मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने क्लर्क द्वारा लिखे गए गलत ऑर्डर शीट पर अंधाधुंध हस्ताक्षर करने वाले न्यायाधीश के खिलाफ जांच के आदेश दिए

Amir Ahmad

27 July 2024 6:12 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने क्लर्क द्वारा लिखे गए गलत ऑर्डर शीट पर अंधाधुंध हस्ताक्षर करने वाले न्यायाधीश के खिलाफ जांच के आदेश दिए

    यह पता लगाने के बाद कि ट्रायल कोर्ट ने लापरवाही से धोखाधड़ी के मामले को आरोप तय करने के बजाय बार-बार अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के लिए पोस्ट किया मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गलती करने वाले न्यायाधीश और संबंधित क्लर्क के खिलाफ जांच की सिफारिश की है।

    धारा 439 सीआरपीसी [483 BNSS] के तहत आवेदन पर निर्णय लेते समय हाईकोर्ट ने देखा कि ट्रायल कोर्ट ने एक से अधिक मौकों पर गलत तरीके से सबूत के लिए केस पोस्ट किया। करीब से निरीक्षण करने पर अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि गलत ऑर्डर शीट हाथ से लिखी गई थीं, जबकि अन्य ऑर्डर शीट टाइप की गईं।

    जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की एकल पीठ ने आवेदक/आरोपी द्वारा यह दलील दिए जाने के बाद कि मुकदमे में काफी देरी हुई तथा वह जमानत पाने का हकदार है, ट्रायल कोर्ट के अभिलेखों का अवलोकन किया।

    अदालत ने आवेदक द्वारा प्रस्तुत आदेश पत्रों की प्रतियों से यह अनुमान लगाया,

    “यह स्पष्ट है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा जो भी आदेश पत्र लिखे गए थे, वे विधिवत टाइप किए गए थे लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि दिनांक 24.02.2024, 09.03.2024 तथा 23.03.2024 के आदेश पत्र क्लर्क द्वारा लिखे गए, जिन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा बिना सोचे-समझे हस्ताक्षर कर दिए गए।"

    अदालत ने इस बात को अस्वीकार किया कि किस प्रकार भोपाल जिला एवं सेशन कोर्ट के सिविल जज जूनियर डिवीजन ने क्लर्क द्वारा हस्तलिखित गलत आदेश पत्रों पर स्पष्ट रूप से हस्ताक्षर किए। इसलिए अदालत ने भोपाल के प्रधान जिला एवं सेशन जज को यह पता लगाने के लिए जांच करने का निर्देश दिया कि किन परिस्थितियों में न्यायाधीश ने हस्तलिखित आदेशों पर हस्ताक्षर किए।

    अदालत ने कहा,

    “यदि यह पाया जाता है कि ट्रायल कोर्ट ने लापरवाही की है तो उन्हें प्रशासनिक पक्ष पर कार्रवाई के लिए माननीय चीफ जज के समक्ष उक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है और यदि प्रधान जिला एवं सेशन जज भोपाल भी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि संबंधित क्लर्क भी गलत ऑर्डर शीट लिखने के लिए जिम्मेदार है तो वे उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करेंगे।”

    -आरोप पत्र 05.12.2023 को दायर किया गया, आवेदक के वकील ने 02.01.2024 से आरोप तय करने से पहले बहस के लिए स्थगन की मांग की। 24.02.2024 से 05.04.2024 तक तीन अलग-अलग अवसरों पर अदालत ने बार-बार अभियोजन पक्ष के गवाहों की अनुपस्थिति को चिह्नित किया और साक्ष्य दर्ज करने के लिए मामले को स्थगित किया।

    एकल न्यायाधीश पीठ ने बताया,

    “05.04.2024 को ट्रायल कोर्ट को अपनी गलती का एहसास हुआ और एक बार फिर आरोप तय करने के सवाल पर सुनवाई के लिए मामला तय किया।”

    पृष्ठभूमि और अवलोकन

    आरोपों के अनुसार आवेदक किराए पर वाहन लेने और फिर उन्हें गिरवी रखने के ऑपरेशन के पीछे मास्टरमाइंड है। धोखाधड़ी का मामला भोपाल के निशातपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया। इन आरोपों पर विचार करते हुए साथ ही निचली अदालत के समक्ष आरोप तय करने के पहलू पर बहस करने के लिए वकील की अनिच्छा को देखते हुए अदालत ने धारा 439 सीआरपीसी के तहत चौथी जमानत याचिका अस्वीकार करना उचित समझा। अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से कोई देरी नहीं हुई।

    अदालत ने सह-आरोपी के पुलिस से फरार होने के तथ्य का हवाला देते हुए जमानत न देने के अपने फैसले को उचित ठहराया।

    अदालत ने आवेदक को सह-आरोपी को छोड़कर अलग मुकदमे के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी। जस्टिस अहलूवालिया ने यह भी स्पष्ट किया कि सह-आरोपी के आत्मसमर्पण करने के बाद आरोपी/आवेदक फिर से जमानत याचिका दायर कर सकते हैं।

    धारा 439 के आवेदन पर विचार करते समय न्यायालय ने यह भी पाया कि हालांकि गवाहों को समन जारी करने का निर्देश दिया गया, लेकिन आदेश पत्र के पक्ष में इस आशय का कोई समर्थन नहीं देखा जा सका कि समन कभी जारी किया गया।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    “14.06.2024 को यह उल्लेख किया गया कि गवाहों को जारी किए गए समन वापस नहीं मिले हैं, लेकिन 31.05.2024 के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि कोई समन जारी ही नहीं किया गया। इसलिए प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि 14.06.2024 को ट्रायल जज द्वारा की गई टिप्पणी सही नहीं थी।”

    अदालत ने इसके अतिरिक्त पूरे ट्रायल की कार्यवाही 2 महीने के भीतर समाप्त करने के लिए कहा।

    केस टाइटल- रणजीत सिंह जोहल बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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