दहेज क्या होता है और क्या है इस पर भारत का कानून

Shadab Salim

25 Jan 2022 5:43 AM GMT

  • दहेज क्या होता है और क्या है इस पर भारत का कानून

    शादी के समय पिता की ओर से अपनी बेटी को दिए जाने वाली सामग्री को दहेज माना जाता है। दहेज की व्यवस्था प्राचीन भारत से ही चली आ रही है। भारत ही नहीं बल्कि एशिया के बहुत सारे भाग में दहेज जैसी व्यवस्था चलती रही है। सभी जगह इसका नाम अलग अलग हो सकता है पर यह व्यवस्था सभी समाजों में देखने को मिलती है।

    किसी समय दहेज का अर्थ इतना विभत्स और क्रूर नहीं था, जितना आज के समय में है। दहेज पिता की ओर से बेटी को दी जाने वाली ऐसी संपत्ति है जिस पर बेटी का अधिकार होता है। वह एक प्रकार से उस लड़की का स्त्रीधन होता है पिता अपनी बेटी को ऐसी संपत्ति अपनी स्वयं की इच्छा से देता था और अपनी हैसियत के मुताबिक देता था।

    सभी धर्मों ने भी ऐसा स्त्रीधन पिता की ओर से बेटी को दिए जाने पर बल दिया है। हिंदू शास्त्रों में भी ऐसा स्त्रीधन दिए जाने की व्यवस्था है और इस्लाम धर्म में भी पैगंबर साहब ने अपनी बेटियों को दहेज में कुछ बर्तन दिए थे।

    समय के साथ परिस्थितियां बदलती चली गई, दहेज के अर्थ भी बदल गए। दहेज एक विभत्स और क्रूर व्यवस्था बनकर रह गया, जो महिलाओं के लिए एक अजगर के रूप में सामने आया। दहेज की मांग लड़का पक्ष की ओर से की जाने लगी। लड़के के माता पिता शादी करने की शर्त दहेज के आधार पर तय करने लगे। लड़के के परिवार की ओर से लड़की के परिवार से संपत्ति मांगी जाने लगी। ऐसी संपत्ति सोना, चांदी, रुपया, जमीन, मकान में मांगी जाने लगी।

    जो दहेज कभी घर गृहस्थी के सामान के रूप में छोटे-मोटे आभूषण के रूप में दिया जाता था वही दहेज मकान और जमीन जैसी अचल संपत्ति का रूप लेकर सामने आ गया। लड़के वालों की ओर से ऐसी संपत्तियां लड़की पक्ष से मांगी जाने लगी है, समय और आगे बड़ा दहेज और विभत्स बन गया तथा लड़की पक्ष से कार जैसी चीजें भी दहेज में मांगी जाने लगी।

    ऐसा दहेज शादी के पूर्व भी और शादी के बाद भी मांगा जाने लगा। जिन लड़कियों को दहेज नहीं दिया जाता उन लड़कियों को ससुराल में पीड़ित किया जाने लगा। उनके प्रति मानसिक को शारीरिक क्रूरता की जाने लगी, यह क्रूरता आगे बढ़ती गई तथा आगे बढ़कर इस क्रूरता में अनेक मामले ऐसे मिलते हैं जहां दहेज की मांग करते हुए लड़कियों की हत्या तक कारित कर दी जाती है। अगर हत्या नहीं की जाती है तो उसे मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह लड़की आत्महत्या कर लेती है।

    दहेज का कानूनी अर्थ

    भारत के कानूनों में दहेज का कानूनी अर्थ सबसे पहले दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है। इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि दहेज क्या होता है। इस अधिनियम के परिभाषा खंड धारा 2 के अनुसार किसी भी ऐसी मूल्यवान संपत्ति या प्रतिभूति को दहेज माना गया है जो विवाह के समय पक्षकारों द्वारा एक दूसरों को दी जाती है और विवाह के बाद भी दी जा सकती है।

    दहेज की परिभाषा अत्यंत विस्तृत परिभाषा है। इस परिभाषा के अंतर्गत कोई भी चल अचल संपत्ति जिसमें मकान, जमीन, कार, आभूषण, रुपया शामिल है। ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की मांग जब विवाह के किसी भी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार से विवाह की शर्त के रूप में की जाती है तब वह दहेज माना जाता है।

    यह जरूरी नहीं है कि दहेज केवल लड़की वालों द्वारा ही दिया जाता है बल्कि दहेज की परिभाषा में लड़के पक्ष वाले भी आते हैं क्योंकि अनेक मामलों में लड़की पक्ष द्वारा भी दहेज की मांग की जाती है।

    अगर किसी लड़की का विवाह किसी व्यक्ति के साथ करने के आधार पर यह शर्त तय की जाती है कि उसके नाम किसी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करवाया जाए, तब इसे दहेज की मांग माना गया है। कोई लड़की भी विवाह की शर्त के आधार पर किसी संपत्ति या प्रतिभूति की मांग लड़के के परिवार से नहीं कर सकती है।

    लड़के के परिवारजनों को दिए जाने वाले उपहार

    दहेज की परिभाषा के अंतर्गत लड़के के परिवारजनों को दिए जाने वाले उपहार भी शामिल है। अगर लड़की पक्ष द्वारा लड़के के परिवारजनों को किसी भी प्रकार का उपहार दिया जाता है जो कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति है जैसे कोई जमीन, मकान, सोना, चांदी या फिर रुपयों से भरे हुए लिफाफे यह सभी दहेज की श्रेणी में आते हैं। अगर इन्हें दिया जा रहा है तो इन्हें भी दहेज माना जाएगा। अगर इनकी मांग की जा रही है तब दहेज प्रतिषेध अधिनियम लागू होगा।

    लड़के के भविष्य के लिए कोई सहायता

    भारत के उच्चतम न्यायालय ने अपने एक मामले में यह फैसला दिया था कि लड़के के भविष्य की सुरक्षा के लिए कोई सहायता मांगना जैसे उसकी उच्च शिक्षा या उसके व्यापार की स्थापना के लिए लड़की वालों से किसी भी तरह की कोई आर्थिक मदद मांगना, दहेज की श्रेणी में नहीं आता है। अगर कोई लड़की पक्ष अपनी इच्छा से लड़के का भविष्य सुरक्षित करने के उद्देश्य से उसकी आर्थिक मदद कर रहा है, तब इसे दहेज मांगना नहीं माना जाएगा।

    इस मामले के बाद काफी विवादास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई। बाद के प्रकरणों में भारत के उच्चतम न्यायालय को इसे स्पष्ट करना पड़ा। बाद के दहेज से संबंधित मामलों में भारत के उच्चतम न्यायालय की एक बड़ी बेंच द्वारा यह निर्णय लिया गया कि भले ही शादी के बाद यह शादी के पहले, लड़की वालों से लड़के के भविष्य को सुरक्षित करने के नाम पर किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद मांगी जाती है तब उसे भी दहेज की श्रेणी में ही रखा जाएगा।

    अब यह स्पष्ट हो गया है कि अगर लड़के वाले लड़की वाले से किसी भी तरह की आर्थिक मदद मांगते हैं और उस मदद को मांगने का आधार लड़के के भविष्य को बताया जाता है, तब ऐसी आर्थिक मदद मांगना भी दहेज मांगने की कोटि में ही आएगा। अगर किसी लड़के की कॉलेज की फीस भरने के लिए लड़की के पिता या परिवार को मजबूर किया जा रहा है, तब भी इसे दहेज ही माना जाएगा।

    इच्छा अनुसार भी नहीं दिया जा सकता दहेज

    दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 किसी भी प्रकार से दहेज के लेनदेन को ही प्रतिषिद्ध करता है। केवल घर गृहस्थी के कुछ सामान की छूट दी गई है। दहेज उन सामान को नहीं माना जाता है जो साधारण घर गृहस्थी के सामान होते हैं परंतु यदि उनकी भी मांग लड़के पक्ष द्वारा की जाती है तब उसे भी दहेज माना जाएगा।

    अगर ऐसी वस्तु लड़की का पिता अपनी इच्छा के अनुसार देता है तब उसे दहेज नहीं माना जाता है।शादी की शर्त के आधार पर किसी भी प्रकार का रुपए पैसे का लेनदेन दहेज की श्रेणी में आता है और इसका लेना और देना दोनों प्रकार से अपराध माना गया है।

    इसका किसी भी प्रकार से व्यवहार नहीं होना चाहिए, किसी जमीन संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करवाना भी दहेज की मांग के अंतर्गत ही आता है। कोई भी पक्षकार एक दूसरे से शादी की शर्त के आधार पर किसी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करवाने जैसी मांग नहीं कर सकते।

    जैसे लड़के वाले अगर लड़की वालों को यह कहते हैं कि उनके बेटे का विवाह उनकी बेटी के साथ किए जाने के लिए पहले कोई जमीन उनके बेटे के नाम करनी होगी तब इसे भी यहां दहेज माना गया है।

    दहेज के लिए दंड

    विवाह में किसी भी प्रकार के दहेज का लेनदेन प्रतिषेध है। इस लेनदेन के साथ ही दहेज की मांग करना भी कानूनी अपराध है। अगर कोई व्यक्ति इस प्रकार की मांग करता है तो उस व्यक्ति पर दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही होगी।

    इस अधिनियम की धारा 3 के अनुसार दहेज लेने देने दहेज की मांग करने पर 5 वर्ष तक का कारावास और ₹5000 का जुर्माना हो सकता है। यह सजा की अधिकतम अवधि है।

    दहेज के प्रकरण किसी भी स्तर पर बनाए जा सकते हैं। यह किसी विवाह के होने के पूर्व किसी विवाह के होने पर या किसी विवाह के होने के बाद किसी भी समय हो सकता है क्योंकि दहेज किसी भी स्तर पर मांगा जा सकता है। शादी करने हेतु दहेज की शर्त रखी जा सकती है, शादी वाले दिन दहेज की शर्त रखी जा सकती हैं या फिर शादी के बाद दहेज नहीं दिए जाने पर मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित किया जा सकता है।

    दहेज हड़प लेना

    अगर किसी स्त्री को उसके माता-पिता द्वारा कुछ उपहार दिए गए हैं जो उसकी निजी गृहस्थी में सहयोगी होते हैं। ऐसे उपहारों को यदि उसके ससुराल पक्ष के लोग हड़प लेते हैं, उस पर कब्जा कर लेते हैं और उन्हें लौटाते नहीं है तब इस स्थिति में भारतीय दंड सहिंता की धारा 406 भी लागू हो जाती है, जिसका संबंध आपराधिक विश्वास भंग से है।

    दहेज मृत्यु के लिए दंड

    दहेज ऐसी अभिशप्त व्यवस्था बन गई की इस व्यवस्था में लड़कियों के जीवन तक लील लिए है।वर्तमान समय में अनेक दहेज मृत्यु देखने को मिलती है, दहेज मृत्यु का उल्लेख भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत भी उल्लेख किया गया है, साथ ही इसके लिए सजा का भी प्रावधान किया गया है।

    अगर किसी भी स्त्री की मौत आप्राकृतिक तौर से होती है और ऐसी मौत उसकी शादी के 7 साल के भीतर होती है, तब मृत्यु के संबंध में दहेज मृत्यु की अवधारणा की जा सकती है।

    भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत विशेष रूप से इसे अपराध बनाए जाने का कारण यह है कि महिलाओं को दहेज के लिए मानसिक रूप से ससुराल पक्ष के लोग परेशान करते हैं। दिनों दिन उन्हें मानसिक पीड़ा देते रहते हैं। महिलाएं भीतर ही भीतर घुटती रहती है, ऐसी घुटन से उनकी मौत तक हो जाती है या फिर वे आत्महत्या कर लेती है या फिर कोई रोग लग जाता है।

    जैसे अनेक मामलों में देखने को मिलता है कि महिलाओं को मानसिक पीड़ा दिए जाने के कारण उन्हें टीबी जैसा भयानक रोग हो जाता है। भीतर ही भीतर घुट कर यह रोग उनका जीवन लील लेता है और इसका प्रमुख कारण दहेज है। जब किसी स्त्री की ऐसी मौत होती है तो उसे दहेज मृत्यु माना जाता है।

    भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी दहेज मृत्यु के संबंध में आजीवन कारावास तक के दंड का प्रावधान करती है। यदि अपराध साबित हो जाता है तो अभियुक्त को आजीवन कारावास तक दिया जा सकता है। आमतौर पर न्यायालय इस प्रकरण में 10 वर्ष तक के कारावास का दंड तो देती ही है।

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