लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 14: लैंगिक उत्पीड़न का अपराध और उसके लिए दंड

Shadab Salim

5 July 2022 12:00 PM GMT

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 14: लैंगिक उत्पीड़न का अपराध और उसके लिए दंड

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 11 लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का उल्लेख करती और धारा 12 इस अपराध के लिए दंड का प्रावधान करती है। पॉक्सो अधिनियम में अलग अलग प्रकार के अपराध है। अब तक प्रवेशन लैंगिक हमला और लैंगिक हमला पर चर्चा की जा चुकी है। इस आलेख में यह समझने का प्रयास किया जा रहा है कि लैंगिक उत्पीड़न क्या है,वह अपराध कब गठित होता है और उसके लिए क्या दंड है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 11

    लैंगिक उत्पीड़न

    किसी व्यक्ति द्वारा किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न किया गया है जब ऐसा व्यक्ति-

    (i) लैंगिक आशय से कोई शब्द कहता है या ध्वनि या अंग विक्षेप करता है या कोई वस्तु या शरीर का भाग प्रदर्शित इस आशय के साथ करता है कि बालक द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाए या ऐसा अंग विक्षेप या वस्तु या शरीर का भाग देखा जाए या

    (ii) लैंगिक आशय से उस व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी बालक को अपने शरीर या शरीर का कोई भाग प्रदर्शित करने के लिए कहता है;

    (iii) अश्लील साहित्य के प्रयोजनों के लिए किसी प्ररूप या मीडिया में किसी बालक को कोई वस्तु दिखाता है; या

    (iv) बालक को या तो सीधे या इलेक्ट्रानिक, अंकीय या किसी अन्य साधनों के माध्यम से बार-बार या निरंतर पीछा करता है या देखता है या संपर्क बनाता है; या

    (v) बालक के शरीर के किसी भाग या बालक को लैंगिक कृत्य में अंतर्वलित इलेक्ट्रानिक फिल्म या अंकीय या अन्य किसी रीति के माध्यम से वास्तविक या बनावटी तस्वीर खींचकर मीडिया का किसी भी रूप में उपयोग करने की धमकी देता है; या

    (vi) अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक को प्रलोभन देता है या उसके लिए परितोषण देता है।

    स्पष्टीकरण- "लैंगिक आशय" में अंतर्वलित कोई प्रश्न तथ्य का प्रश्न होगा।

    शब्द "उत्पीड़न" का अर्थ

    किसी व्यक्ति को निरन्तर तंग करने वाले आक्रमणों, प्रश्नो माँगों अथवा अन्य दुःखद चीजों के अध्यधीन करना। मिथ्या और अपमानजनक प्रकथनों पर न्यायालय की कार्यवाही संस्थित करके उत्पीड़न और उन्हें विभिन्न न्यायालयो और विभिन्न कार्यवाहियों में दुहराना पति के द्वारा पत्नी के उत्पीड़न का सर्वाधिक बेकार प्रकार है और यदि ऐसा उत्पीडन किसी सम्पत्ति की विधि-विरुद्ध माँग को पूरा करने के लिए हो, तब यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-क सपठित स्पष्टीकरण (ख) के प्रावधानों के अन्तर्गत आता है।

    लैंगिक उत्पीड़न के ढंग

    लैंगिक उत्पीडन ऐसा कोई लैंगिक रूप में उन्मुख व्यवहार है, जो किसी व्यक्ति के निरन्तर नियोजन को खतरे में डालता है, उसके कार्य के निष्पादन को नकारात्मक रूप में प्रभावित करता है और वैयक्तिक गरिमा की उसकी भावना को क्षीण बनाता है।

    लैंगिक उत्पीडन स्वयं को दोनों शारीरिक रूप में तथा मनोवैज्ञानिक रूप में अभिव्यक्त कर सकता है। इसके मध्यम रूप में इसमें मौखिक व्यंग्योक्ति तथा अनुपयुक्त स्नेहपूर्वक संकेत अन्तर्ग्रस्त हो सकते हैं लेकिन यह ऐसे अतिव्यवहार को अग्रसर कर सकता है, जो बलात्संग के प्रयत्न तथा बलात्संग की कोटि में आता है। शारीरिक रूप में इसे उपगत करने वाला व्यक्ति चिकोटी काटने, पकड़ने, लिपटने, थपकी देने, कुदृष्टि रखने, झाड़ने और स्पर्श करने का पीड़ित व्यक्ति हो सकता है। मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न में शारीरिक अन्तरगता का कठोरतापूर्वक प्रस्ताव अन्तर्विलित हो सकता है, जो ऐसे सूक्ष्म संकेतों से प्रारम्भ होता है, जो लैंगिक समर्थन के लिए प्रत्यक्ष निवेदनों को अग्रसर कर सकता है।

    प्रेम प्रस्ताव की नामंजूरी पर हमला

    एक मामले में चक्षुदर्शी साक्षीगण जो मृतका के नातेदार थे, यह कथन किये थे कि अभियुक्त पीड़िता पर उसके प्रेम प्रस्ताव को नामंजूर कर देने के पश्चात् हमला किया था। चक्षुदर्शी साक्षियों का कथन चिकित्सीय साक्ष्य के द्वारा समर्थित था इसलिए अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित अभिनिर्धारित की गयी।

    लैगिक उत्पीड़न का सबूत

    अपीलार्थी के द्वारा कारित किये जाने के लिए यथा अभिकथित अपराध आपराधिक बल के अभाव के कारण न तो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354-ख के अधीन, न तो पोक्सो अधिनियम की धारा 7 के अधीन आया है, क्योंकि ऐसा कोई अभिकथन नहीं है कि अपीलार्थी ने बालक की योनि लिंग, गुदा अथवा रतन को स्पर्श किया था।

    तथापि यह पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 के अधीन यथापरिभाषित लैंगिक उत्पीडन का स्पष्ट मामला है, क्योंकि अपीलार्थी ने लैंगिक आशय के साथ संकेत, अर्थात अपनी भावना अथवा आशय को प्रदर्शित करने का कृत्य किया है। इस प्रकार वह पॉक्सो अधिनियम की धारा 11 के अधीन दोषसिद्ध किये जाने के लिए दायी है और उसके लिए कोई औपचारिक आरोप बनाया जाना आवश्यक नहीं है।

    किशोर डेब्बारमा बनाम त्रिपुरा राज्य, 2019 के मामले में अभिलेखों के आमुख पर असंगतताए अभियोजन मामले को व्यापक रूप में युक्तियुक्त संदेह के परीक्षण पर खरा उतरने के लिए अविश्वसनीय बनाती है। न तो पीड़िता की मो के अभिसाक्ष्य में न तो परिवाद के प्रकथनों में यह कहा गया है कि अभियुक्त ने पीडिता के जननांग को स्पर्श किया था। पीडिता ने विभिन्न कथन किया था, जो यह स्पष्ट करता था कि उसकी प्रवृति बढ़ाने चढ़ाने की है। विचारण में अभिलिखित किये गये साक्ष्य से आपराधिक मानसिक स्थिति के बारे में गंभीर संदेह है। इसलिए अभियुक्त संदेह का लाभ प्राप्त करने का हकदार है।

    वाट्सअप ग्रुप पर लैंगिक रूप से रंजित टिप्पणी

    किशोर चिन्तमन टरोने बनाम महाराष्ट्र राज्य 2021 के प्रकरण में वाट्सअप ग्रुप के प्रशासन को ग्रुप पर उसे पोस्ट किये जाने के पूर्व अन्तर्वस्तु को विनियमित करने, उपान्तरित करने या रोकने की शक्ति नहीं है। किन्तु यदि वाट्सअप ग्रुप का सदस्य किसी अन्तर्वस्तु का पोस्ट करता है, जो विधि के अधीन अनुयोज्य है, तो ऐसा व्यक्ति विधि के सुसंगत प्रावधानों के अधीन दायी निर्णीत किया जा सकता है। प्रतिनिहित दायित्व को सृजित करने वाले विनिर्दिष्ट दाण्डिक प्रावधान के अभाव में, वाट्सअप ग्रुप के प्रशासक को ग्रुप के सदस्य द्वारा पोस्ट की गयी आक्षेपणीय अन्तर्वस्तु के लिये दायी निर्णीत नहीं किया जा सकता।

    लैंगिक प्रकृति का व्यवहार निम्न हो सकते हैं-

    अलग अलग मामलों में दिए निर्णयों से कुछ लैंगिक प्रकृति के व्यवहार हो सकते हैं-

    (1) शारीरिक सम्पर्क अथवा अनुग्रह;

    (2) स्पर्श करना, चिकोटी काटना, लिपटना, पकड़ना, उसके विरुद्ध रगड़ना आदि;

    (3) लैंगिक हमला;

    (4) होटल कक्ष में उस समय आना और बैठना तथा पीना, जब सम्मेलन से बाहर हों;

    (5) सार्वजनिक रूप में चिल्लाना ताकि लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सके;

    (7) व्यक्ति के रास्ते को संकीर्ण बनाना, रोकना, अवरुद्ध करना;

    (8) बलपूर्वक सार्वजनिक परिवहन में प्रवेश करना;

    (9) किसी व्यक्ति को धूम्रपान करने के लिए विवश करना;

    (10) पीछे चलना;

    (11) दरवाजे को उस समय बन्द करना, जब कार्य पर विचार-विमर्श हो रहा हो,

    (12) प्रत्येक रविवार को निवास पर आना:

    (13) महिला को स्वयं उसके पास-पड़ौस से अवगत कराना;

    (14) महिला के लिए कार्यालय आने को कहना

    (15) महिला को विशेष रीति में कपड़े पहने के लिए कहना

    (16) भोजन करने के पश्चात् बेल्ट खोलना,

    (17) अश्लील रीति में बैठना,

    (18) किसी अन्य व्यक्ति के शरीर पर कुदृष्टि रखना अथवा घूरना और/अथवा लैंगिक रूप में सुझावकारी संकेत देना;

    (19) कार्यालय में शराब पीना:

    (20) अत्यधिक लम्बे समय तक हाथ मिलाना;

    (21) अश्लील साहित्य की सामग्री अथवा लैंगिक रूप में अभिव्यक्त लिखित सामग्री का प्रदर्शन

    (22) लैंगिक रूप में दृश्य सामग्री, जैसे पिन लगाना, कार्टून बनाना, अभिरेखन करना, कम्प्यूटर कार्यक्रम बनाना अथवा लैंगिक प्रकृति की विषय-सूची का प्रदर्शन करना

    ( 23 ) प्रस्तावों, अनुग्रहों, अश्लील अथवा अनुपयुक्त सामग्रियों, लैंगिक रूप में रंजित टिप्पणियों अथवा मजाकों आदि के साथ ई-मेल भेजना।

    यह सभी लैंगिक उत्पीड़न हो सकते हैं।

    लैंगिक उत्पीड़न की कोटि में आने वाले दुराचरण की श्रेणियां कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन दुराचरण की उपरोलिखित सभी श्रेणियों के अधीन आता है और इसलिए उसे गम्भीर दुराचरण के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त औद्योगिक विधि के अधीन कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न सह-कर्मकार तथा नियोजक के द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के द्वारा यथापरिभाषित अनुचित श्रम व्यवहार गठित करता है।

    मिथ्या उपभोक्ता के द्वारा लैंगिक दुरुपयोग करना

    नवीन रेगो बनाम महाराष्ट्र राज्य 2008 क्रि लॉ ज 4733 (बम्बई) के मामले में कहा गया है कि कपड़े हटाना उचित नही, समागम का कोई साक्ष्य प्रस्तुत अथवा साबित नहीं किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय के द्वारा निर्णयों की श्रृंखला में आवश्यक दिशानिर्देश दिए गये हैं।

    पुलिस अधिकारी का मामले को पंजीकृत करने से इन्कार करना और पीड़िताओं को दुर्व्यापार करने वाले व्यक्तियों के हाथों में इस आधार पर निर्मुक्त करना कि कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि मिथ्या उपभोक्ता के द्वारा लड़की को लैंगिक दुरुपयोग नहीं किया गया था अथवा कपड़ा नहीं हटाया गया था. उचित नहीं था। पुलिस महानिदेशक को अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के अधीन अन्वेषण अधिकारियों के वर्ग के संज्ञान में उच्चतम न्यायालय के सुसंगत निर्णयों को लाने के लिए निर्देशित किया गया।

    मौखिक उत्पीड़न के व्यवहार

    मौखिक उत्पीड़न के व्यवहार ये है-

    (1) लैंगिक समर्थन के लिए कहना अथवा माँग करना;

    (2) लैंगिक समर्थन, सुझावकारी टिप्पणियों, के साथ टिप्पणियां करना;

    (3) महिला कर्मचारी से पत्नी के बारे में बातचीत करना,

    (4) महिला की गर्भावस्था अथवा सम्बद्ध विषयों जैसे बच्चों के अभाव, आदि के बारे में टिप्पणियां करना,

    (5) सार्वजनिक रूप में नीचा दिखाने, अपमानित करने वाली कुछ चीज कहते हुए अपमानित करना,

    (6) शारीरिक दिखावट, विशेष रूप में शरीर के भागों के बारे में टिप्पणी करना

    (7) अश्लील टिप्पणियां करना, अश्लील हंसी-मजाक करना, अश्लील गाने गाना,

    (8) चिकित्सीय बिलों को प्रस्तुत करने पर गर्भपात, आदि के बारे में वैयक्तिक प्रश्न पूछना

    (9) महिला स्टॉफ के बारे में शीर्ष अधिकारी से इसके बारे में सम्बन्ध बनाना, पुरुष संयोजन और टिप्पणी करना / गप्प-शप्प करना,

    (10) देर रात में काल करना, सनक में काल करना, प्रत्युत्तर देने वाली मशीन में कामुक संदेश भेजना,

    (11) किसी अन्य के शरीर से अनावश्यक रूप में स्पर्श करते हुए रगड़ते हुए बातचीत करना

    (12) अनावश्यक रूप में केबिन में बुलाना (जैसे फाइल की आवश्यकता का बहाना बनाते हुए);

    (13) चिढ़ाना और नामों जैसे "डार्लिंग" "हनी", "स्वीट हर्ट" आदि का प्रयोग करना,

    (14) विवाह, प्रजनन क्षमता तथा अन्य वैयक्तिक विवादों (जैसे "आप क्यों सिंदूर, अंगूठी, आदि नहीं पहनी है ? पर विचार-विमर्श करना

    (15) अनावश्यक रूप में शपथ लेना पीना और "अनावश्यक बातचीत करना,

    (16) कामुक टिप्पणियां, नारी द्वेषी हास्य करना

    (17) किसी व्यक्ति की कामुकता पर सार्वजनिक रूप में उसकी सम्मति के बिना विचार-विमर्श करना;

    लैंगिक उत्पीड़न के लिए दंड

    जो कोई किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

    इस अपराध में न्यूनतम दंड का कोई उल्लेख नहीं है लेकिन अधिकतम तीन वर्ष तक के दंड का उल्लेख किया गया है। अर्थात न्यायालय इस अपराध में न्यूनतम कितना भी दंड अधिरोपित कर सकती है।

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