घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 11: मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाने वाला धनीय आदेश

Shadab Salim

18 Feb 2022 10:00 AM IST

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भाग 11: मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाने वाला धनीय आदेश

    घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005) की धारा 20 पीड़ित महिला के पक्ष में मजिस्ट्रेट को रुपए पैसों से संबंधित आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है। इस अधिनियम को पीड़ित महिला के संबंध में सिविल उपचारों के रूप में देखा जाता है।

    अनेक ऐसी महिलाएं हैं जो घरेलू हिंसा के कारण धनीय हानि झेलती है। इन महिलाओं के संरक्षण के उद्देश्य से अधिनियम में धारा 20 का प्रावधान किया गया है। मजिस्ट्रेट को सभी तरह से शक्ति संपन्न किया गया है जिससे किसी भी पीड़ित महिला के उद्धार में मजिस्ट्रेट को किसी प्रकार की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। इस आलेख के अंतर्गत धारा 20 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

    यह अधिनियम में दी गई धारा का मूल स्वरूप है

    धारा 20 धनीय अनुतोष-

    (1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय, मजिस्ट्रेट, घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप व्यथित व्यक्ति और व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान द्वारा उपगत व्यय और सहन की गई हानियों की पूर्ति के लिए धनीय अनुतोष का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निदेश दे सकेगा और ऐसे अनुतोष में निम्नलिखित सम्मिलित हो सकेंगे किन्तु वह निम्नलिखित तक ही सीमित नहीं होगा

    (क) उपार्जनों की हानि;

    (ख) चिकित्सीय व्ययों;

    (ग) व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि और

    (घ) व्यथित व्यक्ति के साथ-साथ उसकी सन्तान, यदि कोई हों, के लिए भरण पोषण, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कोई आदेश या भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त कोई आदेश सम्मिलित है।

    (2) इस धारा के अधीन अनुदत्त धनीय अनुतोष, पर्याप्त, उचित और युक्तियुक्त होगा तथा उस जीवन स्तर से, जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा।

    (3) मजिस्ट्रेट को, जैसा मामले की प्रकृति और परिस्थितियाँ, अपेक्षा करें, भरण पोषण के एक समुचित एकमुश्त संदाय या मासिक संदाय का आदेश की शक्ति होगी।

    (4) मजिस्ट्रेट, आवेदन के पक्षकारों को और पुलिस थाने के भारसाधक को, जिसकी स्थानीय सीमाओं की अधिकारिता में प्रत्यर्थी निवास करता है, उपधारा (1) के अधीन दिये गये धनीय अनुतोष के आदेश की एक प्रति भेजेगा।

    (5) प्रत्यर्थी, उपधारा (1) के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर व्यथित व्यक्ति को अनुदत्त धनीय अनुतोष का संदाय करेगा।

    (6) उपधारा (1) के अधीन आदेश के निबन्धनों में संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी की ओर से असफलता पर, मजिस्ट्रेट, प्रत्यर्थी के नियोजक या ऋणी को, व्यथित व्यक्ति को प्रत्यक्षतः संदाय करने या मजदूरी या वेतन का एक भाग न्यायालय में जमा करने या शोध्य ऋण या प्रत्यर्थी के खाते में शोध्य या उद्भूत ऋण को, जो प्रत्यर्थी द्वारा संदेय धनीय अनुतोष में समायोजित कर ली जायेगी, जमा करने का निदेश दे सकेगा।

    अधिनियम की धारा 20 धनीय अनुतोष से सम्बन्धित है, जो मजिस्ट्रेट धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन के निस्तारण में अनुदत्त कर सकती है।

    सामाजिक दृष्टिकोण एवं मूल्यों में अनवरत परिवर्तन

    सामाजिक दृष्टिकोण एवं मूल्यों में अनवरत परिवर्तन के आलोक में, जो कि 2005 के दूरदर्शी अधिनियम में अन्तर्विष्ट किया गया है, उसे धारा 125, दण्ड प्रक्रिया संहिता के सम्बन्ध में विचारित किये जाने की आवश्यकता है एवं तद्नुसार इसका वृहत्तर निर्वचन किया जाना चाहिए।

    "शिकायत"

    घरेलू हिंसा नियमावली के नियम 2 (ख) में शिकायत परिभाषित है जिसका तात्पर्य किसी आरोप से है जो संरक्षण अधिकारी से किसी व्यक्ति द्वारा मौखिक या लिखित रूप से किया जाता है एवं घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 प्रावधानित करती है कि संरक्षण अधिकारी भी व्यथित व्यक्ति की ओर से घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन अनुतोष की वांछा करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।

    "घरेलू नातेदारी"

    अभिव्यक्ति "घरेलू नातेदारो" न केवल विवाह की नातेदारों को शामिल करती है बल्कि विवाह को प्रकृति की नातेदारी जो कॉमन लॉ विवाह की तरह होती है उसे भी शामिल करता है एवं परिवार न्यायालय को निर्णय देने के लिए निर्देशित करना होता है कि क्या पुरुष एवं स्त्री जो युक्तियुक्त रूप से लम्बी अवधि के लिए नावेदारी में साथ रहे थे वह विवाह की प्रकृति का सम्बन्ध था।

    उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से इंगित किया था कि पद "पत्नी" दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन सम्मिलित है जिससे कि कोई महिला जिसको पति द्वारा तलाक दे दिया गया है या जिसने पति से तलाक ले लिया हो एवं पुनर्विवाह नहीं किया है, अभिप्रेत है। कोई महिला जो विधिक पत्नी की प्रास्थिति नहीं रखती है, को, रह चुकी है, के रूप में वर्णित किया गया था।

    अतः उद्देश्य से संगत "पत्नी" पद की परिभाषा में समाविष्ट किया गया है। शीर्ष न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त इस अर्थों हो सकते हैं कि शब्द "पत्नी" में वह महिला भी शामिल है जो पत्नी रह चुकी है।

    धनीय अनुतोष

    धारा 20 के अधीन, मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 12 के अधीन आवेदन निस्तारित करते समय प्रत्यर्थी को उपार्जनों की हानि, चिकित्सीय व्ययों, व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि और व्यथित व्यक्ति साथ-ही-साथ उसके सन्तान के भरण-पोषण के धनीय अनुतोष के भुगतान के लिए निर्देशित कर सकता है। वह भरण-पोषण की एक मुश्त राशि या मासिक भुगतान के लिए भी आदेश कर सकता है।

    धनीय अनुतोष का दावा

    एक मामले में कहा गया है कि बातिल विवाह में पत्नी निश्चित रूप से अपने दम्पत्ति के साथ साझी गृहस्थी में विवाह की प्रकृति की नातेदारी में रह रही थी। केवल तथ्य कि ऐसी नातेदारी धारा 12 के अधीन डिक्री द्वारा पश्चात्वर्ती रूप से अकृत की गई थी, तो यह घरेलू नातेदारी में और साझी गृहस्थी में उनके रहने में पक्षकारगण की प्रास्थिति के प्रतिकूल नहीं हो सकते।

    इन परिस्थितियों में धारा 12 के अधीन, पश्चात्वर्ती रूप से विवाह को रद्द करने वाली डिक्री के होते हुए भी पत्नी को अधिनियम की धारा 20 (1) (घ) के अधीन भरण पोषण के धनीय अनुतोष के लिए हकदार धारित की जानी चाहिए।

    भले ही धनीय/यौगिक दावा धारा 12 के अधीन अनुमन्य किया जाय, ऐसा भुगतान किसी अन्य न्यायालय की आज्ञाप्ति या आदेश के अनुसार संगत शीर्षों के अधीन शोध्य राशि के विरुद्ध मुजरा की जायेगी। इसलिए कठोरतापूर्वक यह मानना सही नहीं होगा कि दावों का अतिच्छादन घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन कार्यवाही को खारिज कर देगा

    प्रतिकर या नुकसान के लिए वाद

    धारा 12 की उपधारा (2), किसी अनुतोष जिसके लिए किसी प्रत्यर्थी द्वारा की गई घरेलू हिंसा के कार्यों द्वारा कारित की गई क्षतियों के लिए प्रतिकर या नुकसान के लिए वाद संस्थित करने के लिए ऐसे व्यक्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी प्रतिकर या नुकसान के संदाय के लिए अनुतोष, प्रावधानित करती है।

    धनीय अनुतोष का आदेश

    अधिनियम की धारा 20 धनीय अनुतोष को व्यवहृत करती है। मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी के विरुद्ध धनीय अनुतोष का आदेश पारित कर सकता है। हालांकि अधिनियम की धारा 21 एवं के अधीन अनुतोष का अनुदान केवल प्रत्यर्थी के विरुद्ध प्रावधानित है न कि किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध इसलिए, यदि अधिनियम के अधीन अन्य परिभाषाओं के संदर्भ में एवं अधिनियम के प्रावधानों में प्रत्यर्थी' शब्द के अर्थों में, प्रत्यर्थी की परिभाषा या परन्तुक में स्त्री या महिला को नहीं शामिल करता, भले ही व्यथित व्यक्ति को इस प्रत्यर्थी को परिभाषा के परन्तुक के निबन्धनों में परिवाद दाखिल करने का अधिकार है जो महिला नातेदारों को यही शामिल करती है, अन्यथा यह अधिनियम के उद्देश्यों को विफल बनाएगा।

    व्यथित व्यक्ति को धनीय अनुतोष का अनुदान घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 20 मजिस्ट्रेट को प्रत्यर्थी से उपगत व्यय और सहन की गई हानि जिसमें उपार्जनों की हानि, चिकित्सीय व्यय, सम्पत्ति को हानि एवं व्यथित व्यक्ति एवं उसकी संतान को दण्ड प्रक्रिया सहिता, 1973 की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन या अतिरिक्त भरण-पोषण का आदेश पारित कर सकती है।

    उपधारा (2) प्रावधानित करती है कि धनीय अनुतोष पर्याप्त उचित एवं युक्तियुक्त एवं उस जीवन स्तर से जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा। यह धारा मजिस्ट्रेट को एकमुश्त राशि या भरण-पोषण के मासिक भुगतान के लिए भी सशक्त करती है।

    उपधारा (6) प्रावधान करती है कि प्रत्यर्थी की धनीय अनुतोष के लिए भुगतान करने में विफलता पर मजिस्ट्रेट नियोजक या ऋणी या प्रत्यर्थी को व्यथित व्यक्ति को प्रत्यक्षतः संदाय करने का, या मजदूरी या वेतन या प्रत्यर्थी को शोध्य या प्रोभूत ऋण का एक भाग न्यायालय में जमा कराने का निर्देश दे सकता है।

    धनीय अनुतोष एवं प्रतिकर का अनुदान

    घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन, पुरुष सदस्य जिसने घरेलू हिंसा कारित किया है के विरुद्ध धनीय अनुतोष एवं प्रतिकर के अनुदान को अनुमन्य करना अनुज्ञेय है। एस आर बत्रा के मामले में शीर्ष न्यायालय ने संप्रेक्षित किया था कि वैकल्पिक वास सुविधा के लिए दावा केवल पति के विरुद्ध ही किया जा सकता था न कि ससुराल वालों या अन्य नातेदारों के विरुद्ध मामले की इस दृष्टि में अवर न्यायालय द्वारा याचीगण को किराया भुगतान करने का निर्देश विधितः अवधार्य नहीं है तद्नुसार, आपेक्षित निर्णय उसी सीमा तक हस्तक्षेपित किया गया कि वर्तमान याची अवर न्यायालय द्वारा निर्देशित 1000 रुपये प्रतिमाह का किराया भुगतान करने का दायी नहीं होगा।

    धनीय अनुतोष का भुगतान

    2005 के अधिनियम की धारा 20 प्रावधानित करती है कि (1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय, मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप व्यथित व्यक्ति और व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान द्वारा उपगत व्यय और सहन की गई हानियों की पूर्ति के लिए धनीय अनुतोष का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निर्देश दे सकेगा और ऐसे अनुतोष में निम्नलिखित हो सकेंगे किन्तु वह सीमित नहीं होगा :

    (क) उपार्जनों की हानि

    (ख) चिकित्सीय व्यय

    (ग) व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि

    (घ) व्यक्ति व्यक्ति के साथ-साथ उसकी सन्तान, यदि कोई हो, के लिए भरण-पोषण, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कोई आदेश या भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त कोई आदेश सम्मिलित है। इस धारा के अधीन अनुदत्त धनीय अनुतोष, पर्याप्त उचित एवं युक्तियुक्त होगा तथा उस जीवन स्तर से जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा।

    मजिस्ट्रेट मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के अनुसार व्यथित व्यक्ति की अपेक्षा पर विचार करेगा और प्रत्यर्थी द्वारा या तो समुचित एक मुश्त रकम के रूप में या भरण-पोषण के मासिक भुगतान के रूप में किन्तु दोनों में नहीं, व्यथित व्यक्ति को मौद्रिक अनुतोष के भुगतान के लिए आदेश पारित करेगा।

    घरेलू हिंसा की रिपोर्ट प्रस्तुत मामले में, घरेलू हिंसा की किसी रिपोर्ट का प्रश्न नहीं होता जैसा कि यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पक्षकारगण के मध्य सितम्बर, 2003 में तलाक हुआ था एवं अधिनियम के प्रावधानों के लागू होने के बाद पक्षकारगण को व्यथित व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है।

    विशेष न्यायाधीश ने याचीगण के भरण-पोषण को अनुमन्य करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को अपास्त करने का अकाट्य कारण दिया है। विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश पूर्णतया विधिक है एवं विधि के विपरीत नहीं है। विशेष न्यायाधीश ने इसे पारित करने में कोई अवैधानिकता नहीं कारित की है। इस प्रकार पुनरीक्षणीय क्षेत्राधिकार में किसी प्रकार के हस्तक्षेप को आवश्यकता नहीं है। पुनरीक्षण याचिका बलहीन है जिसे खारिज किया जाता है।

    घरेलू हिंसा के बाद की पोषणीयता

    तथ्य कि तलाक विदेशी न्यायालय द्वारा अनुदत्त किया गया था, जिसका घरेलू हिंसा वाद की पोषणीयता से कोई प्रभाव नहीं होगा, यदि उसमें आरोप अधिनियम के प्रावधानों के अधीन विवाद को अन्यथा लाते हैं, दावाकृत का अधिकार, निश्चित रूप से ऐसे आरोप के अन्तिम सबूत पर आधारित होता है।

    आर्थिक हिंसा मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी की रिपोर्ट पर आधारित व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर आदेश पारित करने में सक्षम होता है। ऐसे आदेश के पारित करने के बाद भी, यदि प्रत्यर्थी उसे नहीं सुनेगा एवं उनका अनुपालन नहीं करेगा तो मजिस्ट्रेट 2005 के उक्त अधिनियम की धारा 31 के अधीन अपराध का संज्ञान लेने के लिए हकदार होगा।

    इसलिए, दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 का, इस स्तर पर जब धारा 12 का आवेदन सुना जाय कोई प्रयोजन नहीं होगा। उक्त 2005 के अधिनियम के अधीन हिंसा केवल शारीरिक हिंसा नहीं है यह पत्नी को भरण-पोषण न देकर अन्याय सर्जित करते हुए आर्थिक हिंसा भी हो सकती है। प्रस्तुत प्रकरण में स्वीकृत रूप से, पति ने कोई भरण-पोषण नहीं दिया था। इसलिए, याचिका को उचित रूप से पोषणीय होना धारित किया गया।

    पैतृक संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सा

    चूंकि याची ने प्रश्नगत संयुक्त पारिवारिक सम्पत्तियों में विपक्षी पक्षकार को उसका हिस्सा नहीं दिया था, विपक्षी पक्षकार भरण-पोषण पाने की हकदार है जब तक वह उक्त सम्पत्ति में अपना हिस्सा न प्राप्त कर ले। संयुक्त पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा पाने के अभाव में उसे आर्थिक एवं वित्तीय संसाधनों के वंचित किया गया जिसे पाने के लिए वह यह विधित हकदार है।

    विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग

    प्रत्यर्थी के अधिवक्ता द्वारा की गई बहस सत्य है कि 2005 का अधिनियम लाभकारी विधायन है, परन्तु 2005 के अधिनियम के प्रावधान एवं इसके स्पष्टीकरण-11 में विशिष्टतः यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता है कि घरेलू हिंसा को स्वयंमेव अनुमानित नहीं किया जा सकता है जबकि इसे प्रत्येक वाद की तथ्य एवं परिस्थितियों से निष्कर्षित करना होता है।

    वर्तमान बाद में प्रत्यर्थी द्वारा 15 वर्षों बाद घरेलू हिंसा अभिकथित की गयी जो कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग गठित करेगा। निश्चित रूप से, यह लाभकारी विधायन उन्हें उपलब्ध होगा जो इसका लाभ पाने के हकदार हैं, वर्तमान वाद में, उच्च न्यायालय ने निष्कर्षित किया कि प्रत्यर्थी कम-से-कम 2005 के अधिनियम के लिए तो हकदार नहीं हैं हालांकि वे उनके द्वारा वांछित अनुतोष के लिए किसी अन्य विधि में हकदार हो सकते हैं।

    कार्यवाहियों का अभिखण्ड

    कहाँ अन्यत्र संगत अनुतोष का दावा करने के विकल्प के होते हुए भी, घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन मजिस्ट्रेट का क्षेत्राधिकार बहिष्कृत नहीं होता है। स्पष्ट रूप से विकल्प दावा करने वालो/व्यथित महिला में निहित होता है। यह कि उसने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 सपठित धारा 20 से 22 के अधीन राशि का दावा करने का वैधानिक अधिकार का प्रयोग किया था उससे स्पष्ट रूप से कार्यवाही खारिज नहीं की जा सकती।

    भरण-पोषण का अधिकार

    2005 के अधिनियम के अधीन भरण-पोषण के अधिकार को व्यवहृत करते समय, माननीय उच्चतम न्यायालय ने विमलाबेन अजीतभाई पटेल बनाम वात्सलाबेन अशोकभाई पटेल, (2009) 4 एससीसी 649 एआईआर 2003 उच्चतम न्यायालय 2675 में धारित किया गया कि 2005 का अधिनियम पत्नी के पक्ष में उच्च अधिकार प्रावधानित करता है जो केवल भरण-पोषण का अधिकार नहीं अर्जित करती है अपितु इसके अधीन निवास का भी अधिकार जो कि उच्चतम अधिकार है, अर्जित करती है। हालांकि, विधायन के अनुसार उक्त अधिकार केवल संयुक्त सम्पत्ति तक होता है जिसमें पति का हिस्सा होता है।

    मासिक भरण पोषण प्रस्तुत प्रकरण में स्वीकृत रूप से, पति का संयुक्त पारिवारिक सम्पत्ति में अधिकार है। उसके पति की मृत्यु के बाद विरोधी पक्षकार ने यह अधिकार अर्जित कर लिया। चूंकि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति में उसका हिस्सा उसे नहीं दिया गया था इसलिए अवर न्यायालय ने विरोधी पक्षकार को जब तक यह याची की सम्पत्ति में हिस्सा प्राप्त कर ले तब तक मासिक भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उचित रूप से अनुदान दिया।

    पत्नी एवं संतान के भरण-पोषण में उपेक्षा

    जहाँ तक प्रथम याची का प्रश्न है, सम्पूर्ण दावा उसके विरुद्ध है। चूँकि याचिका में आरोप है कि उसने चिकित्सीय व्यय का भुगतान करने एवं उसका एवं उसके सन्तानों का भरण-पोषण करने की उपेक्षा किया है, उच्च न्यायालय उसके विरुद्ध कार्यवाही समाप्त करने में दिलचस्पी रखने वाला नहीं था।

    अन्तरिम भरण-पोषण का अनुदान

    अनवर बनाम शमीम बानो के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा प्रत्यर्थी संख्या 1 को अन्तरिम भरण-पोषण के अनुदान प्रदान करने वाले आदेश में कोई अनुचितता नहीं है। यह सत्य है कि परिवार न्यायालय ने सन्तान को 500 रुपये की राशि भरण-पोषण भी अधिनिर्णीत किया है। पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा पारित आदेश सन्तान के अन्तरिम भरण-पोषण के अनुदान से सम्बन्धित नहीं है। याची ने प्रत्यर्थी को 1/5/2007 को लिखित तलाकनामा द्वारा तलाक दिया था एवं वह काजी शहर कोटा द्वारा भी सत्यापित किया गया था।

    यह तलाकनामा याची द्वारा मुस्लिम विधि के अनुसार विधि के समुचित न्यायालय में अभी साबित किया जाना है एवं यदि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के अधीन प्रत्यर्थी को अन्तरिम भरण-पोषण अनुदत्त किया गया था तो इसे अवैध या प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता था क्योंकि प्रत्यर्थी संख्या-1 शीर्ष न्यायालय के निर्णय की दृष्टि से अन्तरिम भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार है।

    पत्नी और बच्चों को मौद्रिक अनुतोष

    जब कोई पक्षकार पति की आय के प्रश्न पर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रमाणिक विश्वसनीय प्रथम दृष्ट्या साक्ष्य पेश नहीं किया था, तब मजिस्ट्रेट के समक्ष विद्यमान परिस्थितियों द्वारा अनुमान करने के सिवाय आय को निर्धारित करने और पक्षकारों की प्रास्थिति की दृष्टि में पत्नी और उसके बच्चे की वास्तविक आवश्यकता पर विचार करते हुए मौद्रिक अनुतोष की रकम और आवश्यक वस्तुओं की कोमत सूची को निर्धारित करने के लिए कोई विकल्प नहीं था।

    पत्नी और बच्चों को मासिक भरण पोषण

    शोभना शारदा बनाम चगनलाल शारदा, 2015 के प्रकरण में, याची को प्रत्यर्थीगण के परिवार में उसके विवाह समय से घरेलू हिंसा के अधीन रखा गया था। याची के दो पुत्र हैं। उनकी आयु लगभग 13 वर्ष और 7 वर्ष है। एक को राजस्थान में छात्रावास में प्रवेश दिलाया गया है। याची और प्रत्यर्थीगण की अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि है। याची अपनी आजीविका के लिए चिल्ड्रेन पार्क में छोटी दुकान संचालित कर रही है।

    यह प्रतीत नहीं होता है कि उसके द्वारा अर्जित रकम याची और उसके दो बच्चों का उसी जीवन स्तर के साथ भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त होगी, जिसके वे अभ्यस्त थे। इस प्रकार, यह ऐसा मामला होना प्रतीत होता है, जिसमें याची को स्वयं के लिए और उसके दो अवयस्क बच्चों के लिए मासिक भरण-पोषण प्राप्त करना चाहिए।

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