नियुक्ति कानून के अनुसार नहीं है तो ड्यूटी पर बिताया गया समय महत्वहीन : पटना हाईकोर्ट
Amir Ahmad
26 Nov 2024 1:16 PM IST
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पी.बी. बंजंथरी और जस्टिस बी.पी.डी. सिंह की खंडपीठ ने माना कि यदि किसी उम्मीदवार की नियुक्ति कानून के अनुसार नहीं है तो यह महत्वहीन होगा कि उसने पद के संबंध में कितने वर्षों तक कर्तव्यों का निर्वहन किया। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा जिसने अपीलकर्ता (प्रधान लिपिक) को राहत देने से इनकार किया, जिसे नियुक्ति की तिथि पर मेरिट सूची में नहीं होने के बावजूद पद पर नियुक्त किया गया।
पूरा मामला
अपीलकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 5 के साथ प्रधान लिपिक के पद के लिए आवेदन किया। मेरिट सूची को शॉर्टलिस्ट किया जाना था और उम्मीदवारों को 1:10 के अनुपात में आमंत्रित किया जाना, क्योंकि विज्ञापित पद केवल एक था। साक्षात्कार के लिए कुल 10 उम्मीदवारों को आमंत्रित किया जाना था।
अपीलकर्ता मेरिट सूची में 11वें स्थान पर होने के बावजूद, उसे चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी गई। अंततः उन्हें नियुक्त किया गया। उन्होंने हेड क्लर्क के रूप में 5 वर्ष तक सेवा की।
वर्ष 2014 में प्रतिवादी नंबर 5 ने न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ से संपर्क किया। अपीलकर्ता की नियुक्ति को चुनौती दी जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने न्यायालय में याचिका दायर की।
पक्षों की दलीलें:
अपीलकर्ता के वकील ने इस बात पर जोर दिया कि दिनांक 19.05.2012 के विज्ञापन के खंड-2 के अनुसार, अपीलकर्ता इस पद का हकदार था, क्योंकि वह पहले से ही प्रतिवादियों के साथ काम कर रहा था। यह भी दलील दी गई कि चूंकि अपीलकर्ता ने पांच वर्षों तक हेड क्लर्क के रूप में सेवा की थी, इसलिए उसे सेवा से बर्खास्त करना कठोर होगा।
दूसरी ओर प्रतिवादी के वकील ने कहा कि एकल न्यायाधीश का आदेश उचित था, क्योंकि प्रतिवादी नंबर 5 अधिक योग्य था और इस पद के लिए नियुक्त होने का हकदार था।
न्यायालय के निष्कर्ष:
न्यायालय ने इस प्रश्न पर गहनता से विचार किया कि क्या अपीलकर्ता हेड क्लर्क के पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने के योग्य है या नहीं। इसके अलावा क्या उस पद पर उसके पास कोई कानूनी या वैधानिक अधिकार है।
दिनांक 19.05.2012 के विज्ञापन का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने पाया कि केवल 10 उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया जाना था। केवल एक पद था, जिसके लिए इंटरव्यू आयोजित किए जाने थे। विभाग में कुछ समय से काम कर रहे उम्मीदवार को वरीयता दिए जाने के संबंध में न्यायालय ने माना कि ऐसी वरीयता 1-10 रैंक के बीच आने वाले उम्मीदवारों के बीच विचार की जानी थी। हालांकि अपीलकर्ता 11वें क्रम पर था।
एम.एस. पाटिल (डॉ.) बनाम गुलबर्गा यूनिवर्सिटी और अन्य (2010) 10 सुप्रीम कोर्ट केस 63 में दिए गए निर्णय पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने माना कि भले ही अपीलकर्ता ने हेड क्लर्क के कर्तव्यों का निर्वहन किया हो, लेकिन समानता का दावा करना उचित नहीं था। यह माना गया कि उनका चयन और नियुक्ति कानून के विपरीत थी क्योंकि 10 चयनित उम्मीदवारों की सूची में जगह न होने के बावजूद उनका इंटरव्यू लिया गया। इसलिए उनका चयन कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा। उपर्युक्त निर्णय में, उम्मीदवार ने साढ़े 17 वर्षों तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चयन और नियुक्ति को कानून के विपरीत माना था और कर्तव्यों के निर्वहन की इतनी लंबी अवधि के बाद भी इसे रद्द किया।
इन टिप्पणियों को करते हुए न्यायालय ने माना कि एकल न्यायाधीश का निर्णय उचित था। अपीलकर्ता के विस्थापन में न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता था। तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: अमित श्रीवास्तव बनाम बिहार राज्य और अन्य