परिस्थितियों की शृंखला निश्चित रूप से अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करनी चाहिए: पटना हाइकोर्ट ने बलात्कार और हत्या के आरोपी की सजा खारिज की
Amir Ahmad
29 Jan 2024 1:32 PM IST
पटना हाइकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत दोषसिद्धि का फैसला और सजा का आदेश पलट दिया। कोर्ट ने आरोपी के अपराध की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करने वाली परिस्थितियों की स्पष्ट श्रृंखला स्थापित करने के महत्व पर जोर दिया।
जस्टिस आलोक कुमार पांडे और जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने रेखांकित किया,
''हम वर्तमान मामले की सामग्री का परिस्थिति के आधार साक्ष्य पर ट्रायल कर सकते हैं, क्योंकि वर्तमान मामले का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, बल्कि प्रत्येक परिस्थिति को उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिए और सिद्ध परिस्थिति को पूरी श्रृंखला बनानी चाहिए। परिस्थितियों की श्रृंखला को आरोपी के दोषी की ओर इंगित करना चाहिए, यानी यह केवल अपराध के कारण की उचित संभावना होनी चाहिए।"
अपीलकर्ता को शिकायतकर्ता (पीडब्लू-5) की बेटी के साथ बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराया गया और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (डी), 302 और POCSO Act की धारा 4, 6 के तहत दोषी ठहराया गया।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार शिकायतकर्ता की 12 वर्षीय बेटी उस दिन शौच करने बाहर गयी थी, लेकिन बाद में वह मृत पाई गई। उसकी गर्दन दबी हुई थी और उसके मुंह पर चोट लगी थी।
वहीं मामले की शुरुआत में अदालत ने आईपीसी की धारा 376 (डी), 302 और POCSO Act की धारा 4/6 के तहत अपराधों के संबंध में ट्रायल कोर्ट के समक्ष गवाहों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की जांच, विश्लेषण और छांटना आवश्यक समझा।
मामले के साक्ष्यों की गहन जांच करने पर न्यायालय ने पाया कि मामले में प्रत्यक्ष साक्ष्य का अभाव है, क्योंकि कोई प्रत्यक्षदर्शी विवरण स्पष्ट नहीं uw।
न्यायालय ने लिखित बयान के प्रारंभिक संस्करण के वर्णनकर्ता पीडब्लू-5 पर ध्यान दिया, जिसने अभियोजन पक्ष की कहानी को घटनाओं के क्रम में उजागर किया। पहले क्रम में पता चला कि पीड़िता निजी जरूरतों के लिए घर से अकेली निकली थी और उसके साथ किसी को भी नहीं देखा गया। इसके साथ ही, शिकायतकर्ता अनिरुद्ध साह (पीडब्लू-2) ने अपीलकर्ता के संदिग्ध रूप से भागने की सूचना दी। इस सूचना पर कार्रवाई करते हुए तलाशी ली गई, जिससे पीड़िता का शव घास के ढेर में मिला।
इसके अलावा न्यायालय ने कहा,
''प्रारंभिक संस्करण के उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि कथित घटना का कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। लेकिन जब हम पीडब्लू-1 और पीडब्लू-5 के साक्ष्य की जांच करते हैं तो हम पाते हैं कि पीडब्लू 1 और 5 ने मुकदमे से पहले रखे गए अभियोजन पक्ष के संस्करण 21 की योजना में अपने बयानों को फिट करने के लिए अपने मामले में सुधार किया। उन्होंने पहले ही कहा कि दोनों कथित घटना के प्रत्यक्षदर्शी नहीं हैं और उन्होंने किसी को भी पीड़ित की ओर जाते नहीं देखा।”
अपीलकर्ता के खिलाफ उंगली उठाने के सवाल पर आगे बढ़ते हुए अदालत ने कहा कि यह केवल अपीलकर्ता के खिलाफ प्रारंभिक मूल्यांकन है और उनके साक्ष्य कमजोरियों और खामियों से भरे हुए हैं, जो अभियोजन की कहानी पर प्रहार करते हैं, क्योंकि वे तथ्यात्मक गवाह है, जिसे शत्रुतापूर्ण घोषित नहीं किया गया।
पीडब्लू 2, 3, और 4 जैसे शत्रुतापूर्ण गवाहों के संबंध में अदालत ने कहा कि उन्हें शत्रुतापूर्ण घोषित किया गया, क्योंकि उन्होंने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और अपनी गवाही में भ्रामक जानकारी प्रदान की।
आगे बढ़ते हुए अदालत ने कहा,
''पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट गला घोंटने के परिणामस्वरूप दम घुटने से मरने से पहले पीड़िता पर यौन उत्पीड़न की घटना का संकेत देती है। हालांकि यह अभियोजन की कहानी के शुरुआती संस्करण के अनुरूप है। एफएसएल रिपोर्ट पीड़िता के साथ अपीलकर्ता की कोई कनेक्टिविटी नहीं दिखाती।”
अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी (आईओ) ने पीड़िता की उम्र के संबंध में दस्तावेज प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया, जो कि POCSO Act के वैधानिक प्रावधानों के तहत आवश्यकता है।
कोर्ट ने आईओ की आलोचना की पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए केवल आधार कार्ड पर भरोसा करने के लिए किशोर न्याय देखभाल और बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2015 की धारा 94 के अनुसार पीड़िता की उम्र के संबंध में जांच की कमी को उजागर किया गया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष स्थापित करने में विफल रहा। वैधानिक प्रावधानों के तहत पीड़िता की उम्र कानूनी आधार के बिना शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों के स्व-घोषित बयानों पर भरोसा करते हुए पीड़िता की उम्र 12 वर्ष होने का दावा किया गया।
न्यायालय ने प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य दोनों के मूल्यांकन के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश पर जोर दिया। इसमें कहा गया कि किसी तथ्य को तब सिद्ध माना जाता है, जब अदालत प्रस्तुत मामलों पर विचार करने के बाद यह मानती है कि यह मौजूद है। इसके अतिरिक्त अनुभाग यह बताता है कि विवेकपूर्ण व्यक्ति किसी दिए गए मामले में कैसे अनुमान लगाएगा।
न्यायालय ने चाकू या बंदूक जैसे हथियार का उदाहरण देते हुए इस बात पर जोर दिया कि हालांकि इसे साक्ष्य नहीं माना जाता है, फिर भी अदालत को इसे ध्यान में रखना चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
''न्यायाधीश को विवेकपूर्ण व्यक्ति की भूमिका निभानी चाहिए। आम आदमी के पास किसी मामले में घटना के कारण के बारे में कई धारणाएं होंगी, जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित हैं। ऐसी कई परिस्थितियां हैं, जो अदालत के सामने रखी गई हैं, लेकिन यह केवल अनुमान पर आधारित है।"
तब अदालत प्रत्येक अनुमान का मूल्यांकन करती है, जब अदालत ने अनुमानों को खारिज कर दिया। केवल ऐसे अनुमानों पर भरोसा किया जाना चाहिए, जिनकी संभावना सबसे अधिक है। उन्हीं पर भरोसा किया जाना चाहिए और उन्हें सिद्ध माना जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
''परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संबंध में बुनियादी सिद्धांत इसी तरह विकसित होता है।''
इस प्रकार न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि न तो प्रत्यक्ष और न ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त रूप से अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करते हैं। इसमें दावा किया गया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे मामले को साबित करने में विफल रहा है।
कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट सबूतों को सही परिप्रेक्ष्य में साबित करने में विफल रहा। तदनुसार, अदालत ने दोषसिद्धि के आक्षेपित फैसले और सजा का आदेश रद्द कर दिया और अपील की अनुमति देते हुए अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया।
अपीयरेंस
अपीलकर्ता के लिए वकील- श्बिमलेश कुमार पांडे और कृष्ण कांत पांडे।
प्रतिवादी के लिए वकील- बिपिन कुमार।
केस नंबर- आपराधिक अपील (डीबी) संख्या 229 2023
केस टाइटल- मुन्ना अंसारी बनाम बिहार राज्य बिहार