लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 15: अश्लील साहित्य के प्रयोजन से बालकों का शोषण करना

Shadab Salim

6 July 2022 10:09 AM GMT

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 15: अश्लील साहित्य के प्रयोजन से बालकों का शोषण करना

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 13 अश्लील साहित्य में बालकों के उपयोग करने को प्रतिबंधित करती है और इसके लिए कठोर दंड अधिरोपित करती है। इस आलेख में धारा 13 पर चर्चा की जा रही है और साथ ही इसके दंड को भी उल्लेखित किया जा रहा है।

    यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है

    धारा 13

    अश्लील साहित्य के प्रयोजनों के लिए बालक का उपयोग

    जो कोई किसी बालक का उपयोग मीडिया (जिसके अंतर्गत टेलीविजन चैनलों या विज्ञापन या इंटरनेट या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक प्ररूप या मुद्रित प्ररूप द्वारा प्रसारित कार्यक्रम या विज्ञापन चाहे ऐसे कार्यक्रम या विज्ञापन का आशय व्यक्तिगत उपयोग या वितरण के लिए हो या नहीं) के किसी प्ररूप में लैंगिक परितोषण, जिसके अंतर्गत-

    (क) किसी बालक की जननेंद्रियों का प्रदर्शन

    (ख) किसी बालक का उपयोग वास्तविक या नकली लैंगिक कार्यों (प्रवेशन के साथ या बिना) में करना,

    (ग) किसी बालक का अशोभनीय या अश्लीलतापूर्ण प्रदर्शन है;

    वह किसी बालक का अश्लील साहित्य के प्रयोजनों के लिए उपयोग करने के अपराध का दोषी होगा। स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए किसी बालक का उपयोग " पद के अंतर्गत मुद्रण, इलेक्ट्रानिक, कम्प्यूटर या अन्य तकनीक के किसी माध्यम से अश्लील साहित्य तैयार उत्पादन, प्रस्तुत, प्रसारित प्रकाशित, सुकर और वितरण करने के लिए किसी बालक को अंतर्वलित करना है।

    लैंगिक हित और उत्तेजना का अनुसरण करने के लिए परिकल्पित

    लैंगिक कामुकता अथवा उत्तेजित व्यवहार को ऐसी रीति में, जो लैंगिक उत्तेजना को उदभूत करने के लिए परिकल्पित हो, को प्रदर्शित करने वाली सामग्री (जैसे लेखन, फोटो अथवा चलचित्र)। अश्लील साहित्य प्रथम संशोधन के अधीन संरक्षित कथन होता है, जब तक उसे विधितः अश्लील होना निर्धारित न किया गया हो।

    कामुक विषय-

    वस्तु और विशेष रूप में लैंगिक व्यवहार को वर्णित करने वाली और लैंगिक हित तथा उत्तेजना को अभिप्रेरित करने के लिए परिकल्पित पुस्तिकाएं, तस्वीर, फिल्म तथा समान सामग्री। ऐसी सामग्रियों के आयात, कब्जे अथवा विक्रय को बार-बार आपराधिक रूप में समझा गया है, क्योंकि यह युवा व्यक्तियों के आचरण को दुराचरित करने अथवा भ्रष्ट बनाने के लिए संभाव्य और अपराध का साधक होने के लिए संभाव्य है, परन्तु यह अनिश्चित है कि ये भय कहां तक न्यायसंगत है और बार-बार यह निर्धारित करना कठिन है कि क्या सामग्रिया अश्लील साहित्य है अथवा नहीं।

    शब्द "अश्लील" का अर्थ

    शब्द अश्लील का शब्दकोषीय अर्थ प्रतिक्रियाकारी, भदद्दा, घृणित, अशिष्ट तथा कामुक होता है परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि प्रत्येक अश्लील अथवा प्रतिक्रियाकारी अथवा भद्दा लेख अश्लीलता की परिभाषा के अन्तर्गत आएगा. यद्यपि सभी अश्लील लेख या तो अशिष्ट या भददा या प्रतिक्रियाकारी होता है।

    यह तथ्य कि कोई सज्जन व्यक्ति कतिपय वस्तुओं को प्रकाशित नहीं करेगा अथवा कतिपय अश्लील लेखन में लिप्त नहीं होगा, इसका आवश्यक रूप मे तात्पर्य यह नहीं है कि अशिष्ट लेखन तुरन्त अश्लील लेखन हो जाएगा। इसके लिए लेखन को अश्लील होना चाहिए. इसकी प्रवृत्ति उन व्यक्तियों, जिनके हाथ में लेख आ सकते हैं, के सदाचरण को भ्रष्ट करने की होनी चाहिए।

    पद ऐसे कृत्यों अथवा शब्दों अथवा प्रदर्शनों के लिए लागू होता है, जो लैगिक शुद्धता अथवा लज्जा के सार्वजनिक विचारों को आघात पहुंचाता है। अश्लीलता का परीक्षण यह होना कहा गया है कि क्या शब्द ऐसे व्यक्तियों के सदाचरण को अपमानित करने के लिए प्रवृत्त होगा, जो सुझावकारी कामुक विचारों तथा उत्तेजित लैंगिक इच्छा के प्रकाशन को देखेंगे।

    राज्य बनाम ठाकुर प्रसाद, 1958 ए.एल.जे. 578 एआईआर 1959 में यह अभिनिर्धारित किया गया था

    "शब्द "अश्लील" को यद्यपि दण्ड संहिता में परिभाषित नहीं किया गया है, फिर भी इसे सतीत्व अथवा लज्जा के लिए अपराधजनक, मस्तिष्क को अभिव्यक्त करने अथवा प्रतिरूपित करने अथवा किसी चीज जिसकी नाजुकता, शुद्धता और शालीनता अभिव्यक्त किए जाने को वर्जित की गयी हो, किसी चीज को असतीत्व तथा वासनापूर्ण, अशुद्ध, अशिष्ट, कामुक विचारों को अभिव्यक्त करने अथवा सुझाव देने के अर्थ में समझा जा सकता है।

    इसके बारे में विचार कि अश्लीलता के रूप में क्या समझा जाता है, वास्तव में समय-समय पर और क्षेत्र प्रतिक्षेत्र विशेष सामाजिक दशाओं पर निर्भर रहते हुए परिवर्तित होता है। नैतिक मूल्यों का कोई अपरिवर्तनीय मापदण्ड नहीं हो सकता है। यदि प्रकाशन सार्वजनिक सदाचरण के प्रतिकूल हो और ऐसे व्यक्तियों, जिनके हाथों में वह आ सकता है के मस्तिष्कों को दुराचारित करने तथा भ्रष्ट बनाने में हानिकारक प्रभाव कारित करने के लिए प्रकल्पित हो, तब उसे अश्लील प्रकाशन के रूप में देखा जाएगा, जो वह है, जिसका दमन करने का विधि का आशय है कोई चीज जो आवेग को प्रज्वलित करने के लिए प्रकल्पित हो।

    "अश्लील होती है कोई चीज, जो भिन्न रूप में उसको पढ़ने वाले व्यक्ति को अशिष्ट रूप अथवा अनैतिक रूप के कृत्यों में लिप्त होने के लिए प्रेरित करने हेतु प्रकल्पित हो, अश्लील होती है। कोई पुस्तक अश्लील हो सकती है, यद्यपि यह एकल अश्लील पैरा को अन्तर्विष्ट करती है। नगे रूप में किसी महिला की तस्वीर स्वतः अश्लील नहीं होती है। यह निर्णीत करने के प्रयोजन के लिए कि क्या तस्वीर अश्लील है अथवा नहीं, किसी व्यक्ति को अधिक सीमा तक आस-पास की परिस्थितियों, मुद्रा, तस्वीर में सुझावकारी तत्व तथा ऐसे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों, जिनके हाथों में वह पड़ने के लिए संभाव्य हो, पर विचार करना है।"

    शब्द "अश्लील" की कोई ऐसी संक्षिप्त अथवा गणितीय परिभाषा प्रदान नहीं की जा सकती है. जो सभी संभाव्य मामलों को आच्छादित करेगी। इसे प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्णीत किया जाना होगा कि क्या उसके आस-पास के संदर्भ में प्रश्नगत कृत्य अश्लील है अथवा नहीं।

    जफर अहमद खान बनाम राज्य, एआईआर 1963 इलाहाबाद 105 के मामले में जहाँ पर आवेदक ने अपने रिक्शे को रोका था और दो लड़कियों को सम्बोधित करते हुए उसने रिक्शा वालों तथा कुछ अन्य व्यक्तियों की सुनवाई में निम्नलिखित शब्दों का प्रकथन किया था।

    "आओ मेरी जान मेरी रिक्शा पर बैठ जाओ, मैं तुमको पहुंचा दूंगा, मैं तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"

    लड़की ने आवेदक के दुर्व्यवहार को बुरा माना था और उसे डाटा था. घटनास्थल पर कुछ और लोग एकत्र हो गये थे और वे आवेदक के दुराचरण पर नाराजगी भी अभिव्यक्त किए थे। अंग्रेजी में अनुवादित आवेदक के द्वारा प्रकथित शब्दों का अर्थ यह था।

    इस बात से इन्कार नहीं किया गया था कि दोनों लड़कियां, जिन्हें ये शब्द सार्वजनिक रूप में सम्बोधित किए गये थे, 16 और 18 वर्ष के बीच की युवा लड़कियां थीं। वे व्यावसायिक नहीं थी और वे सम्मानित परिवार से सम्बन्धित थी, जो यद्यपि धनी नहीं थी. फिर भी मुस्लिम परिवार से सम्बन्धित थी। यह भी सुझाव नहीं दिया गया था कि आवेदक का उससे पहले उनके साथ कोई परिचय था। वे उससे पूर्ण रूप में अजनबी थे। ऐसा कोई अवसर नहीं था और आवेदक का लड़कियों के साथ बातचीत करने।

    कम-से-कम उन्हें ऐसे प्रिय शब्दों में अन्य व्यक्तियों की सुनवाई में खुले रूप में सम्बोधित करने का कोई दावा नहीं था, जो उनके साथ अवैध लैंगिक सम्बन्ध का सुझावकारी हो और उन्हें अपने रिक्शे पर बैठकर साथ चलने के लिए कहने का सुझावकारी हो। आवेदक के द्वारा सम्बोधित शब्द स्पष्ट रूप में लड़कियों के सतीत्व और लज्जा का भंग था। शब्द सुनने वाले व्यक्तियों, जिसमे वे लड़कियां शामिल हैं, के मस्तिष्क को अभिव्यक्त करने और प्रतिरूपित करने के लिए संभाव्य हो, जो नाजुक रूप में शुद्ध रूप में तथा शिष्ट रूप में अभिव्यक्त किए जाने के लिए वर्जित हो।

    लड़किया और अन्य व्यक्ति भी, जो वहां पर विद्यमान थे, को उन्हें पूर्ण अजनबी के द्वारा सम्बोधित ऐसे निन्दनीय शब्दों को सुनने पर नैतिक आघात उपगत करना चाहिए। वे असतीत्व तथा कामुक विचारों के सुझावकारी थे और अशुद्ध, अशिष्ट और कामुक थे, जैसा कि उक्त निर्णयों में प्रतिपादित किया गया है। इसलिए प्रश्नगत शब्दों को दोनों लड़कियों को सम्बोधित करके आवेदक ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 294 के अर्थ के अन्तर्गत "अश्लील कृत्य कारित किया था।

    नैतिकता और शालीनता के समकालीन समाज के मापदण्डों के अधीन अत्यधिक आपराधिक घोर रूप में सामान्यतः उन स्वीकार्य अवधारणाओं, जो उपयुक्त है, के प्रतिकूल है।

    उच्चतम न्यायालय के तीन अतीत के परीक्षण के अन्तर्गत सामग्री विधित अश्लील होती है-और इसलिए वह प्रथम संशोधन के अधीन संरक्षित नहीं होती है-यदि उसे सम्पूर्ण रूप में लिया जाए तो सामग्री

    (1) मैथुन के उस कामुक हित का समर्थन करती है, जिसे औसत व्यक्ति के द्वारा समकालीन समाज के मापदण्डों को लागू करते हुए निर्धारित किया गया हो.

    (2) अपराधजनक रीति में लैगिक आचरण का प्रदर्शन, जो विनिर्दिष्ट रूप में प्रयोज्यनीय राज्य विधि के द्वारा परिभाषित किया गया हो. और

    (3) गम्भीर साहित्यिक, कलात्मक, राजनीतिक अथवा वैज्ञानिक मूल्य का अभाव होती है।

    भगौती प्रसाद बनाम इम्परर एआईआर 1929 के मामले में कहा गया है कि इस धारा में अनुचिन्तित उत्प्रेरणा किसी भी प्रकार की हो सकती है। अभियुक्त अच्छी जीविका और आराम का प्रस्ताव कर सकता है अथवा उसे कुछ आभूषण अथवा कपड़ों का वचन दे सकता है। उत्प्रेरणा अनिच्छा को विवश करने की कोटि में नहीं आती है। इसमें सम्मति का कुछ तत्व होता है। परन्तु चूंकि अभियोक्त्री 18 वर्ष से कम आयु की है, इसलिए सम्मति अपराधी को भारमुक्त नहीं करेगी।

    समागम के लिए पीडिता की सम्मति तात्विक नहीं एक मामले में 15 वर्ष की लड़की को बलपूर्वक उसकी माँ की अभिरक्षा से लाया गया था और अभियुक्त ने उसकी आयु के बारे में मिथ्या शपथ-पत्र प्राप्त किया था और धमकी के अधीन उससे विवाह किया था और उसके साथ लैंगिक समागम कारित किया था। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366-क और 376 के अधीन अपराध बनने के लिए अभिनिर्धारित किया गया था। समागम करने के लिए पीड़िता की सम्मति तात्विक नहीं है।

    जिनीश लाल शा बनाम बिहार राज्य, एआईआर 2003 एस.सी. 2081 (2003) के मामले में आयु को साबित करने की अभियोजन की असफलता जहाँ पर लड़की के पिता का साक्ष्य यह दर्शाता था कि लड़की की आयु घटना की तारीख पर 19 वर्ष थी। लड़की की शारीरिक स्थिति, जैसा कि डॉक्टर के द्वारा स्पष्ट किया गया था. लड़की के 18 वर्ष से अधिक आयु की होने की संभावना इंगित करती थी। ऐसी पृष्ठभूमि में लड़की का साक्ष्य उस समय पूर्ण रूप से अविश्वसनीय होना प्रतीत होता था, जब उसने यह कहा था कि वह केवल लगभग 14 वर्ष की थी।

    उच्च न्यायालय ने उसकी आयु के सम्बन्ध में लड़की के पिता के साक्ष्य पर विचार-विमर्श नहीं किया था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि धारा 366- क के अधीन अभियुक्त के विरुद्ध आरोप अभियोजन की यह साबित करने की असफलता के कारण सफल नहीं हो सकता था कि लड़की घटना की तारीख पर 18 वर्ष से कम आयु की थी।

    गोलापी बीबी बनाम असम राज्य, 2004 के मामले में जहाँ पर साक्ष्य के द्वारा यह दर्शाया गया हो कि पीड़िता अवयस्क लड़की किसी उत्प्रेरणा अथवा प्रभाव के बिना मात्र अभियुक्त के साथ थी। अभियुक्तों की ओर से पीड़िता को उसके घर से ले जाने के लिए कोई उत्प्रेरणा नहीं थी। अभियुक्तगण उसे धारा 366-क उल्लिखित कोई कृत्य करने के लिए उत्प्रेरित नहीं किए थे। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि धारा 366- क के अधीन अपराध नहीं बनता था, क्योंकि साक्षियों के अभिसाक्ष्य के आधार पर धारा 366- क में यथा अनुचिन्तित उत्प्रेरणा का अभाव पाया गया था।

    बिकाश दास उर्फ रणधीर दास बनाम त्रिपुरा राज्य, 2009 क्रिलॉज के मामले में अभिलेख पर यह उपधारणा करने के लिए प्रथम दृष्टया मामले का अस्तित्व इंगित करने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि अभियुक्त ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन अपराध कारित किया था। अवयस्क लडकी को विधिपूर्ण संरक्षक की अभिरक्षा से ले जाना स्वयं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन अपराध कारित करने की कोटि में नहीं आता है, यदि ऐसा ले जाना किसी स्थान से इस आशय के साथ उत्प्रेरणा के द्वारा अग्रसर न हो कि ऐसी लड़की के साथ किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा अवैध समागम किया जा सकता है अथवा यह जानते हुए अग्रसर न हो कि ऐसी लड़की का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध समागम के लिए विवश अथवा विलुब्ध किया जाना संभाव्य है।

    उत्प्रेरणा अथवा किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध समागम के लिए विलुब्ध करने के आशय का आवश्यक तत्व वर्तमान मामले में बिल्कुल उपलब्ध नहीं है। इसलिए विद्वान सत्र न्यायाधीश भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366- क के अधीन आरोप विरचित करने को निश्चित करते समय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 366-के के प्रावधान पर अपने मस्तिष्क का प्रयोग करने में विफल हुआ था।

    कुबेर चन्द्र दास बनाम बिहार राज्य, 2004 क्रि लॉ ज के मामले में पीड़िता की आयु का सबूत जहाँ पर प्रथम सूचना रिपोर्ट में कथित आयु का सबूत यह था कि पीड़िता इत्तिलाकत्री 17 वर्ष की थी। मुख्य साधन, जो किसी व्यक्ति को विशेष रूप में पहले के समय में किसी व्यक्ति की आयु के बारे में स्पष्ट रूप में शुद्ध राय बनाने के लिए समर्थ बनाती थी, दांत और अस्थियों का अस्थि परीक्षण था। दांत की संख्या और स्थिति का उल्लेख करते हुए दांत से आयु का आकलन समाप्त हो गया और निश्चितता की कुछ मात्रा के साथ एक्स-रे जांच केवल 17 और 20 वर्ष की आयु तक ही संभाव्य थी।

    मोदी के चिकित्सा विधिशास्त्र और विष विज्ञान के साथ चवर्णक दांत 17वें और 25वें वर्ष के बीच की आयु समूह में समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि इत्तिलाकत्री के सभी मूल दांत समाप्त हो गये थे और इसके कारण पीड़िता / इत्तिलाकत्री को निश्चित रूप में 17 वर्ष से कम आयु की न होना, परन्तु 18 वर्ष से अधिक आयु की होना अभिनिर्धारित किया गया था।

    इस अपराध का दंड धारा 14 में उल्लेखित किया गया है

    धारा 14

    अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक के उपयोग के लिए दण्ड (1) जो कोई अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपयोग करेगा, वह ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा तथा दूसरे या पश्चातुवती दोषसिद्धि की दशा में ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी. दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।

    (2) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अश्लील प्रयोजनों के लिए किसी बालक या बालकों का उपयोग करके ऐसे अश्लील कृत्यों में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर, धारा 3 या धारा 5 या धारा 7 या धारा 9 में निर्दिष्ट कोई अपराध करेगा, वह उक्त अपराधों के लिए उपधारा (1) में उपबंधित दण्ड के अतिरिक्त क्रमशः धारा 4, धारा 6 धारा 8 और धारा 10 के अधीन भी दण्डित किया जाएगा।

    धारा 15

    बालकों को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री के भंडारकरण के लिए दण्ड (1) कोई भी व्यक्ति, जो बालक सम्बन्धी अश्लील साहित्य को साझा या पारेषित करने के आशय से किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी भी रूप में भंडारकरण करता है या रखता है, किन्तु उसे मिटाने या नष्ट करने या ऐसे अभिहित प्राधिकारी को, जो विहित किया जाए, रिपोर्ट करने में असफल होता है, वह पांच हजार रुपये से अन्यून के जुर्माने से और दूसरे या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में ऐसे जुर्माने से, जो दस हजार रुपये से कम का नहीं होगा, दायी होगा।

    (2) कोई भी व्यक्ति, जो किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का रिपोर्टिंग के ऐसे प्रयोजन के सिवाय, जो विहित किया जाए, किसी भी समय, किसी भी रीति में पारेषण या प्रदर्शन या प्रचार या वितरण करता है या न्यायालय में उसका साक्ष्य के रूप में उपयोग करता है, वह किसी भी भांति के कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

    (3) कोई भी व्यक्ति, जो किसी बालक को सम्मिलित करने वाली अश्लील सामग्री का किसी सभी रूप में वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए भंडारकरण करता है या रखता है, वह पहली दोषसिद्धि पर किसी भी भांति के कारावास से, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगा, किन्तु जो पाँच वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा और दूसरी और पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में किसी भी भांति के कारावास से जो पांच वर्ष से कम नहीं होगा, किन्तु जो सात वर्ष तक का हो सकेगा, से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा।

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