विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम (Specific Relief Act 1963) भाग 1: विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
Shadab Salim
21 Nov 2020 5:30 AM GMT
Specific Relief Act 1963
लेखक द्वारा लाइव लॉ वेबसाइट के लिए संविदा विधि सीरीज लिखी गई है। संविदा विधि सिविल मामलों में वैसा स्थान रखती है जैसा स्थान प्रशासनिक मामलों में संविधान का होता है। संविदा विधि से संबंधित समस्त महत्वपूर्ण प्रावधानों को उल्लेखित किया जा चुका है। पिछले आलेख में भारतीय साझेदारी अधिनियम का संपूर्ण उल्लेख सारगर्भित एक आलेख में किया गया है।
इस आलेख में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 से संबंधित महत्वपूर्ण बातें और इस अधिनियम से एक सारगर्भित परिचय पाठकों का कराया जा रहा है। अगले आलेखों में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधानों पर चर्चा की जाएगी।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 ( Specific Relief Act 1963)
जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है कि यह अधिनियम किसी विशेष व्यक्ति के विरुद्ध अनुतोष के संबंध में उल्लेख कर रहा है, यदि कोई अधिकार प्रभुसत्ता द्वारा व्यक्ति को दिया जाता है तो इस अधिकार के साथ में उस अधिकार के लिए उपचार भी दिए जाते हैं। यदि केवल अधिकार दे दिया जाए उपचार नहीं दिया जाए तो ऐसी स्थिति में उस अधिकार का कोई महत्व नहीं रह जाता है। सिविल अधिकार जब दिए जाते हैं तो उस अधिनियम में उस अधिकार के उपचार से संबंधित प्रावधानों का भी उल्लेख किया जाता है जैसे कि भारत के संविधान के अंतर्गत भाग 3 में मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है तथा भारत के नागरिकों और अन्य व्यक्तियों को मूल अधिकार प्रदान किए गए, अब इन मूल अधिकारों के संबंध में उपचार भी इस ही भाग तीन में उपलब्ध किए गए। संविधान के भाग- 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 32 में व्यक्तियों को मिले हुए मूल अधिकारों के उपचार के संबंध में उल्लेख किया गया है। जब भी संविधान में दिए गए किसी अधिकार का अतिक्रमण होता है तो इस अधिकार के प्रवर्तन के लिए अनुच्छेद 32 के अंतर्गत भारत के नागरिक एवं व्यक्ति भारत के उच्चतम न्यायालय में जाकर न्याय पा सकते हैं।
इसी प्रकार व्यक्तियों को अनेकों सिविल अधिकार प्राप्त होते हैं, इस प्रकार के प्राप्त होने वाले अधिकारों के संबंध में उपचार की व्यवस्था भी दी जाती है परंतु कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि केवल प्रतिकर ही उपचार नहीं होता है केवल नुकसान की क्षतिपूर्ति ही उपचार नहीं होता है अपितु उपचार के लिए पूर्ण न्याय करना होता है और इस प्रकार के पूर्ण न्याय के लिए एक विशेष अधिनियम की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का निर्माण किया गया है।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 संविदा, अपकृत्य तथा अन्य मामलों में अनुतोष प्रदान करने के लिए पारित किया गया है। उदाहरण के लिए भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत संविदा के भंग होने पर केवल प्रतिकार का ही उपबंध किया गया है ऐसी परिस्थिति हो सकती है जहां संविदा भंग होने पर केवल प्रतिकर प्रदान करने से न्याय नहीं होता है वरन संविदा के विनिर्दिष्ट पालन से ही न्याय हो सकता है परंतु संविदा अधिनियम में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में विनिर्दिष्ट पालन के अनुतोष का उपबंध है इसी प्रकार अपकृत्य तथा अन्य मामलों में यद्यपि प्रतिकर सामान्य अनुतोष है परंतु अतिक्रमण या उल्लंघन कभी-कभी ऐसी प्रकृति का है कि केवल प्रतिकर प्रदान करने से पूर्व न्याय नहीं हो सकता है तथा वादी के साथ न्याय तभी हो सकता है जब प्रतिवादी अतिक्रमण से बाज़ आए अर्थात वह ऐसे अतिक्रमण से दूर हो जाए तथा इस प्रकार का अतिक्रमण करना बंद कर दें जिससे वादी के अधिकारों को क्षति नहीं पहुंचे।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम व्यादेश के अनुतोष का भी प्रावधान करता है। इसी प्रकार संपत्ति के कब्जे का प्रत्युध्दरण, लिखतों की परिशुद्धि, घोषणात्मक डिक्रियों आदि अनुतोष का भी विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम में प्रावधान है। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 कोई नई विधि निर्मित या प्रतिपादित नहीं करता है जैसा कि अधिनियम की प्रस्तावना में स्पष्ट किया गया है कि अधिनियम कतिपय अधिकारों के विशिष्ट अनुतोष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के लिए पारित किया गया है, यह अधिनियम कतिपय प्रकारों को विनिर्दिष्ट अनुतोष से संबंधित विधि को परिभाषित और संशोधित करने के उद्देश्य से पारित किया गया है। इस प्रकार यह अधिनियम विनिर्दिष्ट अनुतोष के सभी पहलुओं को समाविष्ट नहीं करता है परंतु जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने धारित किया है जिन मामलों को यह परिभाषित करता है उन मामलों में पूर्ण है।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का विस्तार किसी समय जम्मू कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर था परंतु जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के आने के बाद इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर हो गया है। इस अधिनियम में प्रावधान है कि यह अधिनियम उस तिथि से प्रवत होगा जिसे शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केंद्र सरकार नियत करें केंद्र सरकार ने उक्त तिथि 1 मार्च 1964 नियुक्त की तथा उसी दिन से यह अधिनियम प्रवृत्त हो गया।
इस अधिनियम की विशेषता यह है कि विनिर्दिष्ट अनुतोष केवल व्यक्तिगत सिविल अधिकारों के प्रवर्तन के प्रयोजन के लिए ही अनुदत्त किया जा सकता है इसे किसी दंड विधि के प्रयोजन हेतु अनुदत्त नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त जब तक अन्यथा उपबंध हो इस अधिनियम की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह (क) किसी व्यक्ति को निर्दिष्ट पालन से भिन्न अनुतोष के किसी अधिकार से जो वह किसी संविदा के अधीन रखता हो वंचित करती हैं अथवा (ख) दस्तावेजों पर भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 के प्रवर्तन पर प्रभाव डालती हैं।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 मुख्य रूप से संपत्ति के प्रत्युध्दरण के लिए, लिखतों की परिशुद्धि के लिए तथा संविदा के पालन के लिए कार्य में लिया जाता है। जब कभी किसी संविदा का पालन नहीं किया जाता है और संविदा को भंग कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में संविदा के भंग होने के परिणामस्वरूप व्यथित पक्षकार वादी के रूप में न्यायालय की शरण लेकर प्रतिकर प्राप्त कर सकता है परंतु यदि केवल प्रतिकर से ही पूर्ण न्याय नहीं होता है तो इस स्थिति में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की सहायता से वादी को पूर्ण न्याय दिया जाता है।
संपत्ति के कब्जे का प्रत्युध्दरण- (Recovery of property)
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के भाग 2 के अध्याय 1 में संपत्ति के कब्जे के प्रत्युध्दरण से संबंधित उपबंध है। यह उपबंध विनिर्दिष्ट स्थावर तथा विनिर्दिष्ट जंगम दोनों प्रकार की संपत्तियों के संबंध में है। विनिर्दिष्ट स्थावर संपत्ति के कब्जे के प्रत्युध्दरण से संबंधित उपबंध धारा 5 धारा 6 में है जबकि विनिर्दिष्ट जंगम संपत्ति के प्रत्युध्दरण के बारे में उपबंध धारा 7 तथा धारा 8 में दिए गए हैं।
संपत्ति के कब्जे का प्रत्युध्दरण के संबंध में विस्तारपूर्वक उल्लेख अगले आलेखों में किया जाएगा।
संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के विषय में
भारत में संविदा विधि के मूल सिद्धांत भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में उल्लिखित हैं परंतु उनमें विनिर्दिष्ट पालन का उल्लेख नहीं है। विनिर्दिष्ट पालन के सिद्धांत तथा नियम पहले विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1877 में दिए गए थे बाद में 1877 के अधिनियम को संशोधित करके विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 पारित किया गया। विनिर्दिष्ट पालन की डिक्री सामान्यता दो प्रकार की होती है। पहले प्रकार की डिक्री विनिर्दिष्ट पालन के उन मामलों में पारित की जाती है जहां संविदा की विषय वस्तु ऐसी होती है कि संविदा भंग होने पर प्रतिकर न तो योग्य अनुतोष होता है न ही उचित तथा युक्तियुक्त होता है। दूसरे प्रकार की डिक्री उन मामलों में पारित की जाती है जहां संविदा की विशेष एवं व्यवहारिक विशेषताओं के कारण प्रतिकर का लागू करना कठिन एवं गैरव्यापारिक होता है।
संविदा के पालन के विषय में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के संदर्भ में अगले आलेखों में विस्तारपूर्वक उल्लेख किया जाएगा। यह आलेख विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 पर एक प्रस्तावना के स्वरूप में लिखा गया है।
लिखतों की परिशुद्धि
लिखित की परिशुद्धि के विषय में भी विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 का महत्व है। इन अधिनियम की धारा 26 में दिए गए प्रावधान के अनुसार जबकि पक्षकारों के कपट या पारस्परिक भूल के कारण कोई लिखित संविदा या अन्य लिखित जो किसी कंपनी के संगम अनुच्छेद न हो जिस पर कंपनी अधिनियम 1956 लागू होता हो उनके आशय को अभिव्यक्त नहीं करती है।
दोनों में से कोई पक्षकार उसका हित प्रतिनिधि लिखित को परिशोधित करने का वाद संस्थित कर सकता है।
वादी किसी ऐसे वाद में जिसमें लिखित के अधीन कोई अधिकार अद्भुत कोई अधिकार भी बाधक हो अपने अभिवचन में दावा कर सकता है कि लिखित परिशोधित किया जाए।
ऐसी किसी बात में जिस लिखित में विनिर्दिष्ट है प्रतिवादी किसी अन्य प्रतिरक्षा के साथ-साथ जो उसको उपलब्ध हो लिखित की उपस्थिति की मांग कर सकता है।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के मुख्य प्रावधानों पर चर्चा अगले आलेखों में की जाएगी।