क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के खिलाफ जांच पर रोक लगाता है? छेड़छाड़ मामले में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल को मिली छूट पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से मदद मांगी
LiveLaw News Network
19 July 2024 1:14 PM IST
शुक्रवार (19 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राजभवन की एक पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका में भारत के अटॉर्नी जनरल से मदद मांगी, जिसमें महिला द्वारा राज्यपाल के खिलाफ की गई छेड़छाड़ की शिकायत में जांच के खिलाफ राज्य के राज्यपाल सीवी आनंद बोस द्वारा दावा की गई छूट को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार राज्यपालों को आपराधिक कार्यवाही से दी गई छूट जांच पर रोक नहीं लगा सकती।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिकाकर्ता को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में भारत संघ को पक्षकार बनाने की स्वतंत्रता दी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 361 जांच पर रोक नहीं लगा सकता।
दीवान ने कहा,
"ऐसा नहीं हो सकता कि जांच न हो। साक्ष्य अभी जुटाए जाने चाहिए। इसे अनिश्चित काल के लिए टाला नहीं जा सकता।"
उन्होंने याचिका में मांगी गई प्रार्थना (सी) और (डी) पर नोटिस के लिए अनुरोध किया। प्रार्थना (सी) में राज्य पुलिस तंत्र के माध्यम से पश्चिम बंगाल राज्य को मामले में जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
प्रार्थना (डी) में राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग कैसे किया जा सकता है, इस पर दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की गई है।
याचिका में नोटिस जारी करते हुए पीठ ने कहा:
"याचिका संविधान के अनुच्छेद 361 के खंड (2) के तहत राज्यपाल को दी गई सुरक्षा के दायरे से संबंधित मुद्दा उठाती है, जिसके अनुसार "राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।"
याचिकाकर्ता खंड (2) के संरक्षण के संबंध में मुद्दा उठाती है, विशेष रूप से, जब आपराधिक कार्यवाही का गठन किया गया माना जाएगा।"
पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से एडवोकेट आस्था शर्मा ने नोटिस स्वीकार किया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि अनुच्छेद 361 राज्यपाल के खिलाफ पुलिस जांच पर रोक नहीं लगाता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राज्यपाल आपराधिक कृत्यों के संबंध में पूर्ण संरक्षण का दावा नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ऐसा संरक्षण देना से उन्हें ट्रायल शुरू करने के लिए राज्यपाल के पद छोड़ने का इंतजार करना पड़ेगा, जो अनुचित है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
अनुच्छेद 361 के अनुसार राज्यों के राज्यपालों को "अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन" या उसी के अनुसरण में किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी होने से संरक्षण प्रदान किया जाता है। अनुच्छेद 361 (2) और (3) राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी आपराधिक कार्यवाही और गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान करते हैं।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने अपने और अपने परिवार के जीवन की सुरक्षा, प्रतिष्ठा के नुकसान के लिए मुआवजा और राज्य पुलिस को मामले की जांच करने के निर्देश देने की प्रार्थना की है।
उल्लेखनीय है कि 1 जुलाई को बोस ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को एक पत्र लिखकर कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए कोलकाता पुलिस आयुक्त और उपायुक्त को हटाने की मांग की थी, जो उनकी संवैधानिक प्रतिरक्षा का उल्लंघन होगा।
पृष्ठभूमि
मामले की शुरुआत राजभवन, कोलकाता के एक पूर्व संविदा कर्मचारी द्वारा राज्यपाल और राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) सहित तीन अन्य कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर से हुई। बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था, जबकि कर्मचारियों पर पीड़िता को राजभवन के एक कमरे में गलत तरीके से बंधक बनाने का आरोप था।
24 मई को कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) और राजभवन के अन्य कर्मचारियों के खिलाफ पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी।
यह भी उल्लेखनीय है कि बोस ने छेड़छाड़ के आरोपों के संबंध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ मानहानि का मामला कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर किया है। हाल ही में हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी को राज्यपाल के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोक दिया था।
याचिका में निम्नलिखित राहतें मांगी गई हैं:
क) याचिकाकर्ता और उसके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस महानिदेशक के माध्यम से पश्चिम बंगाल राज्य को परमादेश या किसी अन्य उपयुक्त रिट, आदेश या निर्देश सहित रिट जारी करें;
ख) रिट/रिटें जारी करें जिसमें परमादेश या किसी अन्य उपयुक्त रिट, आदेश या निर्देश शामिल हो, जिसमें पश्चिम बंगाल राज्य को पीड़िता की पहचान की रक्षा करने में राज्य मशीनरी की विफलता के कारण याचिकाकर्ता और उसके परिवार द्वारा झेली गई प्रतिष्ठा और गरिमा के नुकसान के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया गया हो;
ग) रिट/रिटें जारी करें जिसमें परमादेश या किसी अन्य उपयुक्त रिट शामिल हो, जिसमें पश्चिम बंगाल राज्य को राज्य पुलिस मशीनरी के माध्यम से जांच करने का आदेश दिया गया हो, जिसमें राज्य पुलिस के अधिकार भी शामिल हों।
किसी अपराध की जांच के संबंध में पुलिस द्वारा माननीय राज्यपाल का बयान दर्ज करना, यदि ऐसा करना आवश्यक हो;
घ) अनुच्छेद 361 के तहत दी गई संरक्षण का प्रयोग माननीय राज्यपाल के कार्यालय द्वारा किस सीमा तक किया जा सकता है, इस बारे में दिशा-निर्देश और योग्यताएं निर्धारित करना
मामले का विवरण : XXX बनाम पश्चिम बंगाल राज्य डब्ल्यूपी (सीआरएल.) संख्या 295/2024