नर्सरी दाखिला मामला-नेबरहुड क्राइटेरिया पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

LiveLaw News Network

4 April 2017 3:24 PM GMT

  • नर्सरी दाखिला मामला-नेबरहुड क्राइटेरिया पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

    दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी कक्षा में अपने बच्चों का दाखिला कराने के इच्छुक परिजनों को बड़ी राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने दिल्ली सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगा दी है,जिसमें कहा गया था कि नर्सरी दाखिले में उन बच्चों को तरजीह दी जाएगी,जो स्कूल के नजदीक (पड़ोस) रहते हैं। दिल्ली सरकार ने इस मामले में दो अधिसूचनाएं 19 दिसम्बर 2016 व 7 जनवरी 2017 जारी किए थे। इन अधिसूचनाओं के अनुसार स्कूल के जीरो से तीन किलोमीटर के दायरे में रहने वाले छात्रों को नर्सरी दाखिले में तरजीह दी जाएगी।

    डीडीए की जमीन पर बने 298 गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूस ने इस अधिसूचना से सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे थे, जिन्होंने अधिसूचना के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर रखी है। इन अधिसूचनाओं के अनुसार स्कूल उन बच्चों को दाखिला देने से इंकार नहीं कर सकते थे जो नेबरहुड का क्राइटेरिया पूरा करते हो।

    इस मामले में दोनों अधिसूचनाओं के खिलाफ चार याचिकाएं दायर की गई थी,जिन पर न्यायालय सुनवाई कर रही है। मुख्य याचिकाकर्ता फोरम फाॅर प्रमोशन आॅफ क्वालिटी एजुकेशन की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील गुप्ता,एक्शन कमेटी अनएडेड रिकॉग्नाइज्ड प्राइवेट स्कूल की तरफ से वरिश्ठ अधिवक्ता अमित सिब्बल व कुछ परिजनों की तरफ से सीनियर काउंसिल संदीप सेठी इस मामले में पेश हुए थे। वहीं राज्य सरकार की तरफ से एएसजी संजय जैन व वरिष्ठ अधिवक्ता एस जी कुमार पेश हुए थे।

    सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह ने इस मामले में कई टिप्पणियां की,जो इस प्रकार है।

    1 इस कोर्ट का प्रथम दृष्टया मानना है कि आरटीई एक्ट के सेक्शन 12(1)(सी) के तहत नेबरहुड की धारणा इसलिए जोड़ी गई थी ताकि इससे उन बच्चों को फायदा मिल सकें जो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले है और उन्हें दूरी के कारण स्कूल की पढ़ाई न छोड़नी पड़े। इस तरह स्कूल छोड़ने वाली यह धारणा सामान्य कैटेगरी के उन बच्चों पर लागू नहीं होती है जो फीस देकर निजी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। इस धारणा के पीछे यह कारण था ताकि गरीब बच्चे स्कूल की पढ़ाई न छोड़े। ऐसे में इस धारणा को सब पर लागू नहीं की जा सकती है।

    2 कोर्ट का प्रथम दृष्टया यह भी मानना है कि नेेबरहुड का क्राइटेरिया निर्धारित करने का अधिकार डीडीए के पास उस समय था,जब उसने जमीन अलाॅट की। इस तरह के क्राइटेरिया को अब तीन से चार दशक बीत जाने के बाद फिर से परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

    3 वहीं इस कोर्ट का यह भी मानना है कि जब शिक्षा निदेशालय या उपराज्यपाल सीधे तौर पर डीएसई एक्ट के सेक्शन 16(3) व डीएसई एक्ट के रूल 145 में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं तो वह इस तरह लैटर आॅफ अॅलाटमेंट की परिभाषा के जरिए भी इनमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

    4 इस कोर्ट का प्रथम दृष्टया मानना है कि 7 जनवरी 2017 की अधिसूचना गलत और भेदभाव करने वाली है। चूंकि इससे उन बच्चों व परिजनों को लाभ मिलेगा जो स्कूल के आसपास रहते हैं।

    5 कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार ने जनहित की समस्या (जैसे जाम की समस्या,प्रदूषण,बच्चों का स्वास्थ्य आदि) को ध्यान में रखते हुए नेबरहुड का यह क्राइटेरिया उन 1400 निजी स्कूलों पर लागू नहीं किया,जिन्होंने डीडीए से जमीन नहीं ली है तो यह क्राइटेरिया उन 298 निजी स्कूलों पर कैसे लागू किया जा सकता है,जिन्होंने डीडीए से जमीन ली है।

    6 इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि सरकार को निजी शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित करने का अधिकार है परंतु 7 जनवरी 2017 की अधिसूचना स्कूलों को निष्पक्ष व पारदर्शी दाखिला प्रक्रिया अपनाने से रोक रही है।

    कोर्ट ने कहा कि इन तमाम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उनका प्रथम दृष्टया यह मानना है कि यह केस याचिकाकर्ताओं के पक्ष में है और दाखिला प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऐसे में इस अधिसूचना पर अंतरिम रोक नहीं लगाई गई तो इससे स्कूलों को नुकसान होगा। इसलिए 7 जनवरी 2017 की अधिसूचना पर तब तक रोक लगाई जाती है,जब तक इस मामले में दायर याचिकाओं का निपटारा नहीं हो जाता है।

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