किसी को भी उपचारहीन नहीं छोड़ा जा सकता: आश्चर्य है कि कैसे 20 साल तक कर्मचारी को उपचार से वंचित रखा गया: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

17 May 2024 7:42 AM GMT

  • किसी को भी उपचारहीन नहीं छोड़ा जा सकता: आश्चर्य है कि कैसे 20 साल तक कर्मचारी को उपचार से वंचित रखा गया: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    यह देखते हुए कि यह आश्चर्यजनक है कि कैसे 20 साल से अधिक समय तक महिला कर्मचारी को उचित कानूनी उपचार का लाभ उठाने से वंचित रखा गया, पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने लेबर कोर्ट को 2003 में पारित मौखिक समाप्ति आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने तीन अलग-अलग मंचों का दरवाजा खटखटाया लेकिन हर बार उसे उपचारहीन छोड़ दिया गया।

    जस्टिस संजय वशिष्ठ ने कहा,

    "यह न्यायालय देश के समाज के गरीब वर्ग के लिए विधानमंडलों द्वारा बनाए गए लाभकारी कानूनों की अनदेखी करके अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता। भारत के संविधान की मूल रीढ़ यह है कि किसी को भी उपचार रहित नहीं छोड़ा जा सकता।”

    न्यायालय ने कहा,

    "वास्तव में वर्ष 2003 से ही तीनों फोरम ने याचिकाकर्ता/कामगार महिला को किसी की दया पर नहीं छोड़ा। एक तरह से उपचार रहित भी छोड़ दिया।"

    इसमें कहा गया,

    "CAT, the CGIT-LC (केंद्र सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय) या लेबर कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (Industrial Disputes Act, 1947) के सिद्धांतों को नहीं छूता है या उसका संदर्भ नहीं देता है। यदि याचिकाकर्ता/कामगार महिला द्वारा उठाए गए विवाद पर इन मंचों द्वारा निर्णय नहीं लिया जाना था तो कम से कम एक गरीब कामगार महिला को औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत अपने उपाय का लाभ उठाने के लिए मार्गदर्शन या सुझाव दिया जा सकता था।”

    ये टिप्पणियां अनीता नामक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसमें लेबर कोर्ट अंबाला द्वारा 2015 में पारित अवार्ड को चुनौती दी गई थी जिसके तहत औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 10(1)(सी) के तहत न्यायनिर्णयन के लिए संदर्भित संदर्भ के अनुसार सेवा में बहाली के लिए उसका दावा पुनर्विचार के सिद्धांत द्वारा वर्जित होने के आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था।

    अनीता को नवंबर 1998 के महीने में केंद्रीय भंडार विभाग अंबाला कैंट के तहत गोल्डन लाइन कैंटीन डिफेंस सिनेमा, अंबाला कैंट में क्लर्क-कम-कंप्यूटर ऑपरेटर-कम-सेल्स गर्ल के रूप में नियुक्त किया गया। उसकी सेवाओं को नियमित किए बिना 21.08.2003 को मौखिक आदेश द्वारा महिला को नौकरी से निकाल दिया गया।

    यह तर्क दिया गया कि SOP के अनुसार महिला कर्मचारी को उसकी सेवा समाप्ति से पहले एक महीने का नोटिस और एक अवसर दिया जाना आवश्यक था। हालांकि सेवा समाप्ति के समय न तो उसे कोई नोटिस दिया गया और न ही उसके बदले में वेतन या छंटनी का मुआवजा दिया गया।

    लेबर कोर्ट ने कहा कि एक बार जब महिला कर्मचारी कैट के समक्ष अपना मामला हार गई तो उसके द्वारा लेबर कोर्ट के समक्ष फिर से वही मुद्दा नहीं उठाया जा सकता था।

    प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने कहा,

    “दुर्भाग्य से याचिकाकर्ता/महिला कर्मचारी अपनी सेवा समाप्ति के समय से ही अपने अधिकारों के लिए लड़ रही है अर्थात 21.08.2003। किसी न किसी बहाने से संबंधित व्यक्ति के गलत मार्गदर्शन में उसे न्यायालय से कानूनी अधिकार प्राप्त करने से वंचित रखा गया है।"

    न्यायालय ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 को लागू करने का उद्देश्य श्रमिक वर्ग के लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है, जिससे नियोक्ता, संस्थान या प्रतिष्ठान की मनमानी या मनमाने आचरण से रोजगार की अवधि का शोषण न हो सके।

    जस्टिस वशिष्ठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले 20 वर्षों से अधिक समय में ऐसा कोई निर्णय नहीं हुआ। हालांकि याचिकाकर्ता/कार्यकर्ता ने समय-समय पर तीन अलग-अलग मंचों से संपर्क किया है।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "इस न्यायालय को यह देखने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि उसके दावे को कानून के सही प्रावधानों के तहत संबोधित या उचित रूप से पालन नहीं किया जा सका।"

    न्यायालय ने उल्लेख किया कि जब याचिकाकर्ता ने 2004 में पहली बार कैट से संपर्क किया तो उसने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि उसकी नियुक्ति केवल मानवीय आधार पर की गई।

    इसमें कहा गया,

    "आश्चर्यजनक रूप से कैट ने इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की है कि प्रबंधन की कार्रवाई उचित है या अनुचित कम से कम इस पहलू की जांच करके कि क्या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों यानी सुनवाई का अवसर प्रदान करना आदि का अनुपालन किया गया है या नहीं।"

    केंद्रीय सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय के समक्ष मुकदमे के दूसरे दौर में इस आधार पर याचिका खारिज कर दी गई कि महिला कर्मचारी यूनिट रन कैंटीन की कर्मचारी है, सरकारी कर्मचारी नहीं है।

    तीसरे प्रयास में श्रम न्यायालय द्वारा याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि इस पर कैट द्वारा पहले ही निर्णय लिया जा चुका है और "श्रम न्यायालय ने याचिकाकर्ता/महिला द्वारा उठाए गए औद्योगिक विवाद पर उसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिए बिना संदर्भ का उत्तर देने से इनकार कर दिया।"

    कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "यह न्यायालय यह देखकर आश्चर्यचकित है कि अभिलेख पर किसी भी न्यायिक मंच द्वारा इस आशय का कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया कि एक बार जब कामगार महिला को केंद्र सरकार की कर्मचारी नहीं माना जाता है तो माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर.आर. पिल्लई (सुप्रा) के मामले में निर्धारित कानून के अनुसार, कैट द्वारा पारित दिनांक 20.01.2004 के आदेश को वैध कैसे कहा जा सकता है तथा कानून की दृष्टि में वह टिकाऊ कैसे हो सकता है। बल्कि, कैट के समक्ष कार्यवाही को सभी आशय और उद्देश्यों के लिए 'कोरम नॉन ज्यूडिस' के रूप में माना जाना चाहिए।"

    जस्टिस वशिष्ठ ने कहा,

    "जहां तक ​​याचिकाकर्ता/कामगार महिला का मामला है, सेवाओं की समाप्ति की कार्रवाई इसकी योग्यता के आधार पर जांच करने योग्य है। इसकी जांच के उद्देश्य से पूरी प्रक्रिया श्रम न्यायालय द्वारा की जानी है, जबकि इसने प्रश्नगत औद्योगिक विवाद पर विचार करने से यह कहते हुए मना किया कि यह रेस ज्यूडिकेटा के सिद्धांत द्वारा वर्जित है।"

    उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली तथा लेबर कोर्ट द्वारा पारित आदेश खारिज कर दिया।

    याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने श्रम न्यायालय को निर्देश दिया कि वह पक्षकारों की उपस्थिति की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर संदर्भ पर निर्णय करे।

    उन्होंने कहा,

    "याचिकाकर्ता/कार्यकर्ता पिछले दो दशकों से समाप्ति आदेश की स्थिरता के संबंध में कानून के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है, इसलिए संदर्भ के अंतिम निर्णय में किसी भी प्रकार की और देरी, कार्यकर्ता की पीड़ा को और बढ़ा देगी।"

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