Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

केजरीवाल बनाम केंद्र सरकार विवाद-सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मामले से जुड़ी याचिकाएं संवैधानिक पीठ के पास भेजी

LiveLaw News Network
12 March 2017 6:48 PM GMT
केजरीवाल बनाम केंद्र सरकार विवाद-सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मामले से जुड़ी याचिकाएं संवैधानिक पीठ के पास भेजी
x

ज्यादा समय तक सुनवाई करने के बाद एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार व दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के बीच चल रहे विवाद को लेकर दायर सभी याचिकाएं सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेज दी है।

इस मामले में एक एसएलपी के जरिए दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 4 अगस्त 2016 के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है,जिसके तहत उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक या संवैधानिक मुखिया बताया था। साथ ही कहा था कि उपराज्यपाल काउंसिल आॅफ मिनिस्टर की सलाह-मशविरा मानने के लिए बाध्य नहीं है।

केंद्र सरकार इस मामले में पहले ही यह मांग कर चुकी थी कि इस मामले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया जाए।

इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजते हुए न्यायमूर्ति एके सिकरी व न्यायमूर्ति एनपी रमाना ने कहा कि इस मामले में कानून व संविधान के महत्वपूर्ण सवाल सम्मिलित है।इसलिए यह उचित रहेगा कि इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ करें।

वहीं दिल्ली सरकार ने इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे मामले की सुनवाई में देरी होगी। जिस पर न्यायमूर्ति एके सिकरी ने केंद्र सरकार व आप सरकार को अनुमति देते हुए कहा कि अगर उनको लगे कि इस विवाद के कारण दिल्ली का शासन प्रभावित हो रहा है तो वह इस तथ्य को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रख सकते हैं ताकि मामले की जल्द सुनवाई की जा सकें।

खंडपीठ ने इस मामले में उन कानूनी मुद्दों को भी तय करने से मना कर दिया,जिनका निर्णय संवैधानिक पीठ द्वारा किया जाना है। खंडपीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के लिए यह उचित होगा कि वह इस मामले में नए सिरे से जिरह करें।

पिछले सप्ताह दिल्ली सरकार के तरफ से पेश अधिवक्ताओं में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रहमण्यम स्वामी ने विस्तृत लिखित दलीलें पेश की थी,जिसमें कुल 47 कारण बताए गए थे कि क्यों दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय गलत है और उसे रद्द कर दिया जाना चाहिए।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील देते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्याख्या लोकतांत्रिक विचारधारा और संविधान के मूलभूत ढा़चें के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय की व्याख्या ने संविधान के अनुच्छेद 239ए ए ;3द्ध; एद्ध, अनुच्छेद 239ए ए ;4द्ध के प्रभाव को निरस्त कर दिया है। इस आदेश ने मिनिस्टर आॅफ काउंसिल के सलाह-मशविरे शब्द को अर्थहीन कर दिया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने पूर्व राज्यपाल नजीब जंग द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल पर भी रोक लगाने की मांग की थी। इस पैनल का गठन पूर्व उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार द्वारा विभिन्न मामलों में लिए गए निर्णय से संबंधित 400 फाइलों का निरीक्षण करने के लिए किया था।

आप सरकार ने अपनी दलीलों पर कायम रहते हुए कहा था कि अगर भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए सरकार को एंटी-क्रप्शन ब्रांच जैसी एजेंसी पर नियंत्रण नहीं होगा तो उनको आम जनता द्वारा पांच साल के लिए चुनना बेकार साबित होगा।

आप सरकार की तरफ से दलील दी गई कि यह निर्धारित संवैधानिक प्रिंसीपल है कि राज्य के प्रतीकात्मक मुखिया जैसे राज्यपाल या उपराज्यपाल को मिनिस्टर आॅफ काउंसिल के सलाह-मशविरे पर काम करना होगा और वह ऐसा करने के लिए बाध्य है। परंतु उच्च न्यायालय ने एक नए संवैधानिक रास्ते पर चलते हुए उपराज्यपाल को प्रशासनिक या संवैधानिक मुखिया घोषित कर दिया और कह दिया कि वह काउंसिल आॅफ मिनिस्टर की सलाह-मशविरा मानने के लिए बाध्य नहीं है।

Next Story