ठीक हो चुके मानसिक रोगियों के पुर्नवास के लिए बनाए पाॅलिसी-सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
7 April 2017 5:23 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह आठ सप्ताह के अंदर एक पाॅलिसी बनाए ताकि उन लोगों का पुर्नवास किया जा सके,जिनको मानसिक रोग के कारण पागलखानों में भेज दिया गया था और अब वह पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। कोर्ट ने कहा कि ठीक हो चुके लोगों को मानसिक रूप से बीमार अन्य मरीजों के साथ रखा जाना गलत व अमानवीय है।
मुख्य न्यायाधीश जे.एस.केहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने साॅलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है। हम ठीक हो चुके लोगों को उन लोगों के साथ नहीं रहने दे सकते हैं,जो अभी मानसिक रूप से बीमार है।
पिछले सप्ताह कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि मानसिक रूप से पीड़ित व पागलखानों या अस्पतालों में ठीक हो चुके मानसिक रोगियों के मामले में एक यूनिफार्म नेशनल पाॅलिसी बनाए। कोर्ट ने कहा था कि यह मुद्दा संविधान की कंकरंट लिस्ट में शामिल है और केंद्र सरकार के पास इस संबंध में नियम बनाने का अधिकार है। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था।
इस मामले में दायर जनहित याचिका में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न पागलखानों या मानसिक रोगियों के लिए बने अस्पतालों से लगभग तीन सौ लोगों को रिहा किया जाना है,परंतु उनको ठीक होने के बाद भी मानसिक रोगियों के साथ ही रखा जा रहा है। इनमें से अधिक्तर लोग गरीब हैं। इसलिए इस मामले में एक नेशनल पाॅलिसी होनी चाहिए,जो पूरे देश में एक समान लागू हो सकें।
जिसके बाद खंडपीठ ने वकील से कहा था कि वह सुनिश्चित करें कि इस मामले में केंद्र व अन्य को कोर्ट के नोटिस मिल जाए।
पिछले साल 18 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में छह राज्यों को नोटिस जारी किया था ताकि उत्तर प्रदेश के मानसिक अस्पतालों या पागलखानों में ठीक हो चुके तीन सौ लोगों को छोड़ा या इनसे बाहर निकाला जा सकें। मुख्य न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल,राजस्थान,केरला,जम्मू एंड कश्मीर और मेघालय को नोटिस जारी किया था। यह नोटिस उस जनहित याचिका पर जारी किया था,जिसमें ठीक हो चुके लोगों को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाने और समाज में उनको सुरक्षा देने की मांग की गई थी।
वकील गौरव कुमार बंसल ने इस मामले में यह जनहित याचिका दायर की है। उसने आरोप लगाया था कि ठीक हो चुके मानसिक रोगियों को अब भी अस्पताल से नहीं निकाला जा रहा है और ऐसे लोगों के डिस्चार्ज होने के बाद उनकी देखभाल के लिए कोई पाॅलिसी नहीं है। इस याचिका में एक आर.टी.आई के तहत मिले जवाब का भी हवाला दिया गया था। यह आर.टी.आई उत्तर प्रदेश के बरेली,वाराणसी व आगरा के अस्पतालों के मरीजों के संबंध में थी,जिसमें बताया गया था कि ठीक हो चुके रोगियों को भी अस्पताल से डिस्चार्ज नहीं किया जा रहा है। आर.टी.आई के तहत बरेली के मेंटल हेल्थ हाॅस्पिटल,आगरा के इंस्ट्टियूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड हाॅस्पिटल और मेंटल हाॅस्पिटल,वराणसी के उन रोगियों के नाम,पते व उम्र के बारे में जानकारी मांगी गई थी,जो ठीक हो चुके हैं,परंतु अभी भी इन अस्पतालों में हैं। इतना ही नहीं यह भी पूछा गया था कि किस वर्ष में इन मरीजों को फिट घोषित कर दिया गया था। इसलिए वकील बंसल ने इस मामले में दायर याचिका में मांग की है कि राज्यों को निर्देश दिया जाए कि उन मरीजों किसी ओल्ड एज होम या अन्य सुरक्षित जगह पर शिफट करने का उचित प्रबंध करे जो ठीक हो चुके है। वहीं इस तरह के महिला व पुरूष मरीजों को राहत देने व इनके पुनर्वास के लिए उचित दिशा-निर्देश तय करने के लिए भी निर्देश दिए जाएं।