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बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, MPID अधिनियम के नियमों के तहत NSEL एक वित्तीय प्रतिष्ठान नहीं, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network
24 Aug 2019 5:46 AM GMT
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, MPID अधिनियम के नियमों के तहत NSEL एक वित्तीय प्रतिष्ठान नहीं, पढ़िए फैसला
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हजारों निवेशकों और आर्थिक अपराध शाखा, मुंबई को झटका देते हुए, एक महत्वपूर्ण निर्णय में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह माना है कि नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL), महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ डिपॉजिटर्स इन फाइनेंसियल इस्टैब्लिशमेंट (MPID) अधिनियम, 1999 के तहत एक वित्तीय प्रतिष्ठान (financial establishment) नहीं है।

खंडपीठ ने कहा कि महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ डिपॉजिटर्स इन फाइनेंसियल इस्टैब्लिशमेंट अधिनियम, 1999 के तहत NSEL के प्रमोटर, '63 मून्स टेक्नोलॉजीज' की संपत्ति की कुर्की वैध नहीं थी।

इसका मतलब है कि NSEL से जुड़ी संपत्तियों की कुर्की, जिसका मूल्य 8585 करोड़ रुपये है, अब रद्द होती हैं। इन संपत्तियों को जांच एजेंसी ने 13000 निवेशकों का बकाया वसूलने के लिए संलग्न किया था।

न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने गुरुवार को मई में सुरक्षित इस 138 पन्नों के फैसले को सुनाया। कोर्ट इस मामले में '63 मून्स टेक्नोलॉजीज लिमिटेड' द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें MPID अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के बाद NSEL से जुड़ी संपत्तियों की कुर्की की कार्रवाई को चुनौती दी गई थी।

दरअसल NSEL, '63 मून्स टेक्नोलॉजीज' की सहायक कंपनी है, जिसे पूर्व में FTIL के नाम से जाना जाता था। NSEL पंजीकृत ट्रेडिंग सदस्यों (और उनके ग्राहक गैर-ट्रेडिंग सदस्यों) द्वारा वस्तुओं की खरीद और बिक्री के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म था और विक्रेता द्वारा खरीदार को वस्तु के एक्सचेंज और बिक्री/वितरण के माध्यम से खरीदार से विक्रेता को भुगतान करके ऐसे अनुबंधों का निपटान भी इस मंच द्वारा किया जाता था। इसका उद्देश्य एक्सचेंज के नियमों, विनियमों और उपनियमों के अनुसार अपने इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से खरीदार और विक्रेता के बीच लेन-देन को सुविधाजनक बनाना था।

प्रस्तुतियां

वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा ने राज्य के लिए पैरवी की। इस प्रकार से उन्होंने यह प्रस्तुत किया कि NSEL 'वित्तीय प्रतिष्ठान' शब्द के अंतर्गत आएगा, जैसा कि MPID अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है और आरोपपत्र पर भरोसा करते हुए, दादा ने यह प्रस्तुत किया कि NSEL और उसके उधारकर्ताओं के बीच के वास्तविक लेनदेन के बाद माल की वास्तविक डिलीवरी नहीं की गयी है और कई मामलों में, दोनों पक्षों द्वारा अपनी सहूलियत एवं स्वयं को समायोजित करने के लिए की गई एकतरफा फर्जी प्रविष्टियों के कारण NSEL और उधारकर्ताओं के खाते एक-दूसरे के साथ मेल नहीं खाते हैं।

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि जांच में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि वस्तुओं की भौतिक डिलीवरी की जाँच नहीं की गई है और गोदामों में पड़े स्टॉक पर कोई नियंत्रण नहीं था और वास्तव में, NSEL,उसके मालिकों, निदेशकों, प्रबंधन, विक्रेताओं, उधारकर्ताओं और अन्य के बीच सांठगांठ के कारण यह संपूर्ण वित्तीय गड़बड़ी उत्पन्न हुई है और यह आपराधिक साजिश और आपराधिक न्यास भंग का एक स्पष्ट मामला है जहां निर्दोष लोगों को उनके निवेश पर वित्तीय बाजीगरी और खातों में धोखाधड़ी की प्रविष्टियों के चलते ठगा दिया गया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता विक्रम ननकानी याचिकाकर्ता '63 मून्स' की ओर से पेश हुए और उन्होंने यह प्रस्तुत किया कि NSEL के प्रमोटर के रूप में याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत करना ही गलत है, क्योंकि अधिकारियों द्वारा एक गलत अनुमान के आधार पर कार्रवाई को आगे बढाया गया है कि NSEL एक वित्तीय प्रतिष्ठान है और इसने निवेशकों से डिपॉजिट्स स्वीकार किया है।

ननकानी ने NSEL द्वारा किए गए परिचालन की संपूर्ण कार्यप्रणाली और एनएसईएल द्वारा प्रदान किए गए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर व्यापार करते समय शामिल विभिन्न चरणों को समझाया। उन्होंने NSEL के मंच पर ट्रेडिंग प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नियमों के साथ-साथ उपनियमों की ओर भी न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया।

निर्णय

उक्त उपनियमों को देखकर, कोर्ट ने नोट किया-

"NSEL के माध्यम से संचालित होने वाला व्यवसाय/लेन-देन, NSEL द्वारा अपने लिए प्राप्त किसी भी भुगतान राशि का खुलासा नहीं करता है, बल्कि यह राशि NSEL को केवल वस्तु व्यापार के निपटान की प्रक्रिया में प्राप्त हुई थी, वह भी केवल इसे बेचने वाले ट्रेडिंग मेंबर को उसी दिन प्रेषित करने के उद्देश्य से की गई।

इस राशि को MPID अधिनियम की धारा 2 (c) के अर्थ के अंतर्गत एक 'डिपॉजिट्स' के रूप में नहीं देखा जा सकता है, इसके अंतर्गत 'डिपॉजिट्स' को इस शर्त पर धन की प्राप्ति या वैल्युएबल कमोडिटी की स्वीकृति के रूप में माना जाता है, कि ऐसा धन या वैल्युएबल कमोडिटी, एक निश्चित अवधि या अन्यथा के बाद वित्तीय प्रतिष्ठान द्वारा कमोडिटी को लौटाया/चुकाया जाएगा "

कोर्ट ने आगे कहा-

"NSEL ने कमोडिटी ट्रेडिंग के रूप में इक्विटी में ट्रेडिंग की सुविधा और भुगतान और वितरण के माध्यम से ट्रेड के निपटान को प्रभावित करके, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और NSE के समान स्टॉक/इक्विटी ट्रेडिंग का प्रदर्शन किया। स्टॉक एक्सचेंज ने कुछ सरप्लस के साथ वापसी के वादे पर पैसे या वैल्युएबल कमोडिटी को स्वीकार नहीं किया।"

कथित रूप से डिफ़ॉल्ट राशि रु 5600 करोड़ की थी, जिसके सापेक्ष EOW ने Rs .8548 करोड़ की संपत्ति संलग्न की थी।

EOW के फोरेंसिक ऑडिट में 24 डिफॉल्टरों द्वारा अपने संबंधित व्यक्तियों और संस्थाओं को निधियों के अंतरण (diversion of funds) के जरिये पहुंचाए गए लाभ का खुलासा हुआ। ननकानी के अनुसार, मामले में उत्तरदाताओं ने उन सभी लाभार्थियों की संपत्ति को संलग्न नहीं किया है जो कि उनके पास पाए गए धन के बराबर हैं और बिना उन व्यक्तियों की संपत्ति को संलग्न किए, जिनके पास मौजूद कथित जमा राशि का पता लगाया गया है, उत्तरदाताओं द्वारा सीधे याचिकाकर्ता (एक प्रमोटर की क्षमता में) की संपत्ति को संलग्न कर लिया गया।

अंत में, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला-

"हमारे सामने रखे गए उपरोक्त तथ्यों की पृष्ठभूमि में, हम इस बात से संतुष्ट हैं कि NSEL ने कोई डिपॉजिट स्वीकार नहीं किया है और यदि उसने कोई डिपॉजिट स्वीकार नहीं किया है, तो यह 'वित्तीय प्रतिष्ठान' की परिभाषा में नहीं आएगा।

संबंधित वकीलों द्वारा जुटाई गई सामग्री की जांच करने पर, हमारा यह विचार है कि NSEL प्लेटफॉर्म पर कारोबार करने वाले ग्राहक, NSEL के साथ फिक्स्ड डिपॉजिट, इक्विटी या डिबेंचर के रूप में निवेश नहीं करते हैं, बल्कि वे NSEL के प्लेटफॉर्म पर कमोडिटीज का कारोबार करते हैं।"

NSEL ने हमेशा यह कहते हुए अपना पक्ष रखा कि यह एक 'वित्तीय प्रतिष्ठान' नहीं है और इसे जारी किए गए नोटिसों के जवाब में, इसने उन बकाएदारों की ओर इशारा किया जो निवेशकों के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं और NSEL की उक्त दलील की पुष्टि ऑडिट रिपोर्टों द्वारा होती है। NSEL ने डिफॉल्टरों के खिलाफ रिकवरी सूट भी दायर किया है।

चूंकि निवेशकों ने उन्हें हुए नुकसानों के बारे में चिंता उठाई, इसलिए बिना सोचे समझे उठाए गए कदम के रूप में, NSEL और इसके प्रमोटर के खिलाफ MPID अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्यवाही की गयी, वह भी इस मूल मुद्दे पर विचार-विमर्श किए बिना कि एक न्यायिक तथ्य के रूप में यह निर्धारित किया जाना है कि क्या यह इकाई एक 'वित्तीय प्रतिष्ठान' थी, जिससे वित्तीय प्रतिष्ठानों को संचालित करने के इरादे के तहत अधिकारियों को इसके खिलाफ कार्यवाही आगे बढाने की अनुमति होती। "

राज्य की ओर से उक्त निर्णय पर रोक की मांग की गई थी, लेकिन न्यायालय ने अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया।



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