कार्यस्थल पर यौन शोषण मामला,लआंतरिक शिकायत कमेटी को देना चाहिए स्पष्ट निर्णयः दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

7 April 2017 11:43 AM GMT

  • कार्यस्थल पर यौन शोषण मामला,लआंतरिक शिकायत कमेटी को देना चाहिए स्पष्ट निर्णयः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों ही अपने एक फैसले में कहा है कि सैक्सुअल हरेसमेंट आॅफ वूमन एट वर्कप्लेस(प्रीवेंशन,प्रोहिबेशन एंड रिडेªशल ) एक्ट 2013 के तहत गठित आंतरिक शिकायत कमेटी (आई.सी.सी) को किसी भी ऐसी घटना में शामिल व्यक्ति के संबंध में अपना स्पष्ट निर्णय देना होगा कि वह व्यक्ति दोषी है या नहीं।

    न्यायमूर्ति वाल्मिकी मेहता इस मामले में अशोक कुमार सिंह नामक व्यक्ति की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिकाकर्ता ने दयाल सिंह इवनिंग कालेज की आई.सी.सी की रिपोर्ट के खिलाफ यह याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता के खिलाफ इस कमेटी के समक्ष एक शिकायत दायर की गई थी।

    याचिकाकर्ता ने दो आधार पर कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती दी थी। पहला आधार यह है कि इस रिपोर्ट में शिकायत के बारे में प्रथम दृष्टया विचार रखा गया है,परंतु स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया है और उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित कर दिया है। जबकि एक्ट की धारा 13(3) के तहत स्पष्ट निर्णय दिया जाना चाहिए। उसने दूसरा आधार यह बनाया था कि उसे उसके पक्ष में सबूत पेश करने की अनुमति नहीं दी गई ताकि वह अपना बचाव कर सकें। इसलिए तमाम तथ्यों को देखते हुए यह रिपोर्ट खराब है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं करती है। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    खंडपीठ ने कमेटी की रिपोर्ट देखने के बाद निम्नलिखित तथ्य पाए-

    1 आई.सी.सी ने अपनी रिपोर्ट में जो निर्णय दिया है,वो प्रथम दृष्टया है,न कि अंतिम निर्णय।

    2 याचिकाकर्ता के दोष के बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं दिया गया है। कुछ तथ्य पाए जाने की बात कही गई है,परंतु उसके दोष के लिए कोई निश्चित या स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया है।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक्ट की धारा 13(1) के तहत इशारा या इजहार करने वाले निर्णय का प्रयोग किया गया है परंतु एक्ट की उपधारा (3) के तहत स्पष्ट व साबित करने वाले (हैज बिन प्रूवड) शब्द का प्रयोग किया गया है। इसलिए आई.सी.सी की रिपोर्ट में निष्कर्ष स्पष्ट होने चाहिए। साथ ही यह बताते हो कि इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित हो रहे हैं।

    एक्ट की धारा 13 और उपधारा (1) व (3) के तहत जो रिपोर्ट जरूरी है,उसके अनुसार इस मामले में दी गई रिपोर्ट में निर्णय तो दिया गया है,परंतु याचिकाकर्ता के दोष के मामले में कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया है, न ही रिपोर्ट में यह बताया गया है कि शिकायत में लगाए गए आरोप साबित हुए या नहीं।

    न्यायमूर्ति मेहता के अनुसार सभी रिपोर्ट एक्ट की धारा 13 की उपधारा (3) का उल्लंघन कर रही है क्योंकि इनमें याचिकाकर्ता के दोष के बारे में कोई स्पष्ट निर्णय नहीं दिया गया है। न ही इस बारे में स्पष्ट बताया गया है कि याचिकाकर्ता पर लगाए गए आरोप साबित हो रहे हैं।

    हाई कोर्ट ने कहा कि इसलिए रिपोर्ट के उस हिस्से को रद्द किया जा रहा है जो एक्ट की धारा 13 की उपधारा (3) का उल्लंघन कर रहा है। खंडपीठ ने कहा कि रिपोर्ट का क्रियाशील हिस्सा ही एक्ट की धारा 13 की उपराधारा (3) का उल्लंघन कर रहा है। इसलिए आई.सी.सी इस मामले में फिर से एक नई रिपोर्ट दें,परंतु उनको पूरी छूट है कि अगर वह चाहे तो अपनी तीस जून 2015 व 12 फरवरी 2016 में दी गई रिपोर्ट के तक-वितर्क पर विश्वास कर सकती है।

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