लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 11: लैंगिक हमला क्या है

Shadab Salim

4 July 2022 11:32 AM IST

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 11: लैंगिक हमला क्या है

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 7 लैंगिक हमले को परिभाषित करती है। इस अधिनियम में जो अपराध बताए गए हैं उनमें लैंगिक हमला दूसरे तरह का अपराध है। पहला अपराध प्रवेशन लैंगिक हमला है और दूसरा अपराध लैंगिक हमला है। इस अपराध में प्रवेशन नहीं है। यह पहले अपराध से थोड़ा छोटा अपराध है। इस आलेख में धारा 7 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 7

    लैंगिक हमला- जो कोई, लैंगिक आशय के साथ बालक की योनि, लिंग, गुदा या स्तनों को छूता है या बालक को ऐसे व्यक्ति या अन्य व्यक्ति की योनि, लिंग, गुदा या स्तन छूने के लिए तैयार करता है या लैंगिक आशय के साथ ऐसा कोई अन्य कार्य करता है जिसमें प्रवेशन किए बिना शारीरिक संपर्क अंतर्ग्रस्त होता है, उसके द्वारा लैंगिक हमला किया गया माना जाएगा।

    पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 7 के अधीन लैंगिक हमले की व्याप्ति और परिधि केवल पीड़िता की योनि को स्पर्श करने तक ही विस्तारित नहीं होती है, वरन् वह लैंगिक आशय से उसके शरीर के किसी भाग को स्पर्श करने तक भी विस्तारित होती है।

    यह अपराध गुप्तांगों को स्पर्श करने तक ही सीमित नहीं है। लैंगिक आशय से बालक के शरीर के किसी भाग को स्पर्श करना अपराध गठित करता है। एक मामले में अभियुक्त पीड़िता को स्कूल के पीछे ले गया था और उसे अश्लील रूप में स्पर्श किया था। अभियुक्त के द्वारा स्पर्श किए गये शरीर के भाग के बारे में साक्ष्य में परिवर्तन था। यह उसे दोषमुक्त करने के लिए आधार नहीं हो सकता है।

    लैंगिक हमला में न केवल लैंगिक आशय से पीड़िता के शरीर के भागों को स्पर्श करना शामिल होता है, वरन् इसमें लैंगिक आशय के साथ किया गया "कोई अन्य कृत्य" शामिल होता है, जिसमें प्रवेशन के बिना शारीरिक संपर्क सम्मिलित है।

    प्रमोद कुमार बनाम राज्य 2016 के मामले में लड़की पर लैंगिक हमले का सबूत यह अभिकथन किया गया था कि अभियुक्त ने लैंगिक आशय के साथ लड़की की पैण्टी को हटाने का प्रयत्न किया था। अपराध में अभियुक्त को बतायी गयी भूमिका से प्रतिपरीक्षा में इंकार नहीं किया गया था। अभियुक्त से पीड़िता की माँ के द्वारा अभिकथित रूप में उधार लिये गये 4,000 रुपये के असंदाय के कारण घटना में उसके मिथ्या फंसाव को दर्शाने के लिए कोई अकाट्य अथवा सशक्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। 4000 रुपये की अल्प धनराशि के कारण परिवादी से अपनी पुत्री के सम्मान को दांव पर लगाने की अपेक्षा नहीं की जाती है। प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में दस दिन विलम्ब के लिए प्रदान किया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक था। इसलिए अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित अभिनिर्धारित की गयी।

    लैंगिक हमला यह क्या गठित करता है-

    परेश मण्डल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2016 के मामले में अभियुक्त के द्वारा पीड़िता के गुप्तांग को उसके वस्त्रों के ऊपर से स्पर्श करने को अभिलेख पर साक्ष्य के आधार पर साबित किया गया है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 के विधायी समादेश के अनुसार न्यायालय यह उपधारणा कर सकता है कि अभियुक्त ने अवयस्क लड़की के साथ लैंगिक अपराध कारित किया है. जब तक इसके प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है। चूंकि अवयस्क के गुप्ताग को स्पर्श करना अधिनियम की धारा 7 की परिधि के भीतर आयेगा इसलिए अवयस्क लड़की के साथ कारित हमले के लिए अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित अभिनिर्धारित की गयी।

    गुरुतर लैंगिक हमला जब पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के अधीन यथापरिभाषित लैंगिक हमला 12 वर्ष से कम आयु के बालक पर कारित किया जाता है, तो वह पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 में यथाविनिर्दिष्ट पीडिता की आयु के कारण गुरुतर लैंगिक हमले की कोटि में आता है। इस प्रकार, प्रवेशन लैगिक हमला गुरुतर रूप तब पारित कर लेता है, जब उसे 12 वर्ष से कम आयु के बालक पर कारित किया जाता है।

    मिथ्या फंसाव का प्रकथन

    प्रमोद सिंह बनाम जम्मू एवं कश्मीर राज्य मामले में यह स्पष्ट है कि अभियोक्त्री एक लड़की है और अनुभवी लड़की नहीं है। बलात्संग की विशिष्टिया उसकी प्रतिरक्षा के दौरान प्रस्तुत की गयी थी। उसे प्रतिपरीक्षक के द्वारा फुसलाया जाना प्रतीत होता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि वह मैथुन के कृत्य से पूर्ण रूप में औगत अथवा भिज्ञ थी। वह ऐसी कुछ चीज कहने के लिए अग्रसर होनी प्रतीत होती है, जिसे वह पूर्ण रूप में नहीं जानती थी। जहाँ तक आपराधिक हमले के अभिकथन का सम्बन्ध है, उसे उसके पिता के कथन के द्वारा पूर्ण रूप संपुष्ट किया गया था। इसके यथाविरुद्ध 2 और फिर अपीलार्थी का इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि एक युवा लड़की और उसका पिता उसे मिथ्या रूप में फसाने के लिए क्यों एक साथ होंगे।

    अभियोक्त्री स्कूल जाने वाली लड़की थी। वह सामान्यतः स्कूल में तथा समाज में भी स्वयं को शर्मिगदी तथा बदनामी में प्रदर्शित नहीं करेगी। इस प्रकार अपीलार्थी के इस प्रकथन में कि उसे मिथ्या रूप में फसाया गया था, कोई बल नहीं है। ऐसी स्थिति में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन अपीलार्थी की दोषसिद्धि भली-भांति आधारित थी, क्योंकि अभियोजन अपीलार्थी के विरुद्ध ऐसे आरोप को सफलतापूर्वक साबित करने में समर्थ हुआ है।

    सिंह वीर सुब्बा बनाम सिक्किम राज्य 2017 लज्जा भंग करना सदोष अवरोध साक्ष्य का मूल्यांकन इस मामले में पीड़िता घटना के समय 15 वर्ष की आयु की थी. जिस पर अभियुक्त के द्वारा लैगिक रूप में हमला किया गया था। पीड़िता की आयु को उसके जन्म प्रमाण-पत्र के द्वारा साबित किया गया था। पीड़िता ने लैगिक हमले के तथ्य को अपनी मों को सूचित किया था और परिवार से पुरामर्श के पश्चात् प्रथम सूचना रिपोर्ट दाखिल की गयी थी। पीड़िता का साक्ष्य उसकी माँ के द्वारा सम्यक रूप में संपुष्ट किया गया था। कृत्य अवयस्क पर लैंगिक हमला था। दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया था।

    अवयस्क लड़की की लज्जा भंग करना का सबूत

    करनपाल बनाम उत्तराखण्ड राज्य 2020 के मामले में अभियुक्त ने अभिकसित रूप से 12 वर्षीया अवयस्क पीड़िता लड़की के साथ बलात्संग किया था और इसके पश्चात उस पर पत्थर से आक्रमण किया था। द प्रस. की धारा 164 के अधीन कथन में पीड़िता यह नहीं बताई थी कि अभियुक्त ने उसके साथ बलात्सग किया था। चिकित्सीय साक्ष्य न तो गुक्राणु का पता लगाया था और न ही बलात्संग के चिन्ह का उल्लेख किया था। अतः यह बलात्संग करने के प्रयत्न का नहीं बल्कि महिला की लज्जा भंग करने का मामला है।

    महिला की लज्जा भंग करना का सबूत

    एक मामले में पीडिता लड़की अपने साक्ष्य में अभिसाक्ष्य दी थी कि वह अपनी परीक्षा में उपस्थित होने के लिये विद्यालय जा रही थी। न तो पीड़िता और न ही उसके माता-पिता अधिकचित किये है कि वह घटना के पश्चात् परीक्षा में उपस्थित हुई थी। लैंगिक हिंसा का समर्थन चिकित्सीय साक्ष्य द्वारा नहीं किया गया है। घटना के समय पीड़िता लड़की लगभग 14 वर्ष की आयु की थी। घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं है। अभियोजन साक्षियों के कथन से अभियोजन मामले के मूल पर सन्देह करने के लिये पर्याप्त क्षेत्र है। अतः अभियुक्त की दोषसिद्धि अपास्त किये जाने के लिये दायी थी।

    संजय कुमार दास बनाम त्रिपुरा राज्य 2021 के मामले में पीड़िता का साक्ष्य, कि अभियुक्त ने उसके सीने पर अपना हाथ रखा था जब वह उसके यान में बैठी थी पर अविश्वास नहीं किया जा सकता, विशिष्ट रूप से तब जब अभियुक्त के प्रति उसकी किसी प्रकार की शत्रुता का कोई सबूत नहीं है। पीड़िता 12 वर्ष की लड़की थी और उचित स्पर्श और अनुचित स्पर्श के बीच अन्तर करने के लिये पर्याप्त परिपक्व थी। अन्ततोगत्वा भयभीत पीड़िता यान से कूद गयी थी जब अभियुक्त ने उसके विद्यालय को पार करने के पश्चात् भी अपने यान को रोकने से इन्कार किया था। सम्पूर्ण परिस्थितियाँ अवर न्यायालय को पीड़िता के कथन पर विश्वास करायी थी कि याची ने अपने यान के भीतर उसकी लज्जा भंग किया था। इसलिये धारा 354 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि और दण्डादेश उचित निर्णय किया गया था।

    अनवरसिंह उर्फ किशनसिंह फतेहसिंह झाला बनाम गुजराज राज्य, 2021 विवाह के बहाने पर व्यपहरण और लज्जा भंग करना यह अभिकथिन किया गया है कि अभियुक्त ने 16 वर्षीया अभियोक्त्री का कार्य करने के मार्ग में व्यपहरण किया था और विवाह करने के बहाने पर उसकी लज्जा भंग किया था। विद्यालय अभिलेखों से यह साबित है कि अभियोक्त्री घटना के समय अवयस्क थी। अभियोक्त्री अभिसाक्ष्य दी है कि वह अभियुक्त से प्रेम करती थी और दोनों का उसके कार्यस्थल के नजदीक क्षतिग्रस्त बंगला में नियमित शारीरिक सम्बन्ध है। अभियुक्त ने अभिवाक किया था कि अभियोक्त्री अपनी इच्छा और सम्मति से अपने माता-पिता का घर छोड़ी थी। अवयस्क की सम्मति व्यपहरण के आरोप की कोई प्रतिरक्षा नहीं होगी। इस प्रकार कोई त्रुटि दण्ड संहिता की धारा 366 के अधीन अभियुक्त की दोषसिद्धि में नहीं पायी जा सकती।

    स्कूल की लड़कियों का छेड़छाड़ उदारता की कोई गुन्जाइश नहीं

    हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम प्रेम सिंह 2009 क्रि लॉ ज 786 अभियुक्त अध्यापक को अभियोक्त्री के साथ लैंगिक रूप में बलात्संग कारित करने के लिए अभिकथित किया गया था और वह न केवल अभियोक्त्री की वरन स्कूल की अनेक अन्य बालिका विद्यार्थियों की लज्जा भंग किया था। परन्तु अभियोक्त्री के साक्ष्य के वाचन पर अभियुक्त के विरुद्ध बलात्संग का मामला साबित न होना पाया गया था। अभियुक्त को धारा 354 और 506 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया था।

    भगवत गनपत या बनाम महाराष्ट्र राज्य 2006 के मामले में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक ने युवा बालिका विद्यार्थियों के साथ छेड़छाड़ की थी। शिक्षा प्रदान करना अच्छा व्यवसाय है और अध्यापक अपने शिष्य के प्रति पिता तुल्य स्थिति में होता है। परन्तु शिक्षा प्रदान करने के बजाय वह कोमल आयु की युवा लड़कियों के साथ छेड़छाड़ कर रहा था। यह दण्डादेश में उदारता दर्शाने का उपयुक्त मामला नहीं है।

    एक मामले में जहाँ पर पीड़ित महिला के द्वारा यह कहा गया था कि अभियुक्त उसके साथ बलात्संग कारित करने के आशय से यह नाम लिया था कि यह रास्ते में अकेली थी, बलपूर्वक उसे पकड़ा था, उसे भूमि पर फेक दिया था और जब उसने प्रतिरोध किया था तब उसकी भुजा पर असभ्य और घोर प्रहार किया था उसका साक्ष्य चिकित्सीय साक्ष्य और अन्य साक्षियों, जो पीड़िता के चिल्लाने पर घटना स्थल पर आए थे और अभियुक्त को घटना स्थल से भागते हुए देखा था, के कथन के द्वारा संपुष्ट था। अभियुक्त की दोषसिद्धि उचित थी परन्तु इस तथ्य पर विचार करते कि अभियुक्त परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था दण्डादेश को 2 वर्ष से 6 मास उपातरित किया गया।

    लड़की पर लैंगिक हमला

    अर्जुन सुब्बा बनाम सिक्किम राज्य के मामले में अभियुक्त ने अभिकथित रूप में पीड़िता लड़की और उसकी सौतेली पुत्री को सोते हुए देखने पर उसके बिस्तर पर आया था और उसके साथ बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। पीड़िता लड़की अभियुक्त से सहायता के लिए साक्षी पर चिल्लाते हुए जग गयी थी और उसका पायजामा नीचे उतरा हुआ पायी थी। पीड़िता लड़की के सामने अभियुक्त की नंगी स्थिति का कोई स्पष्टीकरण नहीं था। अभियुक्त को कमरे में उपस्थिति नग्न अवस्था में थी। यह लैगिक हमले का पर्याप्त सबूत था। दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया था।

    यह अभिकथन था कि अभियुक्त 7 वर्ष से कम आयु की पीड़िता पर बलात्संग कारित करने का प्रयत्न किया था। चक्षुदर्शी साक्षी का अभिसाक्ष्य विश्वसनीय था। पीड़िता का अभिसाक्ष्य अभियुक्त की पहचान के बारे में विरोधी नहीं था। पीड़िता के शरीर पर बाह्य क्षति का अभाव असंगत था। चिकित्सीय रिपोर्ट यह राय देती थी कि अभियुक्त लैंगिक समागम सम्पन्न करने में समर्थ था। दोषसिद्धि को उचित होना अभिनिर्धारित किया गया था।

    दण्डादेश की कटौती

    अशोक बनाम मप्र राज्य, 2005 के मामले में जहाँ पर अभियुक्त 22 वर्षीय आयु का युवा विवाहित कृषक को दोषसिद्ध किया गया था और वह 6 मास और 12 दिन का दण्डादेश पूरा कर लिया था। पहला अपराधी था जिसे अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों का भरण-पोषण करने का उत्तरदायित्व प्राप्त था। जहाँ तक धारा 364 के अधीन अपराध का सम्बन्ध है जेल देश आपक नहीं है। इसलिए इन परिस्थितियों में उसे 1000 रुपये के जुर्माने के साथ पहले मुशली गयी अवधि तक दण्डादेशित किया गया।

    संदेह का लाभ

    पाण्डुरंग सीताराम भागवत बनाम महाराष्ट्र राज्य, एआईआर 2005 एससी 643 के मामले में कहा गया है कि जहाँ पर अभियुक्त को परिवादिनी की पीछे से लिपट करके और उसके स्तनों को स्पर्श करके लज्जा भंग कारित करने के लिए अभिकथित किया गया था। पक्षकारों के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध था तथा परिवादिनी के द्वारा परिसर को रिक्त करने के लिए अनेक बार झगडा हुआ था। परिवादिनी ने अभियुक्त तथा तीन अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध अनेक अभिकथन किया था, जिसमें से अन्य व्यक्तियों को दोषमुक्त कर दिया गया था और अभियुक्त-अपीलार्थी को केवल भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दोषसिद्ध किया गया था। शुद्ध स्थान तथा घटना की रीति के बारे में साक्षियों का कथन तात्विक रूप में भिन्न था। घटना के स्थान तथा रीति में कमी यद्यपि सामान्यतः परिवादिनी तथा अभियोजन साक्षियों के आचरण की दृष्टि में इस तरह से तात्विक नहीं होती है। इसके कारण अभियुक्त संदेह के लाभ का हकदार था।

    दण्ड की वृद्धि के लिए अपील

    कवर पाल सिंह गिल बनाम राज्य (प्रशासक, संघ शासित क्षेत्र, चण्डीगढ़), एआईआर 2005 एससी 3014 के प्रकरण में अभियोक्त्री के द्वारा दण्ड की वृद्धि के लिए अपील दाखिल की गयी थी। घटना बहुत समय पहले घटित हुई थी। अभियुक्त ने परिवीक्षा की अवधि पूरी कर ली थी और बन्धपत्र के निबन्धन का उल्लंघन नहीं किया था। अपील खारिज किए जाने के लिए दायी थी, क्योंकि इस प्रक्रम पर किसी अन्य दण्ड का आश्रय उचित नहीं था।

    पुनरीक्षण

    यह सुनिश्चित है कि जहाँ पर दोषसिद्धि को तथ्य के समवर्ती निष्कर्ष पर पाया गया हो, वहां पर पुनरीक्षण न्यायालय तब तक हस्तक्षेप नहीं करता है, जब तक उन्हें प्रतिकूल होने पर आक्षेपित नहीं किया जा सकता है।

    एक मामले में बालिका लड़की पर लैंगिक हमला दण्डादेश की कटौती अनुज्ञात सामान्य नामावली यह प्रकट करती थी कि अभियुक्त 2 मास और 20 दिन के परिहार के अलावा 1 वर्ष, 7 नास और 27 दिन का बन्दीकरण पहले ही भुगत चुका था। उसे पहले दोषसिद्ध नहीं किया गया था और वह किसी अन्य आपराधिक मामले में लिप्त नहीं है। जेल में उसका सम्पूर्ण आचरण संतोषजनक था। वह पत्नी और तीन स्कूल जाने वाले बच्चों को रखने वाला विवाहित व्यक्ति था। पांच वर्ष के कठोर कारावास के दंडादेश को 4 वर्ष के कठोर कारावास में परिवर्तित किया गया।

    लड़की बालिका पर लैंगिक हमला का सबूत

    प्रमोद कुमार के मामले में यह अभिकथन किया गया था कि अभियुक्त ने लगभग 6-7 वर्षीय पीड़िता लड़की को अपनी गोद में बिठाया था, उसके चहरे तथा स्तन को चूमा था और लैंगिक आशय के साथ उसकी पैंटी को हटाने का प्रयत्न किया था। पीड़िता के द्वारा अभिसाक्ष्यित और साक्षित तात्विक तथ्य प्रतिपरीक्षा में अचुनौतीपूर्ण तथा अखण्डित रहे थे। अभियुक्त ने घटना के समय कमरे में अपनी उपस्थिति से इन्कार नहीं किया था। वह इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया था कि उसे लड़की को उसके माता-पिता को पूर्वानुमति के बिना कमरे में ले जाने के लिए क्या प्रेरित किया था।

    पीड़िता के द्वारा अपराध मे अभियुक्त को प्रदान की गयी भूमिका को प्रतिपरीक्षा में इन्कार नहीं किया गया था। पीड़िता को भी ने उसके प्रकथन को किसी असंगतता के बिना संपुष्ट किया था। अभियुक्त यह दर्शाने के लिए कोई सशक्त और अकाट्य साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया था कि क्या घटना में उसका फंसाव पीड़िता की माँ के द्वारा अभियुक्त से अभिकथित रूप में उधार लिए गये 4,000 रुपये के असंदाय के कारण था।

    इसके बारे में कुछ भी प्रकट नहीं हुआ था कि परिवादिनी के द्वारा अभियुक्त से 4.000 रुपये कब लिए गए थे और किस प्रयोजन के लिए गए थे। चार हजार रुपये की तुच्छ धनराशि के लिए परिवादिनी से अपने पुत्री के सम्मान को दांव लगाने की अपेक्षा नहीं की गयी थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में दस दिन के विलम्ब का यह स्पष्टीकरण दिया गया था कि वह परिवार की ख्याति के बारे में आशंकित थी। अभियुक्त ने उसका चरणस्पर्श किया था और उसे क्षमा करने के लिए कहा था और के अभियुक्त घटना स्थल से भाग गया था और घटना स्थल पर वापस नहीं लौटा था, इसलिए घटना के ठीक पश्चात् प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न कराना संतोषजनक था। अभियुक्त को दोषसिद्धि उचित थी।

    Next Story