आरोप किसे कहते हैं? जानिए इसके कानूनी अर्थ
Shadab Salim
6 Oct 2022 5:42 PM IST
आरोप शब्द एक सामान्य जीवन से संबंधित शब्द है। हम इसे कई दफा दोहराते है, यह आम बातचीत का हिस्सा होता है। कानूनी क्षेत्र में आमतौर पर यह समझा जाता है कि पुलिस के समक्ष होने वाली शिकायत आरोप होती है जबकि यह आरोप नहीं है। आरोप अदालत द्वारा लगाएं जाते हैं। यह किसी भी मुकदमे का एक स्तर होता है। पुलिस द्वारा अपना अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के बाद ही कोई मुकदमा आरोप हेतु नियत किया जाता है। इसके पश्चात अदालत आरोप तय करती है। इस आलेख में आपराधिक मामलों में आरोप पर चर्चा की जा रही है।
आरोप को 'दोषारोपण' भी कहा जाता है। विचारण में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तविक रूप से विचारण का प्रारम्भ ही आरोप से ही होता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 2 (ख) में आरोप की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-
"आरोप के अन्तर्गत, जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हो, आरोप का कोई भी शीर्ष है।"
दंड प्रक्रिया संहिता में आरोप की केवल इतनी ही परिभाषा दी गई है लेकिन यह आरोप की शाब्दिक परिभाषा नहीं है। आरोप को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है "आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय, स्थान, व्यक्ति एवं वस्तु का भी उल्लेख रहता है, जिसके बारे में अपराध किया गया है।
सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अभियुक्त द्वारा किये गये अपराध का विवरण ही आरोप है।
अरोप की विरचना इसलिये की जाती है ताकि अभियुक्त को यह पता चल जाये कि-
उस पर क्या आरोप है, और उसे किस प्रकार अपनी प्रतिरक्षा करनी है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 211 से 224 तक में आरोप के बारे में प्रावधान किया गया है।
आरोप की अन्तर्वस्तुयें
यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संहिता की धारा 211, 212 एवं 213 में उन बातों का उल्लेख किया गया है जिनका समावेश आरोप में किया जाना अपेक्षित है।
आरोप में निम्नांकित बातों का उल्लेख है-
(क) उस अपराध का नाम जिसका अभियुक्त पर आरोप है,
(ख) वह विधि जिसके अन्तर्गत ऐसा अपराध आता है, एवं अपराध का नाम
(ग) अपराध की संक्षिप्त परिभाषा, यदि विधि में उसे कोई नाम नहीं दिया गया है,
(प) अपराध से सम्बन्धित धारा, (धारा 211)
(ङ) अपराध कारित किये जाने का समय,
(च) अपराध कारित किये जाने का स्थान,
(छ) वह व्यक्ति या वस्तु जिसके विरुद्ध अपराध कारित किया गया है, (धारा 212) एवं
(ज) अपराध कारित किये जाने की रीति (धारा 213 )
इस प्रकार आरोप में उन सभी बातों का उल्लेख किया जाना अपेक्षित जिससे अभियुक्त को यह भली-भाँति ज्ञात हो जाये कि उस पर क्या आरोप अर्थात् दोषारोपण है।
आरोप के सम्बन्ध में कतिपय महत्वपूर्ण बातें आरोप के सम्बन्ध में निम्नांकित बातें ध्यान देने योग्य हैं-
(1) आरोप 'न्यायालय की भाषा' में लिखा जाना चाहिये।
(2) आरोप 'संक्षिप्त' में होना चाहिये। उसमें घटना का समय, स्थान, व्यक्ति एवं वस्तु आदि का संक्षिप्त में उल्लेख किया जाना चाहिये।
(3) आवश्यक होने पर अपराध कारित किये जाने को रीति का उल्लेख किया जाना चाहिये।
(4) यदि अभियुक्त पर विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होने का आरोप है तो उसमें 'सामान्य उद्देश्य' होने का उल्लेख किया जाना चाहिये।
(5) यदि आरोप मानहानि का है तो उसमें उन 'शब्दों' का उल्लेख किया जाना चाहिये जो हानिकारक है।
(6) यदि मामला संरक्षकता में से अवयस्क लड़की के अपहरण का है तो आरोप में लड़की की 'आयु' का विवरण दिया जाना चाहिये।
आरोप में परिवर्तन
न्यायालय द्वारा आरोप में कभी भी परिवर्तन या परिवर्धन किया जा सकेगा। इसका उल्लेख धारा 216 में है।
धारा 217 के अनुसार जब आरोप में परिवर्तन या परिवर्धन किया जाता है तब उन साक्षियों को परीक्षण हेतु पुनः बुलाया जा सकेगा जिनका परीक्षण हो चुका है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आरोप की विरचना नहीं किये जाने अथवा आरोप में कोई त्रुटि रह जाने मात्र से विचारण स्वतः दूषित नहीं हो जाता। यह सब मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
पृथक अपराध का पृथक आरोप सामान्य नियम यह है-
प्रत्येक सुभिन्न अपराध के लिए जिसका किसी व्यक्ति पर अभियोग है, पृथक् आरोप होगा और ऐसे प्रत्येक आरोप का विचारण अलग किया जायेगा। स्पष्ट है कि धारा 218 के अनुसार प्रत्येक सुभिन्न अपराध का पृथक आरोप एवं विचारण होगा। इसका उल्लंघन निवारण योग्य नहीं है।
अपवाद
लेकिन धारा 218 के कुछ अपवाद भी हैं, यथा
(1) एक ही वर्ष में किये गये एक ही किस्म के तीन अपराधों का आरोप एक साथ लगाया जा सकेगा। इसका उल्लेख धारा 219 में है।
उदाहरणार्थ- दो माह के अन्तराल से जारी किये गये चैकों के अनादरण के आरोप एक साथ लगाए जाकर उनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा।'
लेकिन एक मामले में यह कहा गया है कि भिन्न-भिन्न तारीखों पर जारी तीन चैकों के अनादरण का आरोप एक साथ नहीं लगाया जा सकेगा क्योंकि वे एक ही संव्यवहार के भाग नहीं है।
(2) धारा 220 के अनुसार एक ही व्यक्ति द्वारा एक ही संव्यवहार बनाने वाले एकाधिक अपराधों का आरोप एक साथ लगाया जा सकेगा तथा एक साथ विचारण किया जा सकेगा।
उदाहरणार्थ अभियुक्त पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 एवं आयुध अधिनियम की - धारा 27 (3) के आरोप एक साथ लगाये जा सकेंगे और उनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा।
(3) धारा 223 के अनुसार उन सभी व्यक्तियों पर एक साथ आरोप लगाया जा सकेगा जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में किये गये एक ही अपराध का अभियोग है।
(4) मुख्य अपराध के साथ 'दुष्प्रेरण' एवं 'प्रयत्न' के आरोप एक साथ लगाये जा सकेंगे।
आरोप की विरचना करने का कार्य हालांकि न्यायालय का है हालांकि अधिवक्ता को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आरोप की विरचना समुचित रूप से की गई है अथवा नहीं।