई इस तरह की समस्या से ग्रसित युवा को सहायता करें और उनकी इस लत को छुड़वाए।
जस्टिस बागची ने यह भी कहा कि नशा एक बीमारी है। अगर कोई व्यक्ति नशे का आदी हो गया है तो इस बीमारी को गाली देने की बजाय,पीड़ित को इलाज के लिए भेजा जाना चाहिए,ठीक उसी तरह जैसे किसी अन्य बीमारी का इलाज करवाया जाता है।
इतना ही नहीं जजों ने एक सोसिओ-लीगल व व स्ट्रैटजी बनाने पर जोर दिया ताकि युवाओं में तस्करी व नशे की बढ़ती इस समस्या को रोका जा सकें।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को इस मामले में पुलिस प्रशासन व सिविल-सोसायटी के बीच नोडल प्वाइंट की तरह काम करना चाहिए। ताकि सभी आपस में मिलकर काम कर सकें और मानव तस्करी व नशे की समस्या को बढ़ने से रोका जा सकें।
यह एक अपने आप में पहला प्रयास था,जिसमें आम लोगों की भागीदारी को सुरक्षित किया गया और पुलिस को आम लोगों के साथ मिलकर काम करने के प्रोत्साहित किया गया ताकि इस तरह की समस्याओं से निपटा जा सकें।
दार्जलिंग जिला अस्पताल में कोलकता हाईकोर्ट के जजों ने इसी दिन ड्रग रिहबिलेशन सेंटर की एक नई यूूनिट का उद्घाटन भी किया।
डिस्टर्बिंग टेंªड
नशा एक फिसलने वाली रस्सी है। कोई नशे का आदी बनने की योजना नहीं बनाता है। एक्सपर्ट के अनुसर सामाजिक स्तर पर सहायता न मिलने व उदासीनता नशे की आदत को पैदा करती है।इतना ही नहीं नशे का आदी बनने का भी एक पैटर्न है। युवा शुरूआत में एक्पेरिमेंट के तौर पर इसे लेते हैं और कुछ समय बाद वह इसके आदी हो जाते है। दार्जलिंग जिले में स्कूल व कालेज के छात्रों में नशे के दुरूपयोग के मामले अधिक बढ़ रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि माता-पिता व शिक्षकों में जागरूकता का अभाव है,जिस कारण इस तरह के मामले भविष्य में बढ़ सकते है। दुरूपयोग व लत को छुपाया जाता है। किसी नशे के आदी व्यक्ति को रिहेबिलेशन सेंटर में भेजने की बजाय,परिवार के लोग उसे छुपाने की कोशिश करते है। इतना तरह माता-पिता भी नशामुक्ति के इलाज को नकारते हैं क्योंकि इससे बच्चे की पढ़ाई बीच में छूट जाती है। इलाज के मामले में ऐसी अदूरदर्शी समझ इस तरह की समस्याओं को और बढ़ावा दे रही है।
नशे के मामले में पूरे देश में बढ़ रहे है,यह समस्या कुछ जिलों या राज्यों तक सीमित नहीं रही है। वर्ष 2015 के नारकोटिक ब्यूरो कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार अकेले तीन टन गांजा हर साल सीज किया जा रहा है। वर्ष 2015 की शुरूआत में कस्टम,प्रीवेंटिव एंड इंटेलिजेंस यूनिट,सिलीगुड़ी ने दो पार्सल सील किए थे,जिनमें 5.960 किलोग्राम गांजा दार्जलिंग में पकड़ा गया था। इसी साल पश्चिम बंगाल में अवैध तरीके से सबसे ज्यादा अफीम उगाई गई थी, 1899 एकड की तो नष्ट कर दिया गया था।
मानव तस्करी
हर साल दार्जलिंग से सैकड़ों लोग अन्य राज्यों मे ंनौकरी की तलाश में जाते है। यहां पर कई नौकरी दिलाने वाली एजेंसी है,जो स्कील्ड,सैमी-स्कील्ड व अन-स्कील्ड लोगों को नौकरी दिलाने में सहायता करती है। परंतु यह कहना मुश्किल है कि कब और कैसे कोई इंसान मानव तस्करी के रैकेट में फंस जाता है। नौकरी की तलाश में परदेश में जाकर बस जाना एक पुरानी परंपरा है। परदेश में जाने की इस प्रक्रिया में कई फैक्टर शामिल होते है। जिनमें परिवार के सदस्य,एजेंसी व नियोक्ता आदि शामिल है। ऐसे में सभी पर शक नहीं किया जा सकता है, न ही इस बारे में कोई अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे में आरोपियों को पकड़ पाना मुश्किल होता है।
तस्करी कई वजह व कई तरीकों से की जाती है। कुछ लोगों की तस्करी करके बंधुआ मजदूर बना दिया जाता है,वही कई को देह-व्यापार में धकेल दिया जाता है। विश्व में यह एक संगठित अपराध है और देह-व्यापार के लिए आदमी,औरत व बच्चों की तस्करी की जाती है। तस्करी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि काफी लंबे समय तक इसे पकड़ा नहीं जाता है या ध्यान नहीं दिया जाता है। जब तक किसी की तस्करी की सूचना मिलती है,तब तक इंसान राज्य की सीमा व देश की सीमा के पार जा चुका होता है।
राज्यों की पुलिस व जांच एजेंसियों में आपस में सूचनाओं के आदान-प्रदान व सहयोग न करने की भी समस्या है। वहीं इस तरह के पीड़ितों पर एक कलंक लग जाता है,इसलिए पीड़ित चाहकर भी वापिस नहीं आना चाहते हैं।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी) के अनुसार वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2014 के दौरान मानव तस्करी का अपराध 59.7 प्रतिशत बढ़ गया था। अक्सर मानव तस्करी के पीड़ित कानून की भूल-भलैया में उलझ जाते हैं,जिस कारण उनको दोहरी मार झेलनी पड़ती है। वहीं जब लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनको बरी कर दिया जाता है तो उन पर देह-व्यापार के साथ सजा पाने का भी कलंक लग जाता है।
मानव तस्करी व नशे के दुरूपयोग को रोकने के लिए सामाजिक व्यवस्था या नीति देशभर में मानव तस्करी व नशे की लत के केस बढ़े है। दार्जलिंग की लाॅ इंफारसिंग एजेंसी मानव तस्करी व नशे की बढ़ती लत को रोकने के लिए सामाजिक व्यवस्था पर आधारित एक माॅडल बनाने की कोशिश कर रही है। स्थानीय प्रशासन ने इसके लिए कृपा फाउंडेशन व स्थानीय एनजीओ एम.ए.आर.जी से इसके लिए हाथ मिलाया है।
कृपा फाउंडेशन एक नशा-मुक्ति व रिहेबिलेशन सेंटर है और एम.ए.आर.जी मानव तस्करी को रोकने के लिए काम करती है। कृपा व एम.ए.आर.जी के जरिए स्थानीय प्रशासन आम लोगों या समुदायों को इसमें जोड़ रहा है ताकि नागरिकों की रक्षा के लिए एक सुरक्षित जाल तैयार किया जा सके और मानव तस्करी व नशे की लत को रोका जा सके।
डब्ल्यू.बी.एस.एल.एस.ए ने दार्जलिंग जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ मिलकर इस संबंध में कानूनी जानकारी देने व मानव तस्करी और नशे की लत के खिलाफ जागरूक करने की योजना बनाई है,जिसमें सभी स्थानीय प्रशासन के लोगों को भी शामिल किया जाएगा ताकि लोगों में जागरूकता फैल सके। इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए स्थानीय प्रशासन ने नशे के पीड़ित व बेचने वालो के बीच में अंतर करना शुरू कर दिया है,जबकि पूर्व में दोनों को ही जेल जाना होता था। अब नशे के आदियों को कृपा के सेंटर में नशा-मुक्ति के लिए भेज दिया जाता है,वहीं बेचने वालो के खिलाफ केस चलाए जाते है।
वहीं मादक पदार्थ बेचने वाले कुछ लोग खुद भी नशा करते है,जबकि कुछ ऐसा नहीं करते है। ऐसे में नशा बेचने वाला कोई ऐसा व्यक्ति पकड़ा जाता है,जो खुद भी नशे का आदी है तो ऐसे लोगों को जेल के बाद उनको कृपा फाउंडेशन के नशा-मुक्ति केंद्र में भेज दिया जाता है। हालांकि जेल के अंदर नशा-मुक्ति केंद्र अभी बनना बाकी है।
मानव तस्करी व नशे की समस्या पूरे देश में बहुत बड़े स्तर पर बढ़ रही है। परंतु दार्जलिंग में एक असाधारण प्रयास करते हुए इस पर रोक लगाने का प्रयास किया जा रहा है,जिसके तहत न्यायिक हस्तेक्षप को धन्यवाद दिया जाना जरूरी हैै।
समिता चक्राबर्ती ,कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली कार्यकता व रिसर्चर है। इस समय वह अजीम प्रेमजी द्वारा शुरू फिलंथ्रोपिक इनिशटिव-एपीपीआई में कोर्ट व आपराधिक जस्टिस सिस्टम के कंसलटेट स्पेलिशिस्ट तौर पर काम कर रही है।
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