निचले स्तर के कर्मचारियों से अतिरिक्त भुगतान की वसूली अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: पटना हाईकोर्ट ने बाल विकास परियोजना अधिकारी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया
Amir Ahmad
14 Nov 2024 12:14 PM IST
पटना हाईकोर्ट ने दोहराया कि निचले सेवा स्तर जैसे कि तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों से अतिरिक्त भुगतान की वसूली करना अन्यायपूर्ण है। इससे नियोक्ता को मिलने वाले किसी भी पारस्परिक लाभ से अधिक उन पर अनुचित बोझ पड़ेगा।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस पूर्णेंदु सिंह ने इस बात पर जोर दिया,
"सेवा के निचले स्तर के कर्मचारी अपनी पूरी कमाई अपने परिवार के भरण-पोषण और कल्याण में खर्च करते हैं। यदि उनसे इस तरह का अतिरिक्त भुगतान वसूलने की अनुमति दी जाती है तो इससे नियोक्ता को मिलने वाले पारस्परिक लाभ की तुलना में उन्हें अधिक कठिनाई होगी।"
जस्टिस सिंह ने कहा,
"हम इस निष्कर्ष पर संतुष्ट हैं कि सेवा के निचले पायदान (यानी वर्ग-III और वर्ग-IV- जिन्हें कभी-कभी समूह 'सी' और समूह 'डी' के रूप में भी जाना जाता है) से संबंधित कर्मचारियों से ऐसी वसूली किसी भी तरह की वसूली के अधीन नहीं होनी चाहिए, भले ही वे अपने देय वेतन से अधिक वेतन पाने के लाभार्थी हों। ऐसी वसूली अन्यायपूर्ण और मनमानी होगी। इसलिए यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित अधिदेश का भी उल्लंघन करेगी।"
यह फैसला सीता कुमारी नामक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की याचिका के जवाब में जारी किया गया जिसने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी मेडिकल अधिकारी द्वारा जारी वसूली आदेश को चुनौती दी थी। आदेश में कुमारी द्वारा हिंदी टिप्पण और प्रारूपण परीक्षा उत्तीर्ण करने में विफलता के आधार पर 1984 से 2009 तक के वेतन में वृद्धि की वसूली की मांग की गई।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता जो सहायक नर्स मिडवाइफ (ANM) थी उसको आज तक हिंदी टिप्पण-प्रारूपण परीक्षा उत्तीर्ण करने से स्पष्ट रूप से छूट दी गई, क्योंकि वह हिंदी विषय के साथ मैट्रिक पास थी। साथ ही वह अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान टिप्पण और प्रारूपण के काम से संबंधित नहीं थी। हालांकि भविष्य में पदोन्नति के लिए पात्रता सुनिश्चित करने के लिए उसने पहले ही परीक्षा पूरी कर ली थी।
प्रतिवादी ने जवाब में तर्क दिया कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को छोड़कर आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल सभी सरकारी कर्मचारियों को कुछ हद तक पत्राचार और रिपोर्ट तैयार करने का काम संभालना चाहिए, जिसके लिए उन्हें शामिल होने के एक साल के भीतर हिंदी टिप्पण और प्रारूपण परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है। ऐसा न करने पर उनकी अगली वार्षिक वेतन वृद्धि रोक दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण और रिट याचिका में दी गई दलीलों के आधार पर न्यायालय ने माना कि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के महत्वपूर्ण अधिकार के साथ खिलवाड़ किया, जबकि वह हिंदी टिप्पण एवं प्रारूपण परीक्षा उत्तीर्ण करने में विफल रही है लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह कार्रवाई विधिसम्मत थी या नहीं।
साथ ही न्यायालय ने यह भी पाया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) द्वारा जानबूझकर वसूली की गई कार्रवाई विधिसम्मत नहीं थी। वसूली का वही क्रम उसे सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना शुरू किया गया, जिससे वसूली का ऐसा आदेश पारित किया जा सके।
परिस्थितियों को अनुचित पाते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता को परेशान करने और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का पालन न करने से उत्पन्न मामलों के बोझ से न्यायालय को बोझिल करने के लिए CDPO, दनियावा (फतुहा) पर व्यक्तिगत रूप से भुगतान किए जाने वाले 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
न्यायालय ने महालेखाकार (लेखा परीक्षा) द्वारा दिए गए भ्रामक बयान की भी आलोचना की, जिसमें कहा गया कि वेतन और भत्तों की वसूली लेखा परीक्षा द्वारा सुझाई नहीं गई।
न्यायालय ने कहा,
“प्रतिवादी नंबर 5, मेडिकल अधिकारी-सह-प्रभारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बख्तियारपुर ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के प्रति अपनी पूर्ण अवहेलना दिखाई। इस न्यायालय को पैराग्राफ संख्या 11 में सूचित किया कि प्रधान महालेखाकार (लेखा परीक्षा) द्वारा उठाई गई आपत्ति के अनुपालन में कटौती की गई।”
न्यायालय ने व्यक्त किया कि मेडिकल अधिकारी-प्रभारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, CDPO और महालेखाकार लेखा परीक्षा द्वारा जानबूझकर भ्रामक बयानों के कारण अवमानना कार्यवाही की आवश्यकता है। हालांकि लंबी देरी (रिट याचिका 2011 से लंबित है) और वसूली पर स्थापित कानूनी स्थिति के कारण न्यायालय ने इसके बजाय आरोपित वसूली आदेश को रद्द कर दिया जिसमें 3,08,980 रुपये की वसूली और पूरी वसूली तक 7,920 रुपये की मासिक कटौती की मांग की गई।
रिट याचिका का तदनुसार निपटारा किया गया।
केस टाइटल: सीता कुमारी बनाम बिहार राज्य और अन्य।