CPC की धारा 100 के तहत दूसरी अपील में तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष को सिर्फ़ इसलिए पलटा नहीं जा सकता, क्योंकि वैकल्पिक दृष्टिकोण संभव है: पटना हाईकोर्ट ने दोहराया

Amir Ahmad

23 Oct 2024 3:02 PM IST

  • CPC की धारा 100 के तहत दूसरी अपील में तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष को सिर्फ़ इसलिए पलटा नहीं जा सकता, क्योंकि वैकल्पिक दृष्टिकोण संभव है: पटना हाईकोर्ट ने दोहराया

    पटना हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत अपील खारिज करते हुए एडिशनल जिला जज के फैसले को चुनौती दी, जिसने टाइटल सूट में मुंसिफ का फैसला बरकरार रखा, यह माना कि साक्ष्य के आधार पर तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष को दूसरी अपील में सिर्फ़ इसलिए पलटा नहीं जा सकता, क्योंकि उसी साक्ष्य से वैकल्पिक दृष्टिकोण निकाला जा सकता है।

    जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा ने कहा,

    “नीचे की अदालतों द्वारा ऊपर बताए गए तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष हैं। प्रतिवादी/अपीलकर्ता की ओर से नीचे की अदालतों के निष्कर्षों में कोई विकृति स्थापित नहीं की जा सकी। साक्ष्य के आधार पर तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत अपील में इस आधार पर नहीं बदला जा सकता कि साक्ष्य के समान सेट के आधार पर अन्य दृष्टिकोण भी संभव है। अपीलकर्ता का यह मामला नहीं कि निचली अदालतों के निष्कर्ष रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य के विपरीत हैं या रिकॉर्ड पर कोई साक्ष्य नहीं है।”

    वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार मुकदमे की संपत्ति मूल रूप से गंगा देवी द्वारा रजिस्टर्ड बिक्री विलेख के माध्यम से खरीदी गई, जिन्होंने बाद में इसे अन्य पंजीकृत सेल डीड के माध्यम से वादी को बेच दिया। वादी ने तब स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की वसूली की मांग करते हुए मुकदमा शुरू किया, जिसका उद्देश्य प्रतिवादी को संपत्ति से बेदखल करना था।

    ट्रायल कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत अवार्ड जाली और मनगढ़ंत था। इस प्रकार प्रतिवादी मुकदमे की संपत्ति पर किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकता था। नतीजतन ट्रायल कोर्ट ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया। प्रथम अपीलीय अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले और डिक्री की पुष्टि करते हुए प्रतिवादी की शीर्षक अपील खारिज की। इन फैसलों से व्यथित होकर प्रतिवादी ने अब यह दूसरी अपील दायर की।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट दोनों ही यह पहचानने में विफल रहे कि वादी/प्रतिवादी का मुकदमा, जो बेदखली के मुकदमे की आड़ में स्वामित्व की घोषणा और कब्जे की वसूली के लिए दायर किया गया, बिहार भवन (लीज, किराया और बेदखली) नियंत्रण अधिनियम, 1982 के तहत बनाए रखने योग्य नहीं था।

    अधिनियम के अनुसार बेदखली का मुकदमा केवल धारा 11 में उल्लिखित विशिष्ट आधारों पर ही मकान मालिक द्वारा शुरू किया जा सकता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि किसी भी अदालत ने मकान मालिक-किराएदार संबंध को निर्धारित करने के मुख्य मुद्दे को संबोधित नहीं किया, जिसे बेदखली का आदेश देने के लिए केंद्रीय मुद्दे के रूप में तैयार किया जाना चाहिए था।

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में बताया कि निचली दोनों अदालतों यानी ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत ने माना कि वादी मुकदमे के परिसर का पूर्ण स्वामी है। उसे स्वामित्व प्राप्त है और प्रतिवादी का उस पर कब्जा केवल अनुग्रह और सहानुभूति के कारण अनुमेय है। उसका कोई अधिकार, स्वामित्व और हित नहीं है।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "निचली अदालत ने माना कि वादी ने प्रतिवादी के खिलाफ तत्काल मुकदमा इसलिए दायर किया, क्योंकि वह वाद परिसर में रह रही है। प्रतिवादी के अलावा किसी अन्य तीसरे व्यक्ति को वाद परिसर से बेदखल करने की आवश्यकता नहीं है। वादी की विक्रेता गंगा देवी आवश्यक पक्ष नहीं है और गंगा देवी के गैर-संयुक्त होने के लिए वाद बुरा नहीं है, जिसकी अपील में पुष्टि की गई। यह भी माना जाता है कि कथित अवार्ड जाली और मनगढ़ंत दस्तावेज है और कानून में इसका कोई बल नहीं है। अपीलीय अदालत ने यह भी माना कि पंचनामा पंचों के हस्ताक्षर और तारीख के संबंध में संदिग्ध दस्तावेज है।"

    न्यायालय ने जोर देकर कहा कि दूसरी अपील पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसमें कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल न हो, एक शब्द जिसे कई न्यायिक घोषणाओं में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया।

    न्यायालय ने कहा कि दोनों निचली अदालतों ने दलीलों और साक्ष्यों की जांच करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि वादी ने वाद संपत्ति पर स्वामित्व स्थापित कर लिया, जबकि प्रतिवादी का कब्जा केवल अनुमेय था, जिसमें कोई कानूनी अधिकार, शीर्षक या हित नहीं था। न्यायालय ने माना कि यह निष्कर्ष तथ्यात्मक था। दूसरी अपील में इसका पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता नहीं थी।

    तदनुसार हाईकोर्ट ने अपील खारिज की, जबकि यह निर्णय दिया कि इस दूसरी अपील में विचार करने के लिए कोई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न नहीं उठता।

    केस टाइटल: मोस्ट. पंचोला बनाम श्री कृष्ण कुमार

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