पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2019 में शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल के लोकसभा में निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Amir Ahmad

11 Dec 2024 6:24 AM

  • पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2019 में शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल के लोकसभा में निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2019 के आम चुनावों में शिरोमणि अकाली दल (SAD) के नेता एवं सांसद सुखबीर सिंह बादल के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि अस्पष्ट कथनों के आधार पर चुनाव याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

    चुनाव याचिका में आरोप लगाया गया कि बादल फॉर्म 26 में आश्रित बेटियों का विवरण देने में विफल रहे, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा संबोधित रैलियों के दौरान किए गए व्यय को छोड़ दिया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए शराब के वितरण जैसे भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहे।

    जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने अपने आदेश में कहा,

    "केवल इसलिए कि प्रतिवादी की बेटियां हैं, वह अपने आप में आश्रित नहीं हो जाती। ऐसा नहीं है कि बेटी पिता पर आश्रित नहीं हो सकती। इसलिए फॉर्म 26 में पूर्ण विवरण प्रस्तुत न करने के संबंध में भौतिक तथ्यों के अभाव में आरोप टिकने योग्य नहीं है।"

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "जहां तक ​​सतिंदर सिंह मंटा द्वारा शराब और नकदी वितरित करने के भ्रष्ट आचरण के बारे में आरोप का सवाल है, यह भी भौतिक तथ्यों से रहित है। इस बारे में कोई तथ्य नहीं पेश किया गया कि मंटा किस समय, कहां और किसे शराब वितरित कर रहा था; न ही यह आरोप है कि यह प्रतिवादी या उसके चुनाव एजेंट की सहमति से किया जा रहा था। इसलिए कथित भ्रष्ट आचरण के बारे में सभी महत्वपूर्ण तथ्य गायब हैं।"

    चुनाव खर्च का खुलासा न करने के आरोपों के संबंध में न्यायालय ने कहा कि आरपीए की धारा 123 (vi) के अनुसार धारा 77 के उल्लंघन में व्यय करना या अधिकृत करना एक भ्रष्ट आचरण है। जहां तक ​​प्रतिवादी द्वारा व्यय करने का सवाल है ऐसा कोई आरोप नहीं है। यह कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि उसने आरपीए की धारा 77 के तहत निर्धारित सीमाओं से परे व्यय किया या अधिकृत किया।

    ये टिप्पणियां कश्मीर सिंह नामक व्यक्ति की जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80, 80-ए सहपठित धारा 81, 100 और 101 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं। याचिका में बादल के चुनाव को रद्द करने और उसे शून्य घोषित करने की मांग की गई थी।

    बादल वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में फिरोजपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद न्यायालय ने चुनौती के प्रत्येक आधार पर विचार किया और उन्हें खारिज कर दिया। अन्य आधारों के अलावा, यह आरोप लगाया गया कि बादल ने नियमों आदि की आवश्यकताओं के अनुसार समाचार पत्रों और मीडिया में आपराधिक मामलों की सूची प्रकाशित नहीं की है।

    न्यायालय ने कहा,

    "इस आरोप में भी महत्वपूर्ण विवरण का अभाव है, क्योंकि प्रतिवादी पर जिन आपराधिक मामलों में शामिल होने का आरोप है, उनमें से किसी का भी विवरण नहीं दिया गया और न ही इस संबंध में उनके द्वारा उल्लंघन किए गए नियमों का विवरण दिया गया है।"

    जस्टिस दहिया ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि सदर पुलिस स्टेशन के पुलिस दल ने भारी मात्रा में शराब जब्त की। आम राय थी कि यह प्रतिवादी की थी तथा इसे क्षेत्र के मतदाताओं में वितरित किया जाएगा।”

    न्यायाधीश ने कहा,

    "यह भी एक अस्पष्ट कथन है, जिसमें कोई भी तथ्य नहीं है; न तो शराब की मात्रा न ही जब्ती का स्थान तिथि, समय, या प्रतिवादी या उसके चुनाव एजेंट को इसका श्रेय देने का आधार बताया गया। इसके अलावा, आरोप यह है कि आम राय के अनुसार शराब प्रतिवादी की थी ऐसा होने पर याचिकाकर्ता द्वारा फॉर्म 25 में हलफनामा दाखिल करके इस तथ्य को सत्यापित नहीं किया जा सकता था।”

    यह देखते हुए कि आरोप यह नहीं है कि शराब वास्तव में वितरित की गई, बल्कि इसे वितरित करने का इरादा था न्यायालय ने कहा कि लगभग सभी भौतिक विवरणों की कमी वाले ऐसे अस्पष्ट कथनों पर चुनाव याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने आगे पाया कि चुनाव याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा की गई कार्रवाई के पूर्ण कारण का खुलासा नहीं किया गया है, तथा इस पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 83 के तहत अनिवार्य आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं किया गया। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 83 के अनुसार, चुनाव याचिका में उन तथ्यों का संक्षिप्त विवरण होना चाहिए जिन पर याचिकाकर्ता निर्भर करता है। इसमें याचिकाकर्ता द्वारा आरोपित किसी भी भ्रष्ट आचरण का पूरा विवरण होना चाहिए, जिसमें यथासंभव पूर्ण विवरण के साथ उन पक्षों के नाम भी शामिल होने चाहिए, जिन पर ऐसा भ्रष्ट आचरण करने का आरोप है तथा प्रत्येक ऐसे आचरण के किए जाने की तिथि और स्थान भी शामिल होना चाहिए।

    प्रावधान में यह भी कहा गया कि जहां याचिकाकर्ता किसी भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाता है, वहां याचिका के साथ ऐसे भ्रष्ट आचरण के आरोप और उसके विवरण के समर्थन में निर्धारित प्रपत्र में हलफनामा भी संलग्न करना होगा।

    न्यायाधीश ने कहा कि याचिका में अन्य अनिवार्य आवश्यकता का भी अभाव है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने कहीं भी यह दलील नहीं दी कि प्रतिवादी के चुनाव का परिणाम आरपीए या नियमों के प्रावधानों के कथित गैर-अनुपालन से भौतिक रूप से प्रभावित हुआ है।"

    उपर्युक्त के आलोक में याचिका खारिज कर दी गई।

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